राजनीति के ऐसे श्लाका पुरूष चौधरी चरण सिंह जिन्होंने अपने सम्पूर्ण जीवन काल में देश के दलितों,पिछड़ों,गरीबों और किसानों की बेहतरी के लिए संघर्ष किया,राजनीति में हिस्सेदार बनाया,का व्यक्तित्व एवं कृतित्व राजनैतिक-सामाजिक जीवन जी रहे लोगों के लिए अनुकरणीय है।आज हमारा मुल्क भारत भ्रष्टाचार के दलदल में फॅंसा है।जाति-विद्वेष,आतंकवाद,क्षेत्रवाद,साम्प्रदायिकता के झंझावातों में जनमानस पिस रहा है।नौजवान रोजगार के अभाव में कुण्ठित हो रहा है।गरीब और गरीब तथा अमीर और अमीर होता जा रहा है।अन्नदाता किसान खेत और बाजार दोनों जगह लूटा जा रहा है।विकास के नाम पर कृषि भूमि का अधिग्रहण किसानों के साथ-साथ देश को भी संकट की तरफ ले जा रहा है।जिस प्रकार अंधेरे में राह देखने के लिए प्रकाश पुंज की आवश्यकता होती है,उसी प्रकार जनसमस्याओं को समझने के लिए ह्दय तथा जनसमस्याओं से निजात पाने के लिए पथ-प्रदर्शकों की जरूरत होती है।गरीब,किसान,दलित,मजदूर को उसका अधिकार बतलाने वाले एवं आमूलचूल व्यवस्था परिवर्तन करने वाले चैधरी चरण सिंह की नीतिया।,विचार हमारे बीच दीपस्तम्भ की भांति विद्यमान हैं।
चैधरी चरण सिंह ने अपना सम्पूर्ण जीवन भारतीयता और ग्रामीण परिवेश की मर्यादा में जिया।बाबूगढ़ छावनी के निकट नूरपुर गांव,तहसील हापुड़,जनपद गाजियाबाद,कमिश्नरी मेरठ में काली मिट्टी के अनगढ़ और फूस के छप्पर वाली मढ़ैया में 23दिसम्बर,1902 को आपका जन्म हुआ।चैधरी चरण सिंह के पिता चौधरी मीर सिंह ने अपने नैतिक मूल्यों को विरासत में चरण सिंह को सौंपा था।चरण सिंह के जन्म के 6वर्ष बाद चौधरी मीर सिंह सपरिवार नूरपुर से जानी खुर्द गांव आकर बस गये थे।यहीं के परिवेश में चैधरी चरण सिंह के नन्हें ह्दय में गांव-गरीब-किसान के शोषण के खिलाफ संघर्ष का बीजारोपण हुआ।आगरा विश्वविद्यालय से कानून की शिक्षा लेकर 1928 में चैधरी चरण सिंह ने ईमानदारी,साफगोई और कत्र्तव्यनिष्ठा पूर्वक गाजियाबाद में वकालत प्रारम्भ की।वकालत जैसे व्यावसायिक पेशे में भी चैधरी चरण सिंह उन्हीं मुकद्मों को स्वीकार करते थे जिनमें मुवक्किल का पक्ष न्यायपूर्ण होता था।कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन1929 में पूर्ण स्वराज्य उद्घोष से प्रभावित होकर युवा चरण सिंह ने गाजियाबाद में कांग्रेस कमेटी का गठन किया।1930 में महात्मा गाँधी द्वारा सविनय अवज्ञा आन्दोलन के तहत् नमक कानून तोडने का आह्वान किया गया।गाॅंधी जी ने ‘‘डांडी मार्च‘‘ किया।आजादी के दीवाने चरण सिंह ने गाजियाबाद की सीमा पर बहने वाली हिण्डन नदी पर नमक बनाया।परिणाम स्वरूप चरण सिंह को 6माह की सजा हुई।