-शौचालय को ऐसी जगह बनाएँ जहाँ से सकारात्मक ऊर्जा न आती हो
-शौचालय बनाते वक्त काफी सावधानी रखना चाहिए, नहीं तो ये हमारी सकारात्मक ऊर्जा को नष्ट कर देते हैं और हमारे जीवन में शुभता की कमी आने से मन अशांत महसूस करता है। इसमें आर्थिक बाधा का होना, उन्नति में रुकावट आना, घर में रोग घेरे रहना जैसी घटना घटती रहती है।
-शौचालय को ऐसी जगह बनाएँ जहाँ से सकारात्मक ऊर्जा न आती हो व ऐसा स्थान चुनें जो खराबऊर्जा वाला क्षेत्र हो। घर के दरवाजे के सामने शौचालय का दरवाजा नहीं होना चाहिए, ऐसी स्थिति होने से उस घर में हानिकारक ऊर्जा का संचार होगा।
-इशान भाग में यदि शोचालय हो तो अच्छी असर देने वाले ये किरण दूषित होते हे ,इस के फायदा होने के बजाय हानी होती है..वास्तु शास्त्र में अग्नि कोण का साधारण महत्व हे सूर्योदय के बाद मानव जीवाण की प्रक्रिया पैर विपरीत असर देने वाले इन्फ्रा रेड किरण जो पानी में घुल जाये तो सजीवो को हानी पहुंचती हे
-इस का आधार लेके वास्तु शास्त्र में अग्नि और पानी ये दोनों तत्व एक दुसरे के साथ मेल नही खाने वाले तत्व हे ऐसा कहा गया हे की सूर्य जब जब ऊपर आये या अस्त हो तब तब मानव के शरीर की जेव रासायनिक क्रिया पर और वास्तु पर उस का असर होता हे सूर्य अस्त होने के बाद सूर्य क्र किरण जमीन पर काम नही करते तब दूसर के ग्रहों की प्रबलता यानि उनके किरणों की प्रबलता बढ़ जाती है...
-किसी भी घर में बना देवस्थान/ पूजाघर शोचालय से दूर होना चाहिए...या दोनों की दीवारें अलग-अलग होनी चाहिए...
-किसी भी भवन/माकन की पूर्व में बना शोचालय घर की औरतों को रोगों से ग्रस्त रखता है..साथ ही मानसिक परेशानी भी देता है..इस दोष के कारण परिवार में संतान में उत्पत्ति में अनेक प्रकार की बाधाएं/परेशानियाँ आती हें...
-अगर पानी की जगह अग्नि या मंदिर की गह शोचालय हो तथा अन्य प्रकार के दोष हो तो वास्तु दोष निवारण यंत्र/सूर्य यंत्र/के लगाने से यह निवारण हो जाता है यह विधि पूर्वक जप के पश्चात ही घर या ऑफिस या दुकान में रखना चाहिये....
