विनायक शर्मा
बीते वर्ष से जहाँ एक ओर देश भ्रष्टाचार और काले धन के विरुद्ध योग गुरु राम देव और राष्ट्रवादी समाजसेवी अन्ना हजारे द्वारा चलाये जा रहे जन आन्दोलन और अनशन का साक्षी रहा है वहीँ इन दोनों के विरुद्ध व्यक्तिगत तौर से कांग्रेस के दिगविजय सिंह द्वारा विभिन्न माध्यमों से चलाये जा रहे तस्वीरों की जंग का भी प्रत्यक्षदर्शी रहा है. इन सब के पीछे कांग्रेस के दिगविजय सिंह का एक ही उद्देश्य रहा है कि जैसे भी हो भ्रष्टाचार, काले धन और जन लोक पाल बिल की मांग से देश के आम जन का ध्यान हटा कर अन्ना हजारे की राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के साथ नजदीकियां साबित कर उनके इस जन आन्दोलन को संघ से जोड़ कर फिरकापरस्त ताकतों का षड़यंत्र घोषित कर दिया जाये. इसी के चलते दिग्गी राजा कभी अन्ना की नाना जी देशमुख के साथ तस्वीर निकाल लाते हैं तो कभी सर संघ चालक सुदर्शन जी के साथ. फिर बाकायदा प्रेस को बुलाकर अन्ना का संघ के साथ पुराना रिश्ता जोड़ने का असफल प्रयत्न करते हैं. कभी अन्ना को नाना जी देशमुख के संगठन का सचिव बताते हैं. इसके साथ ही वह यह प्रश्न पूछते हैं कि संघ ने अन्ना पर पुस्तक का प्रकाशन किया है दिगविजय सिंह पर क्यूँ नहीं ? निष्पक्ष पत्रकार जगत को लगता है कि यह सब एक सोची समझी रणनीति के तहत किया जा रहा है. इससे कांग्रेस को दो लाभ होंगे. एक भ्रष्टाचार मिटाने के लिए चलाते जा रहे आन्दोलन की हवा निकाली जाये और दूसरे किसी प्रकार संघ का हौवा खड़ा कर अल्पसंख्यकों के मतों का ध्रुवीकरण कर कांग्रेस के पक्ष में लाया जा सके जो विगत बहुत वर्षों से कांग्रेस की कुटिल चालों को समझते हुए उससे दूर हो गए हैं. चलिए, यह तो सभी राजनैतिक दलों की अपनी-अपनी चालें हैं जिन्हें चलने का उन्हें अधिकार भी है. सभी दल एक दूसरे के विरुद्ध आरोप लगाने का कोई भी मौका चूकते नहीं. लेकिन इतना तो स्पष्ट है कि इस राष्ट्रवादी सामाजिक संगठन को कांग्रेस या किसी अन्य दल से किसी प्रकार के प्रमाणपत्र की आवश्यकता नहीं है. हाँ इतना तो स्पष्ट है कि संघ के नाम पर टीम अन्ना जो बात अब स्वीकार कर रही है वह उसे बहुत पहले ही मान लेना चाहिए था कि भ्रष्टाचार के विरुद्ध चलाये जा रहे इस देश व्यापी जन आन्दोलन में सभी ने बड़ चढ़ कर भाग लिया जिसमें संघ के कार्यकर्ता भी हैं.
अब २०१२ में लगता है कि दिगविजय सिंह पर पलटवार करने का टीम अन्ना और संघ के लोगों का समय आया है. संघ के मुखपत्र पांचजन्य ने कांची के शंकराचार्य द्वारा १९९७ को हरिद्वार में आयोजित हिन्दुओं के एक कार्यक्रम का चित्र प्रकाशित किया है जिसमें दिग्गी राजा विश्व हिंदु परिषद् के अन्तराष्ट्रीय अध्यक्ष अशोक सिंगल और सर संघचालक रज्जू भैया के मध्य बैठे दिखाई दे रहे हैं. इससे पूर्व टीम अन्ना की सदस्या किरण बेदी भी संघ के पदाधिकारियों के साथ दिग्गी राजा के चित्र नेट पर जारी कर चुकी हैं. अब इस पर दिग्गी राजा का कहना है कि वह पार्टी शीर्ष से अनुमती लेकर ही वहाँ गए थे. उनके कई अन्य साथियों ने हरिद्वार की इस तस्वीर का स्पष्टीकरण देते हुए कहा कि मुख्य मंत्री को अनेक संगठनों में बुलाया जाता है और वहाँ जाना उसका दायित्व होता है. कुछ ने इसको बहुत ही हलके में लेते हुए तस्वीरों और विचारधारा में अंतर भी देश को समझाने का प्रयत्न किया.