जेल से वापसी के बाद चरण सिंह ने महात्मा गाॅंधी के नेतृत्व में स्वयं को पूरी तरह से स्वतन्त्रता संग्राम में समर्पित कर दिया।1940 के व्यक्तिगत सत्याग्रह में भी चरण सिंह गिरफतार हुए फिर अक्तूबर1941 में मुक्त किये गये।सारे देश में इस समय असंतोष व्याप्त था।महात्मा गाँधी ने करो या मरो का आह्वान किया।अंग्रेजों भारत छोड़ों की आवाज सारे भारत में गूंजने लगी।9अगस्त,1942 को अगस्त क्रांति के माहौल में युवक चरण सिंह ने भूमिगत होकर गाजियाबाद,हापुड़,मेरठ,मवाना,सरथना,बुलन्दशहर के गंावों में गुप्त क्रांतिकारी संगठन तैयार किया।मेरठ कमिश्नरी में युवक चरण सिंह ने क्रांतिकारी साथियों के साथ मिलकर ब्रितानिया हुकूमत को बार-बार चुनौती दी।मेरठ प्रशासन ने चरण सिंह को देखते ही गोली मारने का आदेश दे रखा था।एक तरफ पुलिस चरण सिंह की टोह लेती थी वहीं दूसरी तरफ युवक चरण सिंह जनता के बीच सभायें करके निकल जाता था।आखिरकार पुलिस ने एक दिन चरण सिंह को गिरफतार कर ही लिया।राजबन्दी के रूप में डेढ़ वर्ष की सजा हुई।जेल में ही चौधरीचरण सिंह की लिखित पुस्तक ‘‘शिष्टाचार‘‘,भारतीय संस्कृति और समाज के शिष्टाचार के नियमों का एक बहुमूल्य दस्तावेज है।
दरअसल कुशाग्र बुद्धि के चरण सिंह का जुड़ाव आर्य समाज से भी था।1929 में गाजियाबाद आर्य समाज के सभापति चुने गये चरण सिंह ने आजादी की लड़ाई के साथ-साथ सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ भी लड़ाई लड़ी।स्पष्ट वक्ता तथा दृढ़ संकल्पित चरण सिंह ने 1937 में प्रथम बार बागपत-गाजियाबाद क्षेत्र से प्रांतीय धारा सभा में चुने जाने के बाद ‘‘लैण्ड युटिलाइजेशन बिल‘‘ को पास कराने की चेष्टा की।किसान हितैषी इस बिल को ब्रितानिया हुकूमत ने रखने ही नहीं दिया।चैधरी चरण सिंह ने हिम्मत नहीं हारी तथा उन्होंने धारा सभा में एक ऋण निर्मोचन विधेयक रखा।इस विधेयक का विरोध तो कंाग्रेस के ही तमाम विधायको ने किया।ये ऐसे विधायक थे,जिनके ऋण पाश में लाखों गरीब,खेतिहर,मजदूर,किसान जकड़ा हुआ था।चौधरीचरण सिंह ने विधेयक के पक्ष में अकाट्य तर्क प्रस्तुत किये।ऋण निर्मोचन विधेयक धारा सभा में पास हो गया तथा किसान ऋण मुक्त हो गये तथा उनके घर-खेत नीलाम होने से बच गये।चैधरी चरण सिंह का कृषि विपणन पर लिखा लेख हिन्दुस्तान टाइम्स में 31मार्च और 1अप्रैल,1938 को छपा।इन लेखों को ही पढ़कर सर छोटूराम ने ‘मण्डी समिति ऐक्ट‘ को पंजाब में पाीरत किया था।उ0प्र0 की धारा सभा के भंग होने से यह बिल पास न हो पाया था।आजादी के बाद 1949 में इन्हीं प्रस्तावों को चैधरी चरण सिंह ने 1939 में 50प्रतिशत आरक्षण खेतिहर-मजदूर किसान के लिए आरक्षित करने की मांग नव निर्वाचित धारा सभा में की थी,परन्तु इस प्रस्ताव पर शोषण वादी नीति के संरक्षकों ने विचार भी नहीं किया।