-सतीश चंद्र मिश्र ।।
अगर अन्ना हजारे को बुखार आ गया था तो अन्ना टीम के स्टील बॉडी वाले केजरीवाल, तगड़ी-तंदरुस्त किरण बेदी और मजबूत डीलडौल वाले हट्टे-कट्टे मनीष और “मंचीय मसखरे” कुमार विश्वास क्यों नहीं बैठे अनशन पर…?
यदि स्वास्थ्य कारणों से अन्ना का जेल जाना संभव नहीं था तो ये लोग ही अनशन जारी रखते और जेल चले जाते…? लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ.
दरअसल बाबा रामदेव और उनकी कालाधन विरोधी मुहिम के सफाए के लिए प्रारम्भ में स्वयम सरकार द्वारा प्रायोजित “जनलोकपाली सर्कस” में जब अन्ना टीम की लाख विरोधी कोशिशों के बावजूद संघ भाजपा और अन्य विपक्षी दलों ने अपनी जबर्दस्त भागीदारी जबरदस्ती कर ली तब इस सर्कस के तरकश से जो तीर निकलना शुरू हुए वो तीर भ्रष्टाचार के कैंसर से साष्टांग संक्रमित सरकार और कांग्रेस के लिए जानलेवा सिद्ध होने लगे.
यदि स्वास्थ्य कारणों से अन्ना का जेल जाना संभव नहीं था तो ये लोग ही अनशन जारी रखते और जेल चले जाते…? लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ.
दरअसल बाबा रामदेव और उनकी कालाधन विरोधी मुहिम के सफाए के लिए प्रारम्भ में स्वयम सरकार द्वारा प्रायोजित “जनलोकपाली सर्कस” में जब अन्ना टीम की लाख विरोधी कोशिशों के बावजूद संघ भाजपा और अन्य विपक्षी दलों ने अपनी जबर्दस्त भागीदारी जबरदस्ती कर ली तब इस सर्कस के तरकश से जो तीर निकलना शुरू हुए वो तीर भ्रष्टाचार के कैंसर से साष्टांग संक्रमित सरकार और कांग्रेस के लिए जानलेवा सिद्ध होने लगे.
इसके चलते कांग्रेसी किराये और संरंक्षण में लगाये-सजाये गए इस “जनलोकपाली सर्कस” के नटों और कलाबाजों(अन्ना टीम) को भी अपना रंग बदलना पडा. अतः अपनी बिल्ली को अपने ही खिलाफ म्याऊं करते देख कांग्रेसी सरकार के तेवर तीखे हुए. उसने जो लोकपाल बनाया उसमें इन बिल्लियों(NGO’s) को तो शामिल किया ही साथ ही साथ इन बिल्लियों को अपने दान का दूध पिलाने वाले इनके कार्पोरेटी आकाओं को भी सरकारी लोकपाल के दायरे में शामिल कर लिया और उनके कार्पोरेटी टुकड़ों पर पलने वाले मीडिया पर भी लोकपाली शिकंजा कस दिया था, इस से पहले इन कार्पोरेटी भोंपुओं को जस्टिस काटजू के बहाने बहुत मोटा डंडा दिखा कर सरकार उनके होश पहले भी उड़ा ही चुकी थी.
इसीलिए पिछली बार जब रामलीला मैदान में भी 20,000 से अधिक भीड़ कभी इकठ्ठा नहीं हुई थी तब उसे लाखों का जनसैलाब उमड़ा बताने वाले और देश के कुछ महानगरों में 100, 50 या फिर 500 तक की भीड़ को सड़कों पर देश उमड़ा बताने वाले मीडिया ने इस बार मुंबई के जनलोकपाली मजमें के दोनों दिन कैमरों की कलाबाजी से हजारों को लाखों में बदलने के बजाय वहाँ लोटते रहे कुत्तों और भिनभिनाती रही मक्खियों का सच ही दिखाया. जनलोकपाली सर्कस के बेलगाम नटों और मदारियों के कान उनके कार्पोरेटी आकाओं ने भी ऐन्ठें. इसीलिए पिछली बार रामलीला मैदान में कार्पोरेटी कृपा से किराये पर बुलाये बैठाये गए वे दर्जनों जोकर इस बार कहीं नहीं दिखे जो पिछली बार रामलीला मैदान में राम, रावण, हनुमान, महात्मा गांधी, शिवाजी, भगत सिंह आदि का भेष बना के तेरह दिनों तक घुमते रहे थे. सरकार द्वारा खुद पर कसे गए लोकपाली शिकंजे से कुपित कार्पोरेट जगत की कोपदृष्टि के ताप से मुरझाये आर्थिक स्त्रोतों की मार का कहर टीम अन्ना के उन इवेंट मैनेजरों पर भी पडा जिन्होंने पिछली बार रामलीला मैदान में ढोल ताशों वाले पढ़े-कढ़े जनलोकपाली भक्तों की भरमार कर दी थी.
इसके अलावा सरकार ने भी लोकपाली शिंकजा कस के NGO के गोरखधंधे पर पूरी तरह आश्रित टीम अन्ना के विदेशी दाने-पानी पर प्रतिबन्ध का पुख्ता प्रबंध कर दिया था.अतः इस सर्कस के NGO धारी सारे नट और नटनी, मदारी तत्काल अपना चोला बदलने पर मजबूर हो गए और सरकार से जैसे तैसे समझौता किया. परिणामस्वरूप सरकार के जिस लोकपाल बिल के दायरे में पहले कार्पोरेट, मीडिया और विदेशी चंदा पाने वाले NGO’s को शामिल किया गया था वहीं किसी भी राजनीतिक दल द्वारा बिना किसी जोरदार मांग के संशोधनों की आड़ में सरकार ने इन तीनों को बाहर कर दिया और देश बचाओ का नारा लगाने वाली टीम अन्ना ने “जान बची लाखों पाये” का जाप करते हुए आनन् फानन में अनशन, धरने, जेल भरो आन्दोलन, सरीखे अपने वायदों दावों को ठेंगा दिखाते हुए MMRDA मैदान से अपना बोरिया-बिस्तर समेटा और भाग खड़े हुए. इनके ठेंगे पर गया देश और समाज के लिए संघर्ष.
अब अपने आकाओं से नया निर्देश मिलने के बाद नटों और नटनियों की ये टोली कब और कैसे सक्रिय होगी और अपने कौन से नए सर्कस का रंगबिरंगा तम्बू कब कहाँ और कैसे गाड़ेगी…? यह देखना रोचक होगा
अब अपने आकाओं से नया निर्देश मिलने के बाद नटों और नटनियों की ये टोली कब और कैसे सक्रिय होगी और अपने कौन से नए सर्कस का रंगबिरंगा तम्बू कब कहाँ और कैसे गाड़ेगी…? यह देखना रोचक होगा
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