बड़े दिनों से मैंने टेबूल के नीचे से रिश्वत लेना छोड़ दिया है! कारण, ये चोरी छिपे रिश्वत लेते हुए आत्मग्लानि तो नही पर कम्बख्त ग्लानि सी होती थी। अरे साहब, रिश्वत लेनी ही है, तो सीना तान कर लो। और मैनें तो जिंदगी में जो भी काम किया है, सीना ठोक बजाकर किया है। इसलिए अब मैं रिश्वते टेबूल के ऊपर से लेता हूं। बड़ा मजा आता है रिश्वत लेते हुए। बस अपनी यहीं दिल की तमन्ना है कि मरने से पहले राष्ट्रीयस्तर का रिश्वतखोर होकर मरूं। अब तो हाथ में ज्यों ही रिश्वत के पैसे पकड़ता हूं, लगता है इस ढलती उम्र में किसी नवयौवना का हाथ पकड रहा होऊं।
कल फिर उनकी फाइल के बदले सौ के नोट के रूप में नवयौवना का हाथ सा पकडऩे का अहसार कर रहा था कि एकदम फाइलों से भरी अलमारी के दोनों पल्ले खुलें। मैंने सोचा, कहीं भूकंप आ गया होगा। पर वैसा कुछ नहीं था। अलमारी के पल्ले खुलते ही अचानक उनमें से भगवान निकले तो कुछ देर के लिए मेरी घिग्घी बंध गई। मन सोचने लगा-ये कैसा समय आ गया रे भ्रष्टाचारी। अब तो भगवान चोर उचक्कों के भी दर्शन करने लग गए। पहले तो कई जनम बीत जाते थे तपस्या में। तब जाकर भी भगवान ने बंदे के दर्शन तो कर लिए। मैंने अपनी कुर्सी पर वैसे ही रिश्वत लेने की मुद्रा में बैठे-बैठे पूछा, भगवान ये क्या। आप पुजारियों को छोड़ हम भ्रष्टाचारियों के कब से हो गए?
तब से जबसे मेरे तथाकथित भक्तों ने पाखंड धारण कर लिया। वे दिखावे को तो मेरे नजदीक होने का दावा करते है पर होते हुए मुझसे कोसों दूर है। वे मेरा नाम बेचकर मुझसे अमीर हो रहे है और इधर मैं दो जून की रोटो से भी मोहताज। वे मेरे नाम का मंत्र ही दु:खी को मनमाने दावों मे बेच रहे है और मेरे माथे पर चंदन भी नकली लगा रहे है। न मेरे स्वास्थय का ध्यान, न मेरे रहन-सहन का। और अपने आप संसारियों से ज्यादा मौज में।
सच कहूं तो हे भ्रष्टाचारी। मेरे आज इन चेलों ने मुझे बदनाम करके रख दिया है। जो ईमानदार है, कर्म करने वाला है वह तो मुझे आज मानता ही नहीं। मैं तो आज ज्यों मुफ्त का खाने वालों का साथ देने वाला होकर रह गया हूं बस। जिसे संसार में अब हाथ-पांव न हिलाने हों, वह मुझे बेचकर चांदी बटोर रहा है। जनता भी बेचारी क्या करें? बोस पचास में आज मेरे सिवाय और आता ही क्या हैं? सो मुझे खरीद लेती है हर मेरे लाले से। पर चलों, इस बहाने जनता कुछ तो खरीद रही है और मेरा लाला सारा दिन मुझे बेच रात को मजे से फाइव स्टार होटल में जा धमकता है और मैं...मैं तो रह जाता हूं गिरते-पड़ते मंदिर में भूखे प्यासे भक्तों की फरियाद सुनता और वे चला रहे है मेरे नाम के इक्ट्ठे किए पैसों से रेस्तरा, होटल, बार। इसलिए अब मैने सोचा कि दोगले लोगों से बेहतर है कि तुम जैसे लोगों के दर्शन किए जाएं। तुम कम से कम खुले मन से भ्रष्टाचारी तो हो। ईमानदार होने का कोई ढोंग तो नहीं करते। बस, इसलिए मेरा मन तुम्हारें दर्शन करने को हो गया। अत: अब हे परिवार के नखरों मारे प्राणी।