आजाद भारत में 1947 में चौधरीचरण सिंह ने पुनः कांग्रेस विधानमण्डल में यह प्रस्ताव रखा।इस विषय पर चौधरी चरण सिंह का लिखा लेख-‘‘सरकारी सेवाओं में किसान स।तान के लिए 50प्रतिशत का आरक्षण क्यों?‘‘किसानों की मनोदशा को उजागर करता है।कांग्रेस और कांग्रेस के नेता पं0नेहरू का मोह कृषि के प्रति न होकर बड़े उद्योगों के प्रति था,इसलिए किसान हितैषी यह बिल पारित न हो सका।यह चौधरी चरण सिंह ही हैं जिनके द्वारा तैयार किया गया जमींदारी उन्मूलन विधेयक ‘‘राज्य के कल्याणकारी निदेशक सिद्धान्त‘‘पर आधारित था।महात्मागाँधी के सच्चे अनुयायी चैधरी चरण सिंह द्वारा तैयार किया ‘‘जमींदारी उन्मूलन विधेयक‘‘विधानसभा में पारित हुआ तथा सदियों से खेतों में खून पसीना बहाने वाले मेहनतकश किसान भू-स्वामी बनाये गये।1जुलाई,1952 के दिन उ0प्र0 के पिछड़ों-भूमिहीनों को अपने पेशवा चरण सिंह की बदौलत हक मिला।इसी दिन प्रदेश में जमींदारी उन्मूलन विधेयक लागू हुआ।
दृढ़ इच्छा शक्ति के धनी चौधरीचरण सिंह ने प्रदेश के 27000पटवारियों के त्यागपत्र को स्वीकार कर ‘लेखपाल‘ पद का सृजन कर नई भर्ती करके किसानों को पटवारी आतंक से मुक्ति तो दिलाई ही,प्रशासनिक धाक भी जमाई।लेखपाल भर्ती में 18प्रतिशत स्थान हरिजनों के लिए चौधरी चरण सिंह ने आरक्षित किया था।क्रान्तिकारी विचारों के वाहक चरण सिंह ने एक और किसान हित का क्रांतिकारी कानून ‘‘उ0प्र0 भूमि संरक्षण कानून‘‘1954 में पारित कराया।1953 में आप के द्वारा पारित कराया गया ‘‘चकबन्दी कानून‘‘1954 में लागू हुआ तथा संगठित खेत तैयार करने के इस कानून के विषय में अमेरिकी कृषि विशेषज्ञ अलवर्ट मायर ने टिप्पणी की थी-‘‘चकबन्दी के काम को देखकर मुझे ऐसा लगा है कि यह अत्यन्त महत्व का काम गांवों के कृषि उत्पादन में क्रांति लाने वाला होगा।‘‘चौधरीचरण सिंह ने गरीब किसानों के हक में सस्ती खाद-बीज आदि के लिए कृषि आपूर्ति संस्थानों की स्थापना की।मुख्यम।त्री पद पर 3अप्रैल,1967 को आसीन होने के बाद चैधरी चरण सिंह ने कुटीर उद्योगों तथा कृषि उत्पादन में वृद्धि की योजनाओं को क्रियान्वित करने की दृष्टि से सरकारी एजेंसियों द्वारा ऋण देने के तौर-तरीकों को सुगम बनाया,साढ़े छह एकड़ तक की जोत पर आधा लगान माफ कर दिया तथा दो रूपये तक का लगान बिल्कुल मा़फ कर दिया गया,किसानों की उपज,विशेषकर नकदी फसलों के लाभकारी मूल्यों को दिलाने की दिशा मे। महत्वपूर्ण निर्णय लिए,भूमि भवन कर समाप्त किया।सरकारी काम-काज में हिन्दी का शत् प्रतिशत् प्रयोग तथा 23तहसीलों में,जो उर्दू बाहुल्य थी,सरकारी गजट उर्दू में भी उपलब्ध कराने की व्यवस्था की।