लखनऊ : यह समाजवादी पार्टी का नया चेहरा है। कल तक पिता जिन लोगों को आंखो पर बिठाते थे, आज पुत्र उन्हें राजनीति की नयी परिभाषा समझाने में जुटा है। लोग उसे अहंकारी कहें या फिर नासमझ, उसे इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता। वह अब समाजवाद को अपने नजरिये से समझना और समझाना चाहता है। इस राह में जो रोड़ा बनेगा उसे मुंह की खानी पड़ेगी। फिर चाहे वह चाचा शिवपाल हों या फिर पिता के सिरमौर आजम खां। बात अखिलेश यादव की हो रही है। अखिलेश समाजवादी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष हैं। यह बात सबकी समझ में आना चाहिए कि यूपी में समाजवादी पार्टी में वही होगा जो यहां का अध्यक्ष चाहेगा। अब पार्टी में इन तेवरों से अच्छा होगा या बुरा यह अभी से तय करना गलत है। पर जो तय है वह यह कि पार्टी में अब एक खेमा ऐसा भी तैयार हो रहा है जो उनकी गलत चाल का इंतजार कर रहा है।
अफसोस कि यह लोग अपने हैं। बहुत अपने। अखिलेश यादव की अग्नि परीक्षा शुरू हो गयी है। देखना यह होगा कि वह इसमे किस हद तक सफल होते हैं। ताजा मामला डीपी यादव का है। इस मामले में आजम खां की किरकिरी होने के बाद एक नए तूफान की आहट साफ सुनाई पडऩे लगी है। मुलायम सिंह यादव के लिए यह आसान भी नहीं था कि यूपी का अपना ताज वह अपने भाई या पुत्र में किसको सौंपे। मुलायम सिंह ने लंबे अरसे से अपने परिवार को जिस तरह से एकता की डोर में बांधे रखा था वह काबिले तारीफ था। मगर कुछ समय पहले उनके सामने अग्नि परीक्षा थी। आखिर में पुत्र मोह भारी पड़ा। अखिलेश यादव की यूपी अध्यक्ष पद पर ताजपोशी कर दी गयी।
सूत्रों का कहना है कि शिवपाल सिंह यादव को यह बुरा तो बहुत लगा पर वह खामोश हो गये। उन्हें लगता था कि नेताजी के बाद स्वाभाविक रूप से इस पद पर उनका ही हक है। मगर हालात देखते हुए वह खामोश हो गये। इसके बाद समाजवादी पार्टी की कमान संभालते ही अखिलेश यादव ने युवाओं को जोडऩे का आह्वान किया। लोग उनकी तुलना कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी से करने लगे। अखिलेश की सक्रियता ने उन लोगों की जुबान भी बंद कर दी जो उम्र दराज होने के कारण अखिलेश के नेतृत्व में काम करने में असहज महसूस कर रहे थे। इसके बाद जब अखिलेश यादव अपना क्रांति रथ लेकर यूपी के दौरे पर निकले तो सपा कार्यकर्ताओं में उत्साह का संचार हुआ। सूत्रों का कहना है कि अखिलेश द्वारा क्रांति रथ निकालने का आइडिया इसलिए दिया गया था जिससे चाचा शिवपाल सिंह यादव का प्रभाव कुछ कम हो जाय। अखिलेश ने इस क्रांति रथ के बहाने मेहनत की और उन्हें कामयाबी भी मिली।
इस बीच में यह चर्चा भी जोरों पर चलने लगी कि अगर समाजवादी पार्टी की सरकार बनती है तो प्रदेश का मुख्यमंत्री कौन होगा। पार्टी का एक धड़ा शिवपाल सिंह यादव की वकालत कर रहा था तो दूसरी ओर एक खेमा अखिलेश यादव को सूबे का मुख्यमंत्री बनाने पर तुला था। यह खेमे बाजी और बढ़ती मगर सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव ने इसमें हस्तक्षेप किया। इस बीच कुछ लोग अखिलेश को यह भी समझाने में जुट गये कि राजनीति में कोई किसी का नहीं होता। सत्ता हासिल करना ही सबसे बड़ा मूल मंत्र होता है। इस ख्याल ने अखिलेश और शिवपाल के बीच दूरी और बढ़ा दी।