निस्संकोच कहो, हर रोज रिश्वत लेने के बाद भी तुम्हारी कोई इच्छा शेष हो तो। प्रभु ने कहा तो बड़ी हंसी आई। रिश्वत शान से लेने वालें की इस देश में शायद ही कोई इच्छा शेष रहती होगी। पर अभी भी देश सरकार भरोसे नहीं, भगवान भरोसे चल रहा है, यह सोच गंभीर रहा। प्रभु! अब आप पूछ ही रहे हो तो आपसे छुपाना क्या। खाते-खाते तो इस मायावी संसार में थका कौन, पर सच कहूं तो बरसों में एक ही कुर्सी पर सोते-सोते थक सा गया हूं। एक ही कुर्सी पर बंदा अपनों को ढोए तो कितना। हालांकि लोग देते हुए कहते तो कुछ नहीं पर कभी कभी पता नहीं क्यों लेते हुए कुछ-कुछ शर्म सी महसूस होती है। कहीं दिमाग के आसपास, तो प्रभु ने पास की खाली कुर्सी पर बैठते हुए कहा, तो?? तो क्या प्रभु। दफ्तर में कुर्सी पर पार्न सपने लेते लते बहुत थक लिया। बस, मरने से पहले विधानसभा की कुर्सी पर चैन से पसर एक-दो पार्न फिल्म देखना चाहता हूं प्रभु। फिर चाहे इस्तीफा देना पड़े तो पडे। अण्ण जेल भिजवाने की बात करे तो करते रहें। पर मुझे तो पता है नेताओं को तो हर हाल में स्वर्ग मिलता आया है और आगे भी मिलता रहेगा। आप में दम है तो मेरी आखिरी इच्छा पूरी कर दो। मैंने उनमें फूंक भरी तो कुछ देर तक हंसने के बाद बड़े अपनापे से समझौते पर कहा, भक्त। मोक्ष मांग लो। फिर स्वर्ग में सिहांसन पर सोए रहना, अगल-बगल में अप्सराएं ही अप्सराएं। तो मैंने कहा, प्रभु। मोक्ष लेके क्या करना। हमारे देशों में हम जैसों के जो मजे है, वैसे मजे तो देवता भी क्या करते होंगे। उनके लिए तो हम जैसी आत्माएं अब किसी अवतार से कम नहीं, तो उन्होंने मुस्कराते हुए दोनो हाथ ऊपर उठा कहा, तथास्तु।। पर पत्रकारों से जरा बचकर। इस देश में मुझसे तो बचा जा सकता है पर पत्रकारों से नहीं।
(अशोक गौतम)
कल फिर उनकी फाइल के बदले सौ के नोट के रूप में नवयौवना का हाथ सा पकडऩे का अहसार कर रहा था कि एकदम फाइलों से भरी अलमारी के दोनों पल्ले खुलें। मैंने सोचा, कहीं भूकंप आ गया होगा। पर वैसा कुछ नहीं था। अलमारी के पल्ले खुलते ही अचानक उनमें से भगवान निकले तो कुछ देर के लिए मेरी घिग्घी बंध गई। मन सोचने लगा-ये कैसा समय आ गया रे भ्रष्टाचारी। अब तो भगवान चोर उचक्कों के भी दर्शन करने लग गए। पहले तो कई जनम बीत जाते थे तपस्या में। तब जाकर भी भगवान ने बंदे के दर्शन तो कर लिए। मैंने अपनी कुर्सी पर वैसे ही रिश्वत लेने की मुद्रा में बैठे-बैठे पूछा, भगवान ये क्या। आप पुजारियों को छोड़ हम भ्रष्टाचारियों के कब से हो गए?