किसानों के लिए जोत-बही की व्यवस्था चरण सिंह की ही देन है।ब्रिटिश काल से चले आ रहे नहर की पटरियों पर चलने की पाबंदी को चौधरीचरण सिंह ने कानूनन समाप्त कराया।चैधरी चरण सिंह एक ऐसे नेता थे जिनकी ईमानदारी,नैतिकता और प्रशासनिक दृढ़ता के कारण उ0प्र0 में भ्रष्टाचार पर प्रभावी अंकुश लगा था।सरकारी कार्यालयों में रिश्वतखोरी समाप्त हो गई थी।17अप्रैल,1968 को चौधरी चरण सिंह ने मुख्यमंत्री पद से त्यागपत्र दे दिया था।मात्र10माह में किसान व जनहित के ठोस कदम उठाने वाले चरण सि।ह 1969 के मध्यावधि चुनावों में 98 विधायक जिता लाये।17फरवरी,1970 को चैधरी चरण सिंह पुनः मुख्यमंत्री बने।चौधरी चरण सिंह ने सत्ता में आते ही कृषि उत्पादन बढ़ाने की नीति को प्रोत्साहन देते हुए उर्वरकों से बिक्रीकर उठा लिया।साढ़े तीन एकड़ वाली जोतों का लगान माफ कर दिया,भूमिहीन खेतिहर-मजदूरों को कृषि भूमि दिलाने के कार्य पर और जोर दिया।छह माह की अवधि में ही 6,26,338एकड़ भूमि की सीरदारी के पट्टे और 31,188एकड़ के आसामी पट्टे वितरित किये गये।सीलिंग से प्राप्त सारी जमीनें भूमिहीन हरिजनों तथा पिछड़े वर्गों को ही दी गई।भूमि विकास बैंकों की कार्यप्रणाली को और उपयोगी बनाया।गुण्डा विरोधी अभियान चलाया,कानून का राज कायम किया।बाद में केन्द्र में गृहमंत्री रहते हुए चरण सिंह ने ही मण्डल आयोग,अल्पसंख्यक आयोग की स्थापना की।1979में वित्त मंत्री तथा उपप्रधानमंत्री के रूप में राष्टीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक-नाबार्ड की स्थापना की।उर्वरकों व डीजल के दामों में कमी की,कृषि यंत्रों पर उत्पाद शुल्क घटाया,काम के बदले अनाज योजना लागू की।यह चैधरी चरण सिंह ही थे जिन्होंने महात्मा गाँधी की सोच के अनुसार ‘अंत्योदय‘योजना को प्रारम्भ किया।विलासिता की सामग्री पर भारी कर चैधरी चरण सिंह ने ही लगाये।मूल्यगत विषमता पर रोक लगाने के लिए कृषि जिन्सों की अन्तर्राज्यीय आवाजाही पर लगी रोक हटाई।लाइसेंस आवण्टन पर पाबंदी लगाई तथा लघु उद्योगों को बढ़ावा दिया।बडी कपडा मिलों को हिदायत दी कि 20प्रतिशत कपडा गरीब जनता के लिए बनाये।पहली बार कृषि बजट की आवण्टित राशि में वृद्धि आपके कारण सम्भव हुआ।प्रधानमंत्री पद पर अल्प समय में ही ग्रामीण पुनरूत्थान मंत्रालय की स्थापना आपने ही की थी,जो इस समय ग्रामीण विकास मंत्रालय के नाम से जाना जाता है।
