सड़क के फुटपाथ से उठकर चैनल के स्टूडियों से लाइव टेलिकास्ट करने वाला बाबाओं का आज एक घराना बन गया है,- ‘बाबाओं का उद्योगपति घराना’। बड़ी-बड़ी लग्जरी गाड़ी में स्टूडियों तक आना, लेपटाप और ज्योतिष के अंक गणित से लोगों का भूत, वर्तमान और भविष्य बताने वाला बाबा को पता है, कि गॉव-घर, नगर-महानगर के लोगों की सोच क्या है? दुनिया लेपटॉप से सुसज्जित बाबा को आधुनिकता और विज्ञान की कसौटी पर कसकर देखने लगी है। ऐसी दशा में लोगों की मनोदशा को भांपने और समझने वाला बाबा, ज्योतिष शास्त्री कम और मनोवैज्ञानिक ज्यादा होते है। लोगों की भावनों की कद्र करना और उसके अनुकूल प्रश्नों का सकारात्मक जबाव देना, उनकी सफलता का पहला मूलमंत्र होता है, वरना समाज उसे नकार देगा और उसकी टीआरपी कम हो जायेगी।
बाबाओं का लाइव टेलिकास्ट करना, समाज में किसी सेलिब्रिटी से कमतर नहीं आंका जाता है। बाबाओं की जमात यह अच्छी तरह जानता है कि, गाँव के लोग भी आज हर चीज को विज्ञान की कसौटी पर कस कर देखते है, फिर तो शहरी जीवन कहना ही क्या? बाबाओं को ज्योतिष का ज्ञान भले ही न हो, लेकिन लेपटाप से सुसज्जित बाबाओं को लोगों का विश्वास जीतने में कामयाबी हासिल हो जाती है। आगे भले ही परिणाम विपरीत ही क्यों हो?
मंदिर के पंडित से लेकर मठ के मठाधीश तक अपने कारोबार को बढ़ाने के लिए तरह-तरह के भ्रामक उपक्रम करते है। मुंह से सोने का गोला निकालना, खौलते गर्म तेल में हाथ डालना, पानी में आग लगाना, भक्तों को धधकते कोयला के आग पर चलाना आदि। बाबाओं की इन करतूतों से कभी-कभी भक्तों की जान आफत में पड़ जाती है, और कभी-कभी तो भक्तों को अपनी जान ही गंवानी पड़ जाती है। जैसा की मार्च 2010 में, उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ में कृपालू जी महराज के आश्रम में भगदड़ से 63 लोगों की मौत हो गई थी। आयोजन था, कृपालू जी महराज की पत्नी की बरसी पर एक थाली, एक रुमाल, 20 रुपया नकद और प्रसाद में एक लड्डू बांटने का। कृपालू जी की सस्ती लोकप्रियता हासिल करने की चाहत में बेचारे 63 गरीब भक्तों को अपनी जान गंवानी पड़ी। कृपालू महराज के उपर कार्रवाई करने का नतीजा तो सिफ़र रहा। उल्टे उनकी और टीवी चैनलो की टीआरपी उस दिन जरुर हाई हो गई, जिस दिन गरीब,मासूम 63 भक्तों ने अपनी जान गंवाई थी।
यह टीआरपी का ही खेल है , कि शनि का साढ़े साती, राहू-केतु, सूर्य-चंद्रमा और ग्रहों के दोष, दशा और दिशाओं को बताने वाले बाबाओं को कैमरे के सामने बैठा देख, समाज बड़े आदर और सम्मान के साथ देखता है। अपनी समस्यों के समाधान के लिए इनके कॉरपोरेट फोन पर संपंर्क साधता है और बदले में मोटी रकम अपने बैंक अकॉन्ट में डलवाने के लिए कहता है। लाईव या रिर्कोडेड प्रोग्राम के समय न केवल टेलीविजन की टीआरपी बढ़ रही होती है, बल्कि, बाबा का भी प्रमोशन और विज्ञापन हो रहा होता है। प्रायोजित या रेकॉर्डेड कार्यक्रम में बाबा से आधा घंटा या 20 मिनट के स्लॉट के हिसाब से चैनल वालों को फीस दी जाती है।
टेलीविजन की टीआरपी का ही खेल कि है जब किसी बाबा का स्टिंग ऑपरेशन होता हैं तब टीवी चैनल वाले उसे दिखाने से गुरेज नहीं करते। आखिर जिस समाज में बाबा का इतना सम्मान और आदर था, समाज उसके साथ कैसा व्यवहार करेगी? जैसा की पिछले दिनों दक्षिण भारतीय बाबा नित्यानंद स्वामी को एक दक्षिण भारतीय तमिल फिल्म अभिनेत्री के साथ आपत्तिजनक अवस्था में टीवी चैनल पर दिखाया गया और परिणाम सबके सामने है। वहीं सैक्स रैकेट का धंधा चलाने वाला इच्छाधारी बाबा भीमानंद का जब भंडाफोड़ हुआ, तब भी टेलीविजन की टीआरपी बढ़ी। टेलीविजन चैनल अपनी टीआरपी के मामले में किसी से समझौता नहीं कर सकता और बाबा अपनी टीआरपी के लिए कैमरे के आगे या कैमरे के पीछे, आम जनता के बीच कुछ भी कर सकता है। इसके लिए टीवी चैनल को सांप-छुछन्दर की शादी या कुत्ते बिल्ली की दोस्ती ही क्यों न दिखानी पडे़ और बाबाओं का चमत्कार करने के लिए पानी में आग या आग पर भक्तों को ही क्यों न चलाना पड़े?
