धीरज भारद्वाज-
मीडिया के हलकों में यह चर्चा जोरों पर है कि सोशल नेटवर्किग ने कानूनी बंदिशों की परवाह न करके वो साहस दिखाया, जो मुख्यधारा की मीडिया को दिखाना चाहिए था। अभि-सेक्स मनु के टेप को हाईकोर्ट के स्थगन आदेश के बावजूद सोशल नेटवर्किंग साइटों ने अपलोड कर देश तो क्या पूरी दुनिया में फैला दिया। ‘अभिसेक्स’ मनु मामाला कोई पहला किस्सा नहीं है। पूरे विश्व में कई राजनेता, अधिकारी, संत और अभिनेता समय-समय पर सीडियों में फंस कर बरसों बाद तक लोगों के मोबाइल फोनों या कंप्यूटर के सीक्रेट फोल्डरों की शोभा और जगहंसाई का पात्र बने हैं।
‘अभिसेक्स’ मनु के मामले में भी एक जाने-माने राजनेता को बदनामी जरूर झेलनी पड़ी। हालांकि इस मामले में असल सज़ा किसे मिली और कितनी, ये तो आने वाला वक्त बताएगा, लेकिन इतना जरूर है कि इस कांड ने कई गंभीर सवालों को खड़ा कर दिया है, जिेनका उत्तर ढूंढे बिना इन पर चर्चा बेमानी होगी।
सबसे बड़ा और अहम सवाल है कि आखिर कौन तैयार करता है ऐसी सीडी या एमएमएस जो किसी की इज्जत को एक झटके में तार-तार कर देते हैं? कौन है जो एमएमएस में कैद होने वाले की सामाजिक और पारिवारिक प्रतिष्टा की भी धज्जियां उड़ा देना चाहता है? क्या ये सब किसी खास साजिश के तहत होता है या बस मौज मस्ती के लिए? अपराध विशेषज्ञों के पास बेहद चौंकाने वाला जवाब है। उनका मानना है कि ऐसी अधिकतर सीडियां अंतरंग संबंधों में लिप्त कम से कम एक सदस्य की मर्ज़ी से बनती हैं। अगर देखा जाए तो हाल-फिलहाल की लगभग सभी सीडियों में उनमें कैद होने वाले एक शख्स की साजिश जरूर रही है।
सीबीआई को इस बात के पक्के सबूत मिल चुके हैं कि भंवरी देवी ने मंत्री महीपाल मदेरणा और कई दूसरे नेताओं को अपने रूप-जाल में फंसा कर उनकी सीडी तैयार करवाई थी। भोपाल में भी सीबीआई के हाथों शहला मसूद हत्याकांड में फंसे राजनेता ध्रुव नारायण सिंह के साथ एक और आरोपी ज़ाहिदा परवेज़ की सीडी मिलने की खबर है। सीबीआई सूत्रों के मुताबिक ज़ाहिदा ने ये सीडी खुद बनाई थी। एनडी तिवारी के मामले में भी सीडी तैयार करने में उनके साथ नज़दीकियां बढ़ाने वाली महिला शामिल थी। अक्सर ऐसा पाया जाता है कि रसिक मिजाज़ नेता को कोई रूपसी अपने जाल में फंसा कर उसके अंतरंग क्षणों की वीडियो रिकॉर्डिंग कर लेती है और बाद में ब्लैकमेलिंग के हथियार के तौर पर इस्तेमाल करती है। कई बार ये हथियार मशहूर हस्तियों के विरोधी भी तैयार करवाते हैं।
इन वीडियो क्लिपों के बाजार में आने के भी कई कारण होते हैं। कई बार जान-बूझ कर तब इन्हें मीडिया को सौंपा जाता है जब ब्लैकमेलिंग में कामयाबी नहीं मिलती है। अनेकों मौके पर चर्चित हस्तियों के विरोधी भी उन्हें पछाड़ने के लिए इन्हें बाज़ार में उतार देते हैं। मीडिया कभी इस्तेमाल होता है तो कभी इस्तेमाल करने वाला भी बन जाता है। दिल्ली के एक नामी स्कूल के छात्र और उसकी सहपाठी का बहुचर्चित एमएमएस तो महज़ लापरवाही से बाजार में उतर गया था। कुछ मामलों में ऐसा भी पाया गया है कि किसी तीसरे ही शख्स ने चोरी-छिपे रिकॉर्डिंग कर ली थी और किसी लालच में मीडिया को दे दिया।
