धन्य हैं वे माता-पिता जो बच्चों के भविष्य की चुनौतियों को अभी से ही आसान बना रहे हैं। अक्षिता यादव 'पाखी' कल जब दुनिया में अपने पैरों पर खड़ी होगी तो उसके सामने तकनीक से समृद्धशाली संसार होगा और एक क्लिक भर की दूरी पर सफलताएं और उपलब्धियां उसकी मुट्ठी में होंगी। माता-पिता की जागरुकता ने अक्षिता यादव 'पाखी' को नन्हीं ब्लॉगर बना दिया है। इसके लिए उसको वर्ष 2010 की श्रेष्ठ ब्लॉगर का खिताब मिला है। अक्षिता का ब्लॉग है 'पाखी की दुनिया' http://www।pakhi-akshita.blogspot.com ब्लॉगोत्सव-2010 के संयोजक रवीन्द्र प्रभात ने अक्षिता के लिए लिखा है कि-'एक ऐसी नन्हीं ब्लॉगर जिसके तेवर किसी परिपक्व ब्लॉगर से कम नहीं,जिसकी मासूमियत में छिपा है एक समृद्ध रचना संसार। यही नही उन्होंने अक्षिता को ब्लॉगोत्सव का सुपर स्टार बताते हुए लिखा कि-'अक्षिता पाखी हिंदी ब्लॉग जगत की एक ऐसी मासूम चिट्ठाकारा, जिसकी कविताओं और रेखाचित्र से ब्लॉगोत्सव की शुरुआत हुई और सच्चाई यह है कि उसकी रचनाओं की प्रशंसा हिंदी के कई महत्वपूर्ण चिट्ठाकारों से कहीं ज्यादा हुई है। लोकसंघर्ष-परिकल्पना के ब्लॉगोत्सव-2010 में प्रकाशित रचनाओं की श्रेष्ठता के आधार पर ब्लॉगोत्सव की टीम ने अक्षिता को वर्ष की श्रेष्ठ नन्हीं ब्लॉगर के रूप में सम्मानित करने का निर्णय लिया है।'
पच्चीस मार्च 2007 को कानपुर में जन्मीं अक्षिता यादव वर्तमान में कार्मेल स्कूल, पोर्टब्लेयर में नर्सरी में पढ़ती है। अक्षिता के पिता कृष्ण कुमार यादव, अंडमान-निकोबार द्वीप समूह में निदेशक डाक सेवाएं हैं और अक्षिता की मां आकांक्षा यादव उत्तर प्रदेश के एक कॉलेज में प्राध्यापक हैं। ये दोनों भी चर्चित साहित्यकार और सक्रिय ब्लॉगर हैं। अक्षिता की रुचियां हैं- प्लेयिंग, डांसिंग, ड्राइंग, ट्रेवलिंग, ब्लॉगिंग। उसे ड्राइंग बनाना बहुत अच्छा लगता है। पहले तो हर माँ-बाप की तरह उसके मम्मी-पापा ने भी उसकी प्रतिभा पर ध्यान नहीं दिया, पर धीरे-धीरे उन्होंने अक्षिता के बनाए चित्रों को सहेजना आरंभ कर दिया। इस तरह इन चित्रों और अक्षिता की गतिविधियों को ब्लॉग के माध्यम से भी लोगों के सामने प्रस्तुत करने का विचार आया और 24 जून 2009 को 'पाखी की दुनिया' नाम से अक्षिता का ब्लॉग अस्तित्व में आ गया। एक साल के भीतर ही करीब 14,000 हिन्दी ब्लॉगों में इस ब्लॉग की रेटिंग बढ़ती गई और फिलहाल यह टॉप 150 हिन्दी ब्लॉगों में शामिल है।