इस सारे प्रकरण पर अब एक बढ़ा प्रश्न यह खड़ा होता है कि किसी के साथ किसी की तस्वीर क्या प्रमाणित करती है ? संघ के लोगों के साथ हिन्दुओं के कार्यक्रम में सम्मिलित होने की अनुमति विशेषकर ऐसे लोगों के साथ जिन पर विवादित ढांचे को गिराने का आरोप उन्हीं की पार्टी लगा जगा रही है, क्या सन्देश देता है ? मुझे ध्यान है कि आपातकाल से पूर्व प्रसिद्द तस्कर हाजी मस्तान और आन्नद मार्ग के अनुयायियों के साथ खींची गईं कांग्रेस के अनेक नेताओं की तसवीरें १९७७ में आपातकाल समाप्त होने के पश्चात् तमाम समाचार पत्रों व लघु पुस्तिकाओं में प्रकाशित हुई थीं. इन सब का क्या अर्थ निकाला जाये ? इसी प्रकार बहुत से अन्य नेताओं की विभिन्न कार्यक्रमों के दौरान दूसरे दल के नेताओं के साथ खींची गई तस्वीरों का क्या अर्थ निकाला जाये ? संघ के स्वयं सेवक अपनी प्रातः की शाखाओं और शिविरों में गाये जाने वाली प्रातः स्मरण नाम की पुस्तिका में महात्मा गाँधी सहित देश के अनेक वीर पुरुषों और महान व्यक्तियों के नाम का स्मरण किया जाता है. तो इसका क्या अर्थ निकाला जाये ? क्या प्रातः स्मरणीय यह सभी वीर और महान जन संघ की विचारधारा को मानने वाले लोग थे ? मेरी स्मरण शक्ति के हिसाब से शायद वर्धा के संघ शिविर में स्वयं महात्मा गाँधी सम्मिलित हुए थे, तो इसका क्या अर्थ हुआ ? १९६२ के युद्ध के पश्चात् १९६३ में देश के प्रथम प्रधानमंत्री के आमंत्रण और अनुमति पर संघ के स्वयं सेवकों ने पूर्ण गणवेश पहन कर परेड में पद संचलन किया था, इसका भी क्या अर्थ हुआ ? जहाँ तक मुझे जानकारी है संघ के प्रकाशन विभाग ने बहुत से महान जनों की जीवनी पर पुस्तिकों का प्रकाशन किया है, जिनमें महात्मा गाँधी भी है और यदि दिग्गी राजा की मानें तो शायद अन्ना हजारे की जीवनी भी है. दिग्गी राजा का यह कथन कितना हास्यास्पद है कि चूँकि संघ ने अन्ना पर पुस्तक का प्रकाशन किया है दिग्गी पर नहीं, तो इसलिए अन्ना हजारे संघ की विचारधारा के व्यक्ति हैं. भ्रष्टाचार उन्मूलन के लिए लड़ रहे वयोवृद्ध अन्ना हजारे के विरोधियों की सूचना के लिए बताना चाहूँगा मेरी जानकारी की दृष्टि से जिन लोगों ने समाज के लिए महान कार्य किये है या देश के लिए अपने प्राणों की आहुति दी है, केवल उन्हीं की पुस्तिका का प्रकाशन संघ ने किया है. अब जब दिग्गी राजा ने कोई ऐसा काम अभी तक किया ही नहीं है तो उनके नाम की पुस्तक संघ क्या कांग्रेस पार्टी भी प्रकाशित नहीं करेगी.