-सोते वक्त शौचालय का द्वार आपके मुख की ओर नहीं होना चाहिए। शौचालय अलग-अलग न बनवाते हुए एक के ऊपर एक होना चाहिए।
-ईशान कोण में कभी भी शौचालय नहीं होना चाहिए, नहीं तो ऐसा शौचालय सदैव हानिकारक ही रहता है।
-शौचालय का सही स्थान दक्षिण-पश्चिम में हो या दक्षिण दिशा में होना चाहिए। वैसे पश्चिम दिशा भी इसके लिए ठीक रहती है।
-शौचालय का द्वार मंदिर, किचन आदि के सामने न खुलता हो। इस प्रकार हम छोटी-छोटी बातों का ध्यान रखकर सकारात्मक ऊर्जा पा सकते हैं व नकारात्मक ऊर्जा से दूर रह सकते हैं।
-अधिक समस्या/परेशानी होने पर किसी योग्य -अनुभवी वास्तुशास्त्री से परामर्श/सलाह लेनी चाहिए...(पंडित दयानन्द शास्त्री, प्रैसवार्ता)
-शौचालय बनाते वक्त काफी सावधानी रखना चाहिए, नहीं तो ये हमारी सकारात्मक ऊर्जा को नष्ट कर देते हैं और हमारे जीवन में शुभता की कमी आने से मन अशांत महसूस करता है। इसमें आर्थिक बाधा का होना, उन्नति में रुकावट आना, घर में रोग घेरे रहना जैसी घटना घटती रहती है।
-शौचालय को ऐसी जगह बनाएँ जहाँ से सकारात्मक ऊर्जा न आती हो व ऐसा स्थान चुनें जो खराबऊर्जा वाला क्षेत्र हो। घर के दरवाजे के सामने शौचालय का दरवाजा नहीं होना चाहिए, ऐसी स्थिति होने से उस घर में हानिकारक ऊर्जा का संचार होगा।
-इशान भाग में यदि शोचालय हो तो अच्छी असर देने वाले ये किरण दूषित होते हे ,इस के फायदा होने के बजाय हानी होती है..वास्तु शास्त्र में अग्नि कोण का साधारण महत्व हे सूर्योदय के बाद मानव जीवाण की प्रक्रिया पैर विपरीत असर देने वाले इन्फ्रा रेड किरण जो पानी में घुल जाये तो सजीवो को हानी पहुंचती हे
-इस का आधार लेके वास्तु शास्त्र में अग्नि और पानी ये दोनों तत्व एक दुसरे के साथ मेल नही खाने वाले तत्व हे ऐसा कहा गया हे की सूर्य जब जब ऊपर आये या अस्त हो तब तब मानव के शरीर की जेव रासायनिक क्रिया पर और वास्तु पर उस का असर होता हे सूर्य अस्त होने के बाद सूर्य क्र किरण जमीन पर काम नही करते तब दूसर के ग्रहों की प्रबलता यानि उनके किरणों की प्रबलता बढ़ जाती है...
-किसी भी घर में बना देवस्थान/ पूजाघर शोचालय से दूर होना चाहिए...या दोनों की दीवारें अलग-अलग होनी चाहिए...
-किसी भी भवन/माकन की पूर्व में बना शोचालय घर की औरतों को रोगों से ग्रस्त रखता है..साथ ही मानसिक परेशानी भी देता है..इस दोष के कारण परिवार में संतान में उत्पत्ति में अनेक प्रकार की बाधाएं/परेशानियाँ आती हें...
-अगर पानी की जगह अग्नि या मंदिर की गह शोचालय हो तथा अन्य प्रकार के दोष हो तो वास्तु दोष निवारण यंत्र/सूर्य यंत्र/के लगाने से यह निवारण हो जाता है यह विधि पूर्वक जप के पश्चात ही घर या ऑफिस या दुकान में रखना चाहिये....
-सोते वक्त शौचालय का द्वार आपके मुख की ओर नहीं होना चाहिए। शौचालय अलग-अलग न बनवाते हुए एक के ऊपर एक होना चाहिए।
-ईशान कोण में कभी भी शौचालय नहीं होना चाहिए, नहीं तो ऐसा शौचालय सदैव हानिकारक ही रहता है।
-शौचालय का सही स्थान दक्षिण-पश्चिम में हो या दक्षिण दिशा में होना चाहिए। वैसे पश्चिम दिशा भी इसके लिए ठीक रहती है।
-शौचालय का द्वार मंदिर, किचन आदि के सामने न खुलता हो। इस प्रकार हम छोटी-छोटी बातों का ध्यान रखकर सकारात्मक ऊर्जा पा सकते हैं व नकारात्मक ऊर्जा से दूर रह सकते हैं।
-अधिक समस्या/परेशानी होने पर किसी योग्य -अनुभवी वास्तुशास्त्री से परामर्श/सलाह लेनी चाहिए...(पंडित दयानन्द शास्त्री, प्रैसवार्ता)
आपकी जन्मकुंडली बताएगी.. कहाँ खर्च होगा आपका धन..!!!