'पाखी की दुनिया' ब्लॉग का संचालन अक्षिता के मम्मी-पापा करते हैं। इस ब्लॉग के माध्यम से अक्षिता की सृजनात्मकता को भी पंख लग गए और लोगों ने उसे हाथों-हाथ लिया। राजस्थान के चर्चित बाल साहित्यकार दीनदयाल शर्मा अक्षिता की मासूम प्रतिभा से इतने प्रभावित हुए कि अपनी पुस्तक 'चूं-चूं' के कवर-पेज पर अक्षिता की फोटो ही लगा दी। सरस-पायस के संपादक रावेन्द्र कुमार 'रवि' ने अक्षिता की ड्राइंग को लेकर पूरा बाल-गीत ही रच डाला तो तमाम ब्लॉग्स पर अक्षिता की चर्चा होने लगी। हिन्दी ब्लॉग जगत के सर्वाधिक सक्रिय ब्लॉगर समीर लाल ने कनाडा से 'पाखी की दुनिया' के लिए सुन्दर-सुन्दर कविताएं भी रचीं। कृष्ण कुमार यादव और आकांक्षा यादव एवं अक्षिता को यह भी गौरव प्राप्त है कि एक ही परिवार के सभी सदस्य ब्लॉग-जगत में बखूबी सक्रिय हैं।
बचपन बेहद मासूम, निश्छल, रचनात्मक और अनूठा होता है। जरूरत होती है उसे स्पेस देने की। बच्चों की बातों या बनाये गए चित्रों को यूं ही हवा में नहीं माना जाना चाहिए क्योंकि बच्चे को दुनिया का सबसे बड़ा आविष्कारक कहा जाता है क्योंकि आविष्कार के लिए उनमें भी कुछ न कुछ छुपा हुआ है। इक्कीसवीं सदी टेक्नोलॉजी की है और उसकी बदौलत ही संचार एवं सूचना क्रांति का व्यापक विस्तार हो रहा है। आज बच्चा कलम बाद में पकड़ता है, कंप्यूटर, मोबाइल और लैपटॉप पर उंगलियां पहले से ही फिराने लगता है। बच्चे कम उम्र में ही अनुभव और अभिरूचियों के विस्तृत संसार से परिचित हुए जा रहे हैं। नई-नई बातों को सीखने की ललक और नये एडवेन्चर उन्हें दिनों-ब-दिन एडवांस बना रहे हैं। उनकी दृष्टि प्रश्नात्मक है तो हृदय उद्गारात्मक।
कभी अज्ञेय ने बच्चों की दुनिया के बारे में कहा था कि-भले ही बच्चा दुनिया का सर्वाधिक संवेदनशील यंत्र नहीं है पर वह चेतनशील प्राणी है और अपने परिवेश का समर्थ सृजनकर्ता भी। वह स्वयं स्वतंत्र चेता है, क्रियाशील है एवं अपनी अंतः प्रेरणा से कार्य करने वाला है, जो कि अधिक स्थायी होता है। अक्षिता को सर्वश्रेष्ठ नन्हीं ब्लॉगर का खिताब मिलना यह दर्शाता है कि बच्चों में आरंभ से ही सृजनात्मक-शक्ति निहित होती है। उसकी उपेक्षा करना या बड़ों से तुलना करने की बजाय यदि उसे बाल-मन के धरातल पर देखा जाए तो उसके शिखर पर पहुंचने का मार्ग प्रशस्त किया जा सकता है। ऋग्वेद की दो पंक्तियां यहां काफी प्रासंगिक हैं-
आयने ते परायणे दुर्वा रोहन्तु पुष्पिणीः।
पुण्डरीकाणि समुद्रस्य गृहा इमें।।
अर्थात आपके मार्ग प्रशस्त हों, उस पर पुष्प हों, नये कोमल दूब हों, आपके उद्यम, आपके प्रयास सफल हों, सुखदायी हों और आपके जीवन सरोवर में मन को प्रफुल्लित करने वाले कमल खिले।