इसमें सबसे बड़ा विवाद मायावती के सबसे करीबी मंत्री नसीमुद्दीन सिद्दीकी के भाई हसीउद्दीन सिद्दीकी को लेकर रहा। कानपुर में शिवपाल सिंह यादव ने अपने सामने उन्हें समाजवादी पार्टी की सदस्यता ग्रहण करायी। इस बात से बसपा खेमे में हड़कंप मच गया। लोग शिवपाल सिंह यादव के इस कदम की सराहना करने लगे। मगर तभी अखिलेश यादव के करीबी लोगों ने उन्हें समझाया कि इससे तो शिवपाल सिंह यादव की हैसियत और बढ़ जाएगी। उत्साही अखिलेश यादव ने बिना सोचे समझे बयान दे दिया कि हसीउद्दीन सिद्दीकी समाजवादी पार्टी में नही हैं। इस बयान से शिवपाल सिंह को भी खासी मिर्ची लगी। उन्होंने भी इसे अपनी प्रतिष्ठा का सवाल बनाया और कहा कि हसीउद्दीन को मैने पार्टी ज्वाइन कराई है और वह पार्टी में ही हैं।
मामला अभी और बढ़ता मगर स्थितियों की गंभीरता को देखते हुए नेताजी ने इसमे दखल दिया और दोनो लोगों को शांत कराया। अखिलेश यादव इसके बाद उत्साह में कुछ ज्यादा ही मुखर हो गये। वे पार्टी के बड़े लोगों को भी अप्रत्यक्ष रूप में यह समझाने में जुट गये कि प्रदेश के सबसे बड़े नेता वहीं हैं। इसी क्रम में उन्होंने आजम खां को भी उनकी हैसियत बताने में जरा भी देर नहीं लगायी। आजम खां ने अपने घर में डीपी यादव को बुलाकर घोषणा की कि डीपी यादव उनके साथ हैं। डीपी यादव ने भी कहा कि उन्होंने नेताजी से अपने मतभेद दूर कर लिये हैं। अखिलेश यादव को यह बात भी नागवार गुजरी कि उनसे पूछे बिना इतना बड़ा फैसला आजम खां कैसे कर सकते हैं। लिहाजा पलटवार करते हुए अखिलेश ने चाचा शिवपाल की तरह आजम खां को भी निपटा दिया। उन्होंने कहा कि डीपी यादव सहित किसी भी अपराधी की समाजवादी पार्टी में कोई जगह नहीं है। आजम खां इस बयान पर भौंचक्के रह गये। उन्हें यकीन था कि उनकी बात काटने की हिम्मत मुलायम सिंह यादव तक नहीं करते तो किसी और की हैसियत ही क्या है। मगर वह यह भूल गये कि जब पीढ़ी का बदलाव होता है तो कई मान्यतायें टूटती हैं।
शुरुआती दौर में आजम खां इसका जवाब देने वाले थे मगर हालात को देखते हुए वे खामोश रह गये और कहा कि अखिलेश यादव पार्टी के अध्यक्ष हैं। वह जिसको चाहें पार्टी में रखें यह उनका निजी फैसला है। मगर आजम को नजदीक से जानने वाले जानते हैं कि आजम अपना अपमान जल्दी भूलते नहीं हैं। अखिलेश ने उनकी भावनायें आहत करके एक गलत चाल चल दी है। देखना यह है कि अखिलेश की यह चाल उन्हें पार्टी का प्रभावशाली युवराज स्थापित करती है या फिर राजनीति के शतरंज पर वह किसी जाल में उलझेंगे। अखिलेश यादव ने युवा नेता के रूप में अपनी छवि तो बनाने की कोशिश की है मगर सभी लोगों का कहना है कि अभी उन्हें नेताजी से बहुत कुछ सीखना बाकी है। प्रदेश में जिस तरह समाजवादी पार्टी दबाव में अपने प्रत्याशी बदल रही है उससे यही सिद्ध होता है। सुल्तानपुर के लम्भुआ क्षेत्र में एक दर्जन प्रत्याशी बदलकर पार्टी अपनी पहले ही भद्द पिटवा चुकी है। आने वाले विधानसभा चुनाव के नतीजे तय कर देंगे कि यूपी का सिंहासन इस युवराज के लिए खाली है या फिर उनके अपने ही उन्हें राजनीतिक वियाबान में गुम कर देंगे।
लखनऊ से वरिष्ठ पत्रकार संजय शर्मा की रिपोर्ट. उनका यह लिखा उनके हिंदी वीकली ''वीकएंड टाइम्स'' में कवर स्टोरी के रूप में
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