आने वाले दिनों में तस्वीरों की यह जंग और तेज होगी, ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है. अब अगला प्रहार दिग्गी राजा की तरफ से होगा या टीम अन्ना और संघ की ओर से यह देखेंगे हम लोग
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बीते वर्ष से जहाँ एक ओर देश भ्रष्टाचार और काले धन के विरुद्ध योग गुरु राम देव और राष्ट्रवादी समाजसेवी अन्ना हजारे द्वारा चलाये जा रहे जन आन्दोलन और अनशन का साक्षी रहा है वहीँ इन दोनों के विरुद्ध व्यक्तिगत तौर से कांग्रेस के दिगविजय सिंह द्वारा विभिन्न माध्यमों से चलाये जा रहे तस्वीरों की जंग का भी प्रत्यक्षदर्शी रहा है. इन सब के पीछे कांग्रेस के दिगविजय सिंह का एक ही उद्देश्य रहा है कि जैसे भी हो भ्रष्टाचार, काले धन और जन लोक पाल बिल की मांग से देश के आम जन का ध्यान हटा कर अन्ना हजारे की राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के साथ नजदीकियां साबित कर उनके इस जन आन्दोलन को संघ से जोड़ कर फिरकापरस्त ताकतों का षड़यंत्र घोषित कर दिया जाये. इसी के चलते दिग्गी राजा कभी अन्ना की नाना जी देशमुख के साथ तस्वीर निकाल लाते हैं तो कभी सर संघ चालक सुदर्शन जी के साथ. फिर बाकायदा प्रेस को बुलाकर अन्ना का संघ के साथ पुराना रिश्ता जोड़ने का असफल प्रयत्न करते हैं. कभी अन्ना को नाना जी देशमुख के संगठन का सचिव बताते हैं. इसके साथ ही वह यह प्रश्न पूछते हैं कि संघ ने अन्ना पर पुस्तक का प्रकाशन किया है दिगविजय सिंह पर क्यूँ नहीं ? निष्पक्ष पत्रकार जगत को लगता है कि यह सब एक सोची समझी रणनीति के तहत किया जा रहा है. इससे कांग्रेस को दो लाभ होंगे. एक भ्रष्टाचार मिटाने के लिए चलाते जा रहे आन्दोलन की हवा निकाली जाये और दूसरे किसी प्रकार संघ का हौवा खड़ा कर अल्पसंख्यकों के मतों का ध्रुवीकरण कर कांग्रेस के पक्ष में लाया जा सके जो विगत बहुत वर्षों से कांग्रेस की कुटिल चालों को समझते हुए उससे दूर हो गए हैं. चलिए, यह तो सभी राजनैतिक दलों की अपनी-अपनी चालें हैं जिन्हें चलने का उन्हें अधिकार भी है. सभी दल एक दूसरे के विरुद्ध आरोप लगाने का कोई भी मौका चूकते नहीं. लेकिन इतना तो स्पष्ट है कि इस राष्ट्रवादी सामाजिक संगठन को कांग्रेस या किसी अन्य दल से किसी प्रकार के प्रमाणपत्र की आवश्यकता नहीं है. हाँ इतना तो स्पष्ट है कि संघ के नाम पर टीम अन्ना जो बात अब स्वीकार कर रही है वह उसे बहुत पहले ही मान लेना चाहिए था कि भ्रष्टाचार के विरुद्ध चलाये जा रहे इस देश व्यापी जन आन्दोलन में सभी ने बड़ चढ़ कर भाग लिया जिसमें संघ के कार्यकर्ता भी हैं.
अब २०१२ में लगता है कि दिगविजय सिंह पर पलटवार करने का टीम अन्ना और संघ के लोगों का समय आया है. संघ के मुखपत्र पांचजन्य ने कांची के शंकराचार्य द्वारा १९९७ को हरिद्वार में आयोजित हिन्दुओं के एक कार्यक्रम का चित्र प्रकाशित किया है जिसमें दिग्गी राजा विश्व हिंदु परिषद् के अन्तराष्ट्रीय अध्यक्ष अशोक सिंगल और सर संघचालक रज्जू भैया के मध्य बैठे दिखाई दे रहे हैं. इससे पूर्व टीम अन्ना की सदस्या किरण बेदी भी संघ के पदाधिकारियों के साथ दिग्गी राजा के चित्र नेट पर जारी कर चुकी हैं. अब इस पर दिग्गी राजा का कहना है कि वह पार्टी शीर्ष से अनुमती लेकर ही वहाँ गए थे. उनके कई अन्य साथियों ने हरिद्वार की इस तस्वीर का स्पष्टीकरण देते हुए कहा कि मुख्य मंत्री को अनेक संगठनों में बुलाया जाता है और वहाँ जाना उसका दायित्व होता है. कुछ ने इसको बहुत ही हलके में लेते हुए तस्वीरों और विचारधारा में अंतर भी देश को समझाने का प्रयत्न किया.