29मई,1987 को स्वर्ग सिधारे सादगी की प्रतिमूर्ति,किसान पुत्र चरण सिंह की ईमानदारी ने उनके भीतर निर्भिकता को जन्म देकर भारत के गरीबों-किसानों के मसीहा के रूप में प्रतिस्थापित कर दिया।भ्रष्टाचार के विषय में चरण सिंह की स्पष्ट सोच कि भ्रष्टाचार उपर से नीचे की ओर चलता है,अक्षरशः सत्य है।चौधरी चरण सिंह आमजन के लिए वह दीप स्तम्भ हैं,जिसकी रोशनी के बिना उन्हें राह नहीं दिख सकती।आज भ्रष्टाचार,मॅंहगाई का दानव आम जन के हितों को लील रहा है,किसानों की भूमि अधिग्रहण मामलों ने किसानों व कृषि भूमि दोनों को खतरे में डाल दिया है।चैधरी चरण सिंह का चरित्र व सिद्धान्त इन समस्याओं रूपी दानवों से निपटने में आम जन व सरकारों का मददगार हो सकता है बशर्ते आम जन व सरकारें चैधरी चरण सिंह जैसे महापुरूषों को आत्मसात् करे
चैधरी चरण सिंह ने अपना सम्पूर्ण जीवन भारतीयता और ग्रामीण परिवेश की मर्यादा में जिया।बाबूगढ़ छावनी के निकट नूरपुर गांव,तहसील हापुड़,जनपद गाजियाबाद,कमिश्नरी मेरठ में काली मिट्टी के अनगढ़ और फूस के छप्पर वाली मढ़ैया में 23दिसम्बर,1902 को आपका जन्म हुआ।चैधरी चरण सिंह के पिता चौधरी मीर सिंह ने अपने नैतिक मूल्यों को विरासत में चरण सिंह को सौंपा था।चरण सिंह के जन्म के 6वर्ष बाद चौधरी मीर सिंह सपरिवार नूरपुर से जानी खुर्द गांव आकर बस गये थे।यहीं के परिवेश में चैधरी चरण सिंह के नन्हें ह्दय में गांव-गरीब-किसान के शोषण के खिलाफ संघर्ष का बीजारोपण हुआ।आगरा विश्वविद्यालय से कानून की शिक्षा लेकर 1928 में चैधरी चरण सिंह ने ईमानदारी,साफगोई और कत्र्तव्यनिष्ठा पूर्वक गाजियाबाद में वकालत प्रारम्भ की।वकालत जैसे व्यावसायिक पेशे में भी चैधरी चरण सिंह उन्हीं मुकद्मों को स्वीकार करते थे जिनमें मुवक्किल का पक्ष न्यायपूर्ण होता था।कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन1929 में पूर्ण स्वराज्य उद्घोष से प्रभावित होकर युवा चरण सिंह ने गाजियाबाद में कांग्रेस कमेटी का गठन किया।1930 में महात्मा गाँधी द्वारा सविनय अवज्ञा आन्दोलन के तहत् नमक कानून तोडने का आह्वान किया गया।गाॅंधी जी ने ‘‘डांडी मार्च‘‘ किया।आजादी के दीवाने चरण सिंह ने गाजियाबाद की सीमा पर बहने वाली हिण्डन नदी पर नमक बनाया।परिणाम स्वरूप चरण सिंह को 6माह की सजा हुई।जेल से वापसी के बाद चरण सिंह ने महात्मा गाॅंधी के नेतृत्व में स्वयं को पूरी तरह से स्वतन्त्रता संग्राम में समर्पित कर दिया।1940 के व्यक्तिगत सत्याग्रह में भी चरण सिंह गिरफतार हुए फिर अक्तूबर1941 में मुक्त किये गये।सारे देश में इस समय असंतोष व्याप्त था।महात्मा गाँधी ने करो या मरो का आह्वान किया।अंग्रेजों भारत छोड़ों की आवाज सारे भारत में गूंजने लगी।9अगस्त,1942 को अगस्त क्रांति के माहौल में युवक चरण सिंह ने भूमिगत होकर गाजियाबाद,हापुड़,मेरठ,मवाना,सरथना,बुलन्दशहर के गंावों में गुप्त क्रांतिकारी संगठन तैयार किया।