अपने देश ही नहीं, दुनिया भर के देशों में सेक्स सीडी तहलका मचाते रहे हैं। गाहे-बेगाहे कई बाबा भी ऐसी सीडियों की चपेट में आ चुके हैं और उन्हें मटियामेट होते देर नहीं लगी। यहां तक कि कई पत्रकार और स्कूल कॉलेजों के छात्र भी एमएमएस के कारण खासी शोहरत या बदनामी बटोर चुके हैं। बिल क्लिंटन से लेकर सिल्वियो बर्लुस्कोनी तक कई नामी-गिरामी राजनेता ऐसे कांडों में फंस कर अपनी प्रतिष्ठा गंवा चुके हैं।
अब अगर ‘अभिसेक्स’ सीडी का मामला देखा जाए तो उसपर इन सब में से कोई भी थ्योरी लागू नहीं होती। अगर अदालत में दिए औपचारिक हलफनामे को आधार माना जाए तो ये एक नाराज़ ड्राइवर ने अपने मालिक को बदनाम करने की नीयत से मॉर्फिंग तकनीक से बनाया या बनवाया था। यूट्यूब और ट्वीटविद पर मौज़ूद वीडियो को देखा जाए तो पता चलता है कि कांग्रेसी नेता अभिषेक मनु सिंघवी और एक मशहूर महिला वकील के चेहरे साफ पहचाने जा सकते है। अब सवाल ये उठता है कि उस ड्राइवर को उस महिला वकील से क्या रंजिश थी जिसका चेहरा उसने वीडियो में लगा दिया?
सवाल ये भी है कि उस अदने से ड्राइवर के पास इतनी सटीक मॉर्फिंग तकनीक कहां से आई? क्या उसके पीछे अभिषेक के विरोधियों की एक बड़ी टीम लगी हुई थी? अगर ऐसा था भी तो उस महिला वकील का उनके विरोधियों से क्या वास्ता रहा होगा? सुप्रीम कोर्ट के जिस चैंबर का दृश्य उस फिल्म में दिख रहा है अभिषेक मनु को उसके इंटीरियर और अलमारी में मौज़ूद किताबों के ज़िल्द बदलवाने की क्या जल्दी है? वो महिला वकील अबतक खामोश क्यों हैं जिनकी शक्ल इस फिल्म में मौज़ूद महिला से हू-ब-हू मिलती है? क्या उनका नाम डेढ़-दो साल पहले जज़ बनाने के लिए पैनल पर नहीं आया था? और अगर ये नाम पास हो जाता तो इस सीडी का कैसा उपयोग होता इसपर किसी ने सवाल उठाने की कोशिश की है?
वकीलों के बीच ये चर्चा आम है कि इस तरह की कई सीडियां शायद किसी भी महत्वपूर्ण पद के लिए नाम भेजे जाने से पहले अभिषेक मनु जैसे अवसरवादी राजनेता या सिफारिशी पहले ही तैयार कर लेते हैं, ताकि बाद में उनका भरपूर इस्तेमाल किया जा सके। अनुमान लगाया जा रहा है कि जब ये क्लिप ‘किसी काम की’ नहीं रही तो लापरवाही से ड्राइवर के हाथों लग गई होगी और वहां से पत्रकारों के पास पहुंच गई होगी।
यह मामला देश की न्यायपालिका से सीधे तौर पर जुड़ा है इसलिए तथाकथित नैतिकता के पुजारी इसे ‘निजी-मामला’ कह कर आंखें मूंदने को जायज़ नहीं ठहरा सकते। कई वरिष्ठ पत्रकार दबी जुबान में मानते हैं कि ये खेल न सिर्फ न्यायपालिका में, बल्कि कार्यपालिका और विधायिका में भी अर्से से चल रहा है। ऐसी न जाने कितनी ही सीडियां पहले से ही देश के न जाने कितने मामलों में अहम भूमिकाएं निभा रही होंगी। हैरानी की बात तो यह है कि इतना सबकुछ जानने के बावज़ूद अति महत्वाकांक्षा के मारे ऐसे लोगों की भरमार है जो इन खिलाड़ियों के हाथों की कठपुतली बन कर भी खुश रहने को तैयार बैठे हैं। क्या इस सबसे वाकई हमें कोई सरोकार नहीं रखना चाहिए?
Sabhar- Mediadarbar.com
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