इस सारे प्रकरण पर अब एक बढ़ा प्रश्न यह खड़ा होता है कि किसी के साथ किसी की तस्वीर क्या प्रमाणित करती है ? संघ के लोगों के साथ हिन्दुओं के कार्यक्रम में सम्मिलित होने की अनुमति विशेषकर ऐसे लोगों के साथ जिन पर विवादित ढांचे को गिराने का आरोप उन्हीं की पार्टी लगा जगा रही है, क्या सन्देश देता है ? मुझे ध्यान है कि आपातकाल से पूर्व प्रसिद्द तस्कर हाजी मस्तान और आन्नद मार्ग के अनुयायियों के साथ खींची गईं कांग्रेस के अनेक नेताओं की तसवीरें १९७७ में आपातकाल समाप्त होने के पश्चात् तमाम समाचार पत्रों व लघु पुस्तिकाओं में प्रकाशित हुई थीं. इन सब का क्या अर्थ निकाला जाये ? इसी प्रकार बहुत से अन्य नेताओं की विभिन्न कार्यक्रमों के दौरान दूसरे दल के नेताओं के साथ खींची गई तस्वीरों का क्या अर्थ निकाला जाये ? संघ के स्वयं सेवक अपनी प्रातः की शाखाओं और शिविरों में गाये जाने वाली प्रातः स्मरण नाम की पुस्तिका में महात्मा गाँधी सहित देश के अनेक वीर पुरुषों और महान व्यक्तियों के नाम का स्मरण किया जाता है. तो इसका क्या अर्थ निकाला जाये ? क्या प्रातः स्मरणीय यह सभी वीर और महान जन संघ की विचारधारा को मानने वाले लोग थे ? मेरी स्मरण शक्ति के हिसाब से शायद वर्धा के संघ शिविर में स्वयं महात्मा गाँधी सम्मिलित हुए थे, तो इसका क्या अर्थ हुआ ? १९६२ के युद्ध के पश्चात् १९६३ में देश के प्रथम प्रधानमंत्री के आमंत्रण और अनुमति पर संघ के स्वयं सेवकों ने पूर्ण गणवेश पहन कर परेड में पद संचलन किया था, इसका भी क्या अर्थ हुआ ? जहाँ तक मुझे जानकारी है संघ के प्रकाशन विभाग ने बहुत से महान जनों की जीवनी पर पुस्तिकों का प्रकाशन किया है, जिनमें महात्मा गाँधी भी है और यदि दिग्गी राजा की मानें तो शायद अन्ना हजारे की जीवनी भी है. दिग्गी राजा का यह कथन कितना हास्यास्पद है कि चूँकि संघ ने अन्ना पर पुस्तक का प्रकाशन किया है दिग्गी पर नहीं, तो इसलिए अन्ना हजारे संघ की विचारधारा के व्यक्ति हैं. भ्रष्टाचार उन्मूलन के लिए लड़ रहे वयोवृद्ध अन्ना हजारे के विरोधियों की सूचना के लिए बताना चाहूँगा मेरी जानकारी की दृष्टि से जिन लोगों ने समाज के लिए महान कार्य किये है या देश के लिए अपने प्राणों की आहुति दी है, केवल उन्हीं की पुस्तिका का प्रकाशन संघ ने किया है. अब जब दिग्गी राजा ने कोई ऐसा काम अभी तक किया ही नहीं है तो उनके नाम की पुस्तक संघ क्या कांग्रेस पार्टी भी प्रकाशित नहीं करेगी.
आने वाले दिनों में तस्वीरों की यह जंग और तेज होगी, ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है. अब अगला प्रहार दिग्गी राजा की तरफ से होगा या टीम अन्ना और संघ की ओर से यह देखेंगे हम लोग
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