मेरठ कमिश्नरी में युवक चरण सिंह ने क्रांतिकारी साथियों के साथ मिलकर ब्रितानिया हुकूमत को बार-बार चुनौती दी।मेरठ प्रशासन ने चरण सिंह को देखते ही गोली मारने का आदेश दे रखा था।एक तरफ पुलिस चरण सिंह की टोह लेती थी वहीं दूसरी तरफ युवक चरण सिंह जनता के बीच सभायें करके निकल जाता था।आखिरकार पुलिस ने एक दिन चरण सिंह को गिरफतार कर ही लिया।राजबन्दी के रूप में डेढ़ वर्ष की सजा हुई।जेल में ही चौधरीचरण सिंह की लिखित पुस्तक ‘‘शिष्टाचार‘‘,भारतीय संस्कृति और समाज के शिष्टाचार के नियमों का एक बहुमूल्य दस्तावेज है।
दरअसल कुशाग्र बुद्धि के चरण सिंह का जुड़ाव आर्य समाज से भी था।1929 में गाजियाबाद आर्य समाज के सभापति चुने गये चरण सिंह ने आजादी की लड़ाई के साथ-साथ सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ भी लड़ाई लड़ी।स्पष्ट वक्ता तथा दृढ़ संकल्पित चरण सिंह ने 1937 में प्रथम बार बागपत-गाजियाबाद क्षेत्र से प्रांतीय धारा सभा में चुने जाने के बाद ‘‘लैण्ड युटिलाइजेशन बिल‘‘ को पास कराने की चेष्टा की।किसान हितैषी इस बिल को ब्रितानिया हुकूमत ने रखने ही नहीं दिया।चैधरी चरण सिंह ने हिम्मत नहीं हारी तथा उन्होंने धारा सभा में एक ऋण निर्मोचन विधेयक रखा।इस विधेयक का विरोध तो कंाग्रेस के ही तमाम विधायको ने किया।ये ऐसे विधायक थे,जिनके ऋण पाश में लाखों गरीब,खेतिहर,मजदूर,किसान जकड़ा हुआ था।चौधरीचरण सिंह ने विधेयक के पक्ष में अकाट्य तर्क प्रस्तुत किये।ऋण निर्मोचन विधेयक धारा सभा में पास हो गया तथा किसान ऋण मुक्त हो गये तथा उनके घर-खेत नीलाम होने से बच गये।चैधरी चरण सिंह का कृषि विपणन पर लिखा लेख हिन्दुस्तान टाइम्स में 31मार्च और 1अप्रैल,1938 को छपा।इन लेखों को ही पढ़कर सर छोटूराम ने ‘मण्डी समिति ऐक्ट‘ को पंजाब में पाीरत किया था।उ0प्र0 की धारा सभा के भंग होने से यह बिल पास न हो पाया था।आजादी के बाद 1949 में इन्हीं प्रस्तावों को चैधरी चरण सिंह ने 1939 में 50प्रतिशत आरक्षण खेतिहर-मजदूर किसान के लिए आरक्षित करने की मांग नव निर्वाचित धारा सभा में की थी,परन्तु इस प्रस्ताव पर शोषण वादी नीति के संरक्षकों ने विचार भी नहीं किया।आजाद भारत में 1947 में चौधरीचरण सिंह ने पुनः कांग्रेस विधानमण्डल में यह प्रस्ताव रखा।इस विषय पर चौधरी चरण सिंह का लिखा लेख-‘‘सरकारी सेवाओं में किसान स।तान के लिए 50प्रतिशत का आरक्षण क्यों?‘‘किसानों की मनोदशा को उजागर करता है।कांग्रेस और कांग्रेस के नेता पं0नेहरू का मोह कृषि के प्रति न होकर बड़े उद्योगों के प्रति था,इसलिए किसान हितैषी यह बिल पारित न हो सका।यह चौधरी चरण सिंह ही हैं जिनके द्वारा तैयार किया गया जमींदारी उन्मूलन विधेयक ‘‘राज्य के कल्याणकारी निदेशक सिद्धान्त‘‘पर आधारित था।