तब से जबसे मेरे तथाकथित भक्तों ने पाखंड धारण कर लिया। वे दिखावे को तो मेरे नजदीक होने का दावा करते है पर होते हुए मुझसे कोसों दूर है। वे मेरा नाम बेचकर मुझसे अमीर हो रहे है और इधर मैं दो जून की रोटो से भी मोहताज। वे मेरे नाम का मंत्र ही दु:खी को मनमाने दावों मे बेच रहे है और मेरे माथे पर चंदन भी नकली लगा रहे है। न मेरे स्वास्थय का ध्यान, न मेरे रहन-सहन का। और अपने आप संसारियों से ज्यादा मौज में।
सच कहूं तो हे भ्रष्टाचारी। मेरे आज इन चेलों ने मुझे बदनाम करके रख दिया है। जो ईमानदार है, कर्म करने वाला है वह तो मुझे आज मानता ही नहीं। मैं तो आज ज्यों मुफ्त का खाने वालों का साथ देने वाला होकर रह गया हूं बस। जिसे संसार में अब हाथ-पांव न हिलाने हों, वह मुझे बेचकर चांदी बटोर रहा है। जनता भी बेचारी क्या करें? बोस पचास में आज मेरे सिवाय और आता ही क्या हैं? सो मुझे खरीद लेती है हर मेरे लाले से। पर चलों, इस बहाने जनता कुछ तो खरीद रही है और मेरा लाला सारा दिन मुझे बेच रात को मजे से फाइव स्टार होटल में जा धमकता है और मैं...मैं तो रह जाता हूं गिरते-पड़ते मंदिर में भूखे प्यासे भक्तों की फरियाद सुनता और वे चला रहे है मेरे नाम के इक्ट्ठे किए पैसों से रेस्तरा, होटल, बार। इसलिए अब मैने सोचा कि दोगले लोगों से बेहतर है कि तुम जैसे लोगों के दर्शन किए जाएं। तुम कम से कम खुले मन से भ्रष्टाचारी तो हो। ईमानदार होने का कोई ढोंग तो नहीं करते। बस, इसलिए मेरा मन तुम्हारें दर्शन करने को हो गया। अत: अब हे परिवार के नखरों मारे प्राणी।
निस्संकोच कहो, हर रोज रिश्वत लेने के बाद भी तुम्हारी कोई इच्छा शेष हो तो। प्रभु ने कहा तो बड़ी हंसी आई। रिश्वत शान से लेने वालें की इस देश में शायद ही कोई इच्छा शेष रहती होगी। पर अभी भी देश सरकार भरोसे नहीं, भगवान भरोसे चल रहा है, यह सोच गंभीर रहा। प्रभु! अब आप पूछ ही रहे हो तो आपसे छुपाना क्या। खाते-खाते तो इस मायावी संसार में थका कौन, पर सच कहूं तो बरसों में एक ही कुर्सी पर सोते-सोते थक सा गया हूं। एक ही कुर्सी पर बंदा अपनों को ढोए तो कितना। हालांकि लोग देते हुए कहते तो कुछ नहीं पर कभी कभी पता नहीं क्यों लेते हुए कुछ-कुछ शर्म सी महसूस होती है। कहीं दिमाग के आसपास, तो प्रभु ने पास की खाली कुर्सी पर बैठते हुए कहा, तो?? तो क्या प्रभु। दफ्तर में कुर्सी पर पार्न सपने लेते लते बहुत थक लिया। बस, मरने से पहले विधानसभा की कुर्सी पर चैन से पसर एक-दो पार्न फिल्म देखना चाहता हूं प्रभु। फिर चाहे इस्तीफा देना पड़े तो पडे। अण्ण जेल भिजवाने की बात करे तो करते रहें। पर मुझे तो पता है नेताओं को तो हर हाल में स्वर्ग मिलता आया है और आगे भी मिलता रहेगा। आप में दम है तो मेरी आखिरी इच्छा पूरी कर दो। मैंने उनमें फूंक भरी तो कुछ देर तक हंसने के बाद बड़े अपनापे से समझौते पर कहा, भक्त। मोक्ष मांग लो। फिर स्वर्ग में सिहांसन पर सोए रहना, अगल-बगल में अप्सराएं ही अप्सराएं। तो मैंने कहा, प्रभु। मोक्ष लेके क्या करना। हमारे देशों में हम जैसों के जो मजे है, वैसे मजे तो देवता भी क्या करते होंगे। उनके लिए तो हम जैसी आत्माएं अब किसी अवतार से कम नहीं, तो उन्होंने मुस्कराते हुए दोनो हाथ ऊपर उठा कहा, तथास्तु।। पर पत्रकारों से जरा बचकर। इस देश में मुझसे तो बचा जा सकता है पर पत्रकारों से नहीं।
(अशोक गौतम)
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