साईं जैसे संत का प्रादुर्भाव एक गरीब परिवार में हुआ था। साईं के सादे जीवन को लोगों ने अपने जीवन में कितना उतारा कहना मुश्किल है। लेकिन, तब के शिरडी के सांई बाबा जितना गरीब थे, आज के साईबाबा उतने ही अमीर है। जिस साईं ने जीवन भर एक कुटिया में, लकड़ी का पीढ़ा और जमीन पर सोकर कर बिता दिया, आज उन्हीं साई के बैठने के लिए हीरों से जड़ा चॉदी और सोने का सिंहासन और मुकूट है। चढ़ावा भी करोड़ो में चढ़ता है। उनके भक्त दुनिया के विभिन्न देशों में है। भारत में भी लोगों का भक्ति भाव साई की तरफ झुकता देखकर ,अन्य शहरों के पंडितों और पुजारियों ने अपने-अपने मंदिरों में, साईं जैसे गरीब संत को आरक्षण देकर उनकी मुर्ती स्थापित करने लगे हैं। ताकि, भक्तों के जेब से निकलने वाला दान और चढ़ावा किसी अन्य साई मंदिर में जाकर न चढ़ जाय और मंदिर के पुजारी भक्तों का मुंह देखता रह जाय। यह मंदिर के पुजारियों और मठों के मठाधीशों का ही खेल है कि, साई जैसे गरीब संत, विलासिता की वस्तुओं से नवाजे जा रहे हैं। उनके संत स्वभाव को नकार कर उन्हें विलासी बना दिया गया। भगवान, संत और साई की भक्ति और आदर सत्कार कैसे की जाती है , कहना मुश्किल है? लेकिन, आज पंडितो ने इसके लिए अपना अलग-अलग मापदंड तय कर लिया है। यहाँ तक कि केदारनाथ, बद्रीनाथ, तिरूपति, और जग्गनाथपुरी जैसे मंदिरों में भगवान के दर्शन करने के लिए पंडितों को फीस दी जाती है। भगवान प्रसन्न हो या न हो, लेकिन पंडित जरूर प्रसन्न हो जाते है। भक्तों की आस्था को ठेस न पहुंचे और पुजारी नाराज न हो, इसलिए टीवी चैनल का कैमरा इस ओर कभी नहीं घुमा और इन चीजों को कभी दिखाने की जहमत नहीं उठाई। इस ओर कैमरा जब भी घूमा आस्था की भावना लेकर । ताकि चैनल की टीआरपी बरकरार रहे।
टीवी चैनल की टीआरपी के खेल में, एक दौर ऐसा भी आया, जब बाबाओं का एक से बढ़कर एक रूपों का प्रर्दाफाश और भंडाफोड़ होने लगा। हवनकुंड से लेकर गर्भगृह तक और तपस्या स्थल से लेकर बेडरूम तक की कहानी सामने आने लगी। ऐसे में बाबाओं से जुड़े कार्यक्रम में चैनल की टीआरपी की साख को बचाने के लिए, ज्यातिष और ग्लेमर को एक साथ जोड़ कर दर्शक के सामने परोसा जाने लगा। कुछ सॉफ्टवेयर और ग्राफिक्स की मदद से कार्यक्रम को मनमोहक और आकर्षक बनाकर लाइव किया जाने लगा। एक-दो चैनल को अगर छोड़ दिया जाय तो, राष्ट्रीय स्तर के लगभग सभी चैनल ने ज्योतिष वाचने और भविष्य बताने के लिए महिला ज्योतिष शास्त्री को कैमरा के सामने बैठाने लगे। टेरो कार्ड से ज्योतिष वाचने वाली महिलाओं को उनके भविष्य का पता नहीं कि, कब उनके चेहरे पर झुर्रियों की लकीरें दिख जाए और उनकी टीआरपी गिर जाय। और प्रोड्यूसर को नए तरह से कार्यक्रम को पेश करने या किसी नए चेहरे को कैमरे के सामने बैठाने का फरमान मिल जाय। बहरहाल, टीवी की टीआरपी में अब महिला ज्योतिष के लटके-झटके और उनकी अजीबो - गरीब वेशभुषा, जिसे देखकर कोई भी दर्शक हाथ में रिमोट लेकर चैनल बदलना नहीं चाहता है। भले ही लोगों को राहु-केतू, सूर्य-चंद्र, की दशा और दिशा की बातें समझ में न आती हो, भले ही उनके जीवन से ज्योतिष वाचने वाली महिला की बात मेल नहीं खाती हो। लेकिन, ऐसे में टीवी चैनल की टीआरपी बरकरार रहेगी। (लेखक पत्रकार हैं और एक चैनल में कार्यरत हैं.)
Sabhar- mediakhabar.com
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