महात्मागाँधी के सच्चे अनुयायी चैधरी चरण सिंह द्वारा तैयार किया ‘‘जमींदारी उन्मूलन विधेयक‘‘विधानसभा में पारित हुआ तथा सदियों से खेतों में खून पसीना बहाने वाले मेहनतकश किसान भू-स्वामी बनाये गये।1जुलाई,1952 के दिन उ0प्र0 के पिछड़ों-भूमिहीनों को अपने पेशवा चरण सिंह की बदौलत हक मिला।इसी दिन प्रदेश में जमींदारी उन्मूलन विधेयक लागू हुआ।
दृढ़ इच्छा शक्ति के धनी चौधरीचरण सिंह ने प्रदेश के 27000पटवारियों के त्यागपत्र को स्वीकार कर ‘लेखपाल‘ पद का सृजन कर नई भर्ती करके किसानों को पटवारी आतंक से मुक्ति तो दिलाई ही,प्रशासनिक धाक भी जमाई।लेखपाल भर्ती में 18प्रतिशत स्थान हरिजनों के लिए चौधरी चरण सिंह ने आरक्षित किया था।क्रान्तिकारी विचारों के वाहक चरण सिंह ने एक और किसान हित का क्रांतिकारी कानून ‘‘उ0प्र0 भूमि संरक्षण कानून‘‘1954 में पारित कराया।1953 में आप के द्वारा पारित कराया गया ‘‘चकबन्दी कानून‘‘1954 में लागू हुआ तथा संगठित खेत तैयार करने के इस कानून के विषय में अमेरिकी कृषि विशेषज्ञ अलवर्ट मायर ने टिप्पणी की थी-‘‘चकबन्दी के काम को देखकर मुझे ऐसा लगा है कि यह अत्यन्त महत्व का काम गांवों के कृषि उत्पादन में क्रांति लाने वाला होगा।‘‘चौधरीचरण सिंह ने गरीब किसानों के हक में सस्ती खाद-बीज आदि के लिए कृषि आपूर्ति संस्थानों की स्थापना की।मुख्यम।त्री पद पर 3अप्रैल,1967 को आसीन होने के बाद चैधरी चरण सिंह ने कुटीर उद्योगों तथा कृषि उत्पादन में वृद्धि की योजनाओं को क्रियान्वित करने की दृष्टि से सरकारी एजेंसियों द्वारा ऋण देने के तौर-तरीकों को सुगम बनाया,साढ़े छह एकड़ तक की जोत पर आधा लगान माफ कर दिया तथा दो रूपये तक का लगान बिल्कुल मा़फ कर दिया गया,किसानों की उपज,विशेषकर नकदी फसलों के लाभकारी मूल्यों को दिलाने की दिशा मे। महत्वपूर्ण निर्णय लिए,भूमि भवन कर समाप्त किया।सरकारी काम-काज में हिन्दी का शत् प्रतिशत् प्रयोग तथा 23तहसीलों में,जो उर्दू बाहुल्य थी,सरकारी गजट उर्दू में भी उपलब्ध कराने की व्यवस्था की।किसानों के लिए जोत-बही की व्यवस्था चरण सिंह की ही देन है।ब्रिटिश काल से चले आ रहे नहर की पटरियों पर चलने की पाबंदी को चौधरीचरण सिंह ने कानूनन समाप्त कराया।चैधरी चरण सिंह एक ऐसे नेता थे जिनकी ईमानदारी,नैतिकता और प्रशासनिक दृढ़ता के कारण उ0प्र0 में भ्रष्टाचार पर प्रभावी अंकुश लगा था।सरकारी कार्यालयों में रिश्वतखोरी समाप्त हो गई थी।17अप्रैल,1968 को चौधरी चरण सिंह ने मुख्यमंत्री पद से त्यागपत्र दे दिया था।मात्र10माह में किसान व जनहित के ठोस कदम उठाने वाले चरण सि।ह 1969 के मध्यावधि चुनावों में 98 विधायक जिता लाये।