किसी भी जातक की कुंडली का द्वितीय भाव धन व आर्थिक स्थिति को बताता है। इससे परिवार सुख व पैतृक संपत्ति की भी सूचना मिलती है। द्वितीय भाव में जो राशि होती है, उसका स्वामी द्वितीयेश कहलाता है। इसे धनेश भी कहते हैं।
1. धनेश लग्न में होने से परिवार से प्रेम रहता है, आर्थिक व्यवहार में पटुता हासिल होती है।
2. धनेश धन स्थान में हो तो परिवार का उत्कर्ष होता है व आर्थिक स्थिति हमेशा अच्छी रहती है।
3. धनेश तृतीय में हो तो भाई-बहनों की उन्नति व लेखन से आर्थिक लाभ का सूचक है।
4. धनेश चतुर्थ में हो तो माता-पिता से सतत सहयोग व लाभ मिलता है, चैन से जीवन बीतता है।
5. धनेश पंचम में हो तो कला से धनार्जन, संतान के लिए सतत खर्च करना पड़ता है।
6. धनेश षष्ठ में हो तो कमाया गया धन बीमारियों के लिए खर्च होता है, अतिविश्वास से धोखा होता है।
7. धनेश सप्तम में हो तो पत्नी/पति व घर के लिए ही सारा धन खर्च होता रहता है।
8. धनेश अष्टम में हो तो गलत तरीके से पैसा कमाने की वृत्ति रहती है व उससे आरोप-प्रत्यारोप लगते हैं।
9. धनेश नवम में हो तो आर्थिक योग उत्तम, व्यवसाय के लिए दूर की यात्रा के योग आते हैं।
10. धनेश दशम में होने पर नौकरी से लाभ, पैतृक संपत्ति भरपूर मिलती है।
11. धनेश ग्यारहवें स्थान में होने पर मित्र-संबंधियों से सतत सहयोग व लाभ मिलता है।
12. धनेश व्यय में हो तो बीमारी, कोर्ट-कचहरी में धन व्यय होता है। दान-धर्म में भी खर्च होता है।(पंडित दयानन्द शास्त्री, Sabhar -प्रैसवार्ता)
1. धनेश लग्न में होने से परिवार से प्रेम रहता है, आर्थिक व्यवहार में पटुता हासिल होती है।
2. धनेश धन स्थान में हो तो परिवार का उत्कर्ष होता है व आर्थिक स्थिति हमेशा अच्छी रहती है।
3. धनेश तृतीय में हो तो भाई-बहनों की उन्नति व लेखन से आर्थिक लाभ का सूचक है।
4. धनेश चतुर्थ में हो तो माता-पिता से सतत सहयोग व लाभ मिलता है, चैन से जीवन बीतता है।
5. धनेश पंचम में हो तो कला से धनार्जन, संतान के लिए सतत खर्च करना पड़ता है।
6. धनेश षष्ठ में हो तो कमाया गया धन बीमारियों के लिए खर्च होता है, अतिविश्वास से धोखा होता है।
7. धनेश सप्तम में हो तो पत्नी/पति व घर के लिए ही सारा धन खर्च होता रहता है।
8. धनेश अष्टम में हो तो गलत तरीके से पैसा कमाने की वृत्ति रहती है व उससे आरोप-प्रत्यारोप लगते हैं।
9. धनेश नवम में हो तो आर्थिक योग उत्तम, व्यवसाय के लिए दूर की यात्रा के योग आते हैं।
10. धनेश दशम में होने पर नौकरी से लाभ, पैतृक संपत्ति भरपूर मिलती है।
11. धनेश ग्यारहवें स्थान में होने पर मित्र-संबंधियों से सतत सहयोग व लाभ मिलता है।
12. धनेश व्यय में हो तो बीमारी, कोर्ट-कचहरी में धन व्यय होता है। दान-धर्म में भी खर्च होता है।(पंडित दयानन्द शास्त्री, Sabhar -प्रैसवार्ता)
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