Black आउट । फिर प्रसारण शुरू. फिर ब्लैक आउट. लगता है समाचार चैनल आज़ाद न्यूज़ की यही तक़दीर बन चुकी है. चैनल चलते - चलते बैठ जाता है. प्रसारण रूक जाता है. 13 घंटे की कशमकश के बाद चैनल का प्रसारण शुरू होता है. अगले दिन चैनल का प्रसारण फिर से रूक जाता है. ब्लैक आउट का अँधियारा छा जाता है. फिर 10 -12 घंटे का ब्लैक आउट. प्रसारण ठप्प. न्यूज़ रूम में मातम पसरा हुआ है. एंकर दुखित हैं. रिपोर्टर माथा धून रहे हैं. चैनल को गरिया रहे हैं. रोष में कह रहे हैं - चैनल पूरी तरह से बैठ ही जाता तो बेहतर होता. इतनी कड़ी धूप में कड़े मशक्कत के बाद हमने स्टोरी की. लेकिन सारी मेहनत धरी - की-धरी रह गयी. पूरे देशभर के आज़ाद न्यूज़ ब्यूरो में हड़कंप है. ब्यूरो चीफ परेशान है. चैनल के दुबारा प्रसारण के शुरू होने का इंतज़ार कर रहे हैं. दनादन फ़ोन बज रहे हैं. फ़ोन उठाने से ब्यूरो चीफ परहेज कर रहा है. उसके पास लोगों के सवालों का कोई जवाब नहीं है. मीडिया खबर.कॉम से बातचीत में आज़ाद न्यूज़ के एक राज्य के ब्यूरो चीफ नाम न छापने की शर्त पर कहते हैं - " पता नहीं दिल्ली में बैठे आज़ाद न्यूज़ का मैनेजमेंट क्या कर रहा है. बार-बार एक ही समस्या. चैनल चला रहे हैं या फिर मजाक कर रहे हैं. एक तो चैनल की मार्केट में कोई जगह नहीं है. किसी तरह से हमलोग अपने व्यक्तिगत प्रयासों से चैनल की मार्केटिंग और ब्रांडिंग कर रहे हैं. लेकिन बार - बार चैनल के ब्लैक आउट होने से सारी मेहनत पर पानी फिर रहा है. लोगों के सवालों का जवाब देना मुश्किल हो रहा है." ऐसी ही प्रतिक्रिया कई और राज्यों के आजाद न्यूज़ से जुड़े पत्रकारों के है. वाकई में समस्या बहुत बड़ी है. पता नहीं आज़ाद न्यूज़ का मैनेजमेंट इस बात को समझ पा रहा है की नहीं. यदि समझ रहा है तो समस्या के जड़ तक पहुंचकर समाधान क्यों नही ढूंढ़ रहा. यदि चैनल को चलाने का इरादा हैं तो ठीक से चलिए. कम - से- कम से इतना तो कीजिये कि चैनल के बार - बार ब्लैक आउट होने की नौबत न आये. इससे चैनल से जुड़े पत्रकारों का मनोबल गिरता है. अंत में एक बात। आज़ाद न्यूज़ का पंचलाईन है - आजाद न्यूज़ : सबकी आवाज़. तो कम से कम इस लाइन की इज्जत तो रख लीजिये. आज़ाद न्यूज़ भले सबकी आवाज़ बने या न बने , लेकिन कम-से-कम अपनी आवाज़ तो बंद मत कीजिये.
साभार - http://www.mediakhabar.com/
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