17फरवरी,1970 को चैधरी चरण सिंह पुनः मुख्यमंत्री बने।चौधरी चरण सिंह ने सत्ता में आते ही कृषि उत्पादन बढ़ाने की नीति को प्रोत्साहन देते हुए उर्वरकों से बिक्रीकर उठा लिया।साढ़े तीन एकड़ वाली जोतों का लगान माफ कर दिया,भूमिहीन खेतिहर-मजदूरों को कृषि भूमि दिलाने के कार्य पर और जोर दिया।छह माह की अवधि में ही 6,26,338एकड़ भूमि की सीरदारी के पट्टे और 31,188एकड़ के आसामी पट्टे वितरित किये गये।सीलिंग से प्राप्त सारी जमीनें भूमिहीन हरिजनों तथा पिछड़े वर्गों को ही दी गई।भूमि विकास बैंकों की कार्यप्रणाली को और उपयोगी बनाया।गुण्डा विरोधी अभियान चलाया,कानून का राज कायम किया।बाद में केन्द्र में गृहमंत्री रहते हुए चरण सिंह ने ही मण्डल आयोग,अल्पसंख्यक आयोग की स्थापना की।1979में वित्त मंत्री तथा उपप्रधानमंत्री के रूप में राष्टीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक-नाबार्ड की स्थापना की।उर्वरकों व डीजल के दामों में कमी की,कृषि यंत्रों पर उत्पाद शुल्क घटाया,काम के बदले अनाज योजना लागू की।यह चैधरी चरण सिंह ही थे जिन्होंने महात्मा गाँधी की सोच के अनुसार ‘अंत्योदय‘योजना को प्रारम्भ किया।विलासिता की सामग्री पर भारी कर चैधरी चरण सिंह ने ही लगाये।मूल्यगत विषमता पर रोक लगाने के लिए कृषि जिन्सों की अन्तर्राज्यीय आवाजाही पर लगी रोक हटाई।लाइसेंस आवण्टन पर पाबंदी लगाई तथा लघु उद्योगों को बढ़ावा दिया।बडी कपडा मिलों को हिदायत दी कि 20प्रतिशत कपडा गरीब जनता के लिए बनाये।पहली बार कृषि बजट की आवण्टित राशि में वृद्धि आपके कारण सम्भव हुआ।प्रधानमंत्री पद पर अल्प समय में ही ग्रामीण पुनरूत्थान मंत्रालय की स्थापना आपने ही की थी,जो इस समय ग्रामीण विकास मंत्रालय के नाम से जाना जाता है।
29मई,1987 को स्वर्ग सिधारे सादगी की प्रतिमूर्ति,किसान पुत्र चरण सिंह की ईमानदारी ने उनके भीतर निर्भिकता को जन्म देकर भारत के गरीबों-किसानों के मसीहा के रूप में प्रतिस्थापित कर दिया।भ्रष्टाचार के विषय में चरण सिंह की स्पष्ट सोच कि भ्रष्टाचार उपर से नीचे की ओर चलता है,अक्षरशः सत्य है।चौधरी चरण सिंह आमजन के लिए वह दीप स्तम्भ हैं,जिसकी रोशनी के बिना उन्हें राह नहीं दिख सकती।आज भ्रष्टाचार,मॅंहगाई का दानव आम जन के हितों को लील रहा है,किसानों की भूमि अधिग्रहण मामलों ने किसानों व कृषि भूमि दोनों को खतरे में डाल दिया है।चैधरी चरण सिंह का चरित्र व सिद्धान्त इन समस्याओं रूपी दानवों से निपटने में आम जन व सरकारों का मददगार हो सकता है बशर्ते आम जन व सरकारें चैधरी चरण सिंह जैसे महापुरूषों को आत्मसात् करे
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