इंटरनेट के पंख लगाकर अक्षिता अभी से ही ब्रह्मांड का चक्कर लगा रही है। वह उस सफर पर अभी से ही निकल चुकी है जिस पर चलने के लिए कुछ बालक अपने युवा होने की प्रतीक्षा ही कर रहे हैं। दुनिया में तेजी से फैलते इंटरनेट को घर-घर तक पहुचाने का भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने रास्ता खोला है जिस पर चलने की शुरूआत हो चुकी है। भारत की तकनीकी क्षेत्र में प्रगति का यह एक सुखद सत्य है कि यहां प्रतिभाएं तेजी से उसके उपयोग की ओर बढ़ती हैं। केके यादव और उनकी पत्नी आकांक्षा की दृष्टि सफलता की अनंत ऊचाईयों पर है जहां हर कोई अपने बच्चों को देखना चाहता है। यदि हर मां-बाप अपने बच्चों को प्रोत्साहित करने की शुरूआत कर ले तो यह किसी भी देश और उसके समाज की प्रगति का इससे अच्छा सुगम रास्ता कोई नहीं हो सकता।
पच्चीस मार्च 2007 को कानपुर में जन्मीं अक्षिता यादव वर्तमान में कार्मेल स्कूल, पोर्टब्लेयर में नर्सरी में पढ़ती है। अक्षिता के पिता कृष्ण कुमार यादव, अंडमान-निकोबार द्वीप समूह में निदेशक डाक सेवाएं हैं और अक्षिता की मां आकांक्षा यादव उत्तर प्रदेश के एक कॉलेज में प्राध्यापक हैं। ये दोनों भी चर्चित साहित्यकार और सक्रिय ब्लॉगर हैं। अक्षिता की रुचियां हैं- प्लेयिंग, डांसिंग, ड्राइंग, ट्रेवलिंग, ब्लॉगिंग। उसे ड्राइंग बनाना बहुत अच्छा लगता है। पहले तो हर माँ-बाप की तरह उसके मम्मी-पापा ने भी उसकी प्रतिभा पर ध्यान नहीं दिया, पर धीरे-धीरे उन्होंने अक्षिता के बनाए चित्रों को सहेजना आरंभ कर दिया। इस तरह इन चित्रों और अक्षिता की गतिविधियों को ब्लॉग के माध्यम से भी लोगों के सामने प्रस्तुत करने का विचार आया और 24 जून 2009 को 'पाखी की दुनिया' नाम से अक्षिता का ब्लॉग अस्तित्व में आ गया। एक साल के भीतर ही करीब 14,000 हिन्दी ब्लॉगों में इस ब्लॉग की रेटिंग बढ़ती गई और फिलहाल यह टॉप 150 हिन्दी ब्लॉगों में शामिल है।
'पाखी की दुनिया' ब्लॉग का संचालन अक्षिता के मम्मी-पापा करते हैं। इस ब्लॉग के माध्यम से अक्षिता की सृजनात्मकता को भी पंख लग गए और लोगों ने उसे हाथों-हाथ लिया। राजस्थान के चर्चित बाल साहित्यकार दीनदयाल शर्मा अक्षिता की मासूम प्रतिभा से इतने प्रभावित हुए कि अपनी पुस्तक 'चूं-चूं' के कवर-पेज पर अक्षिता की फोटो ही लगा दी। सरस-पायस के संपादक रावेन्द्र कुमार 'रवि' ने अक्षिता की ड्राइंग को लेकर पूरा बाल-गीत ही रच डाला तो तमाम ब्लॉग्स पर अक्षिता की चर्चा होने लगी। हिन्दी ब्लॉग जगत के सर्वाधिक सक्रिय ब्लॉगर समीर लाल ने कनाडा से 'पाखी की दुनिया' के लिए सुन्दर-सुन्दर कविताएं भी रचीं। कृष्ण कुमार यादव और आकांक्षा यादव एवं अक्षिता को यह भी गौरव प्राप्त है कि एक ही परिवार के सभी सदस्य ब्लॉग-जगत में बखूबी सक्रिय हैं।
बचपन बेहद मासूम, निश्छल, रचनात्मक और अनूठा होता है। जरूरत होती है उसे स्पेस देने की। बच्चों की बातों या बनाये गए चित्रों को यूं ही हवा में नहीं माना जाना चाहिए क्योंकि बच्चे को दुनिया का सबसे बड़ा आविष्कारक कहा जाता है क्योंकि आविष्कार के लिए उनमें भी कुछ न कुछ छुपा हुआ है। इक्कीसवीं सदी टेक्नोलॉजी की है और उसकी बदौलत ही संचार एवं सूचना क्रांति का व्यापक विस्तार हो रहा है। आज बच्चा कलम बाद में पकड़ता है, कंप्यूटर, मोबाइल और लैपटॉप पर उंगलियां पहले से ही फिराने लगता है। बच्चे कम उम्र में ही अनुभव और अभिरूचियों के विस्तृत संसार से परिचित हुए जा रहे हैं। नई-नई बातों को सीखने की ललक और नये एडवेन्चर उन्हें दिनों-ब-दिन एडवांस बना रहे हैं। उनकी दृष्टि प्रश्नात्मक है तो हृदय उद्गारात्मक।
कभी अज्ञेय ने बच्चों की दुनिया के बारे में कहा था कि-भले ही बच्चा दुनिया का सर्वाधिक संवेदनशील यंत्र नहीं है पर वह चेतनशील प्राणी है और अपने परिवेश का समर्थ सृजनकर्ता भी। वह स्वयं स्वतंत्र चेता है, क्रियाशील है एवं अपनी अंतः प्रेरणा से कार्य करने वाला है, जो कि अधिक स्थायी होता है। अक्षिता को सर्वश्रेष्ठ नन्हीं ब्लॉगर का खिताब मिलना यह दर्शाता है कि बच्चों में आरंभ से ही सृजनात्मक-शक्ति निहित होती है। उसकी उपेक्षा करना या बड़ों से तुलना करने की बजाय यदि उसे बाल-मन के धरातल पर देखा जाए तो उसके शिखर पर पहुंचने का मार्ग प्रशस्त किया जा सकता है। ऋग्वेद की दो पंक्तियां यहां काफी प्रासंगिक हैं-
आयने ते परायणे दुर्वा रोहन्तु पुष्पिणीः।
पुण्डरीकाणि समुद्रस्य गृहा इमें।।
अर्थात आपके मार्ग प्रशस्त हों, उस पर पुष्प हों, नये कोमल दूब हों, आपके उद्यम, आपके प्रयास सफल हों, सुखदायी हों और आपके जीवन सरोवर में मन को प्रफुल्लित करने वाले कमल खिले।
इंटरनेट के पंख लगाकर अक्षिता अभी से ही ब्रह्मांड का चक्कर लगा रही है। वह उस सफर पर अभी से ही निकल चुकी है जिस पर चलने के लिए कुछ बालक अपने युवा होने की प्रतीक्षा ही कर रहे हैं। दुनिया में तेजी से फैलते इंटरनेट को घर-घर तक पहुचाने का भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने रास्ता खोला है जिस पर चलने की शुरूआत हो चुकी है। भारत की तकनीकी क्षेत्र में प्रगति का यह एक सुखद सत्य है कि यहां प्रतिभाएं तेजी से उसके उपयोग की ओर बढ़ती हैं। केके यादव और उनकी पत्नी आकांक्षा की दृष्टि सफलता की अनंत ऊचाईयों पर है जहां हर कोई अपने बच्चों को देखना चाहता है। यदि हर मां-बाप अपने बच्चों को प्रोत्साहित करने की शुरूआत कर ले तो यह किसी भी देश और उसके समाज की प्रगति का इससे अच्छा सुगम रास्ता कोई नहीं हो सकता।
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