चंबल की खूंखार वादियो मे अपने आंतक का डंका मचाने के बाद अपनी हकीकत की कहानी मे खुद को उतारने वाली सीमा परिहार अब टेलीविजन पर नजर आयेगी। यह पहला मौका होगा जब बिग बॉस जैसे कार्यक्रम के जरिये किसी खूखांर महिला अपराधी को छोटे पर्दे पर दर्शक देखेगे। वुंडेड नामक फिल्म के जरिये सीमा परिहार की कहानी देशवासी पहले ही देख चुके है जिसमे खुद सीमा परिहार ने किरदार अदा किया है।
चंबल के नामचीन डकैतों के साथ दहशत की पर्याय बनी पूर्व दस्यु सुंदरी सीमा परिहार एक नए रूप में कलर्स पर प्रसारित हो रहे बिग बॉस के घर की सदस्य बनकर शायद अपनी जीवन चक्र से दर्शकों को रूबरू कराए। सीमा परिहार वह पहली दस्यु सुंदरी के रूप में सामने आई थी जिसने अपने डकैती के जीवन काल में ही माँ का तो दर्जा हासिल कर लिया, परंतु पत्नी वह आज तक किसी की नहीं बन सकी। हालांकि कुख्यात दस्यु सरगना निर्भय सिंह गूर्जर के साथ बेशक कुठारा (अजीतमल) में सात फेरे लिए हों और दस्यु सरगना रामआसरे तिवारी उर्फ फक्कड़ ने कन्यादान भी किया हो, परंतु निर्भय की मौत के बाद उसे न तो पति के अंतिम संस्कार की पुलिस प्रशासन ने ही और न ही समाज ने मान्यता दी।
बीहड़ में रहने के बावजूद हथियारों से दूर रहने वाली सीमा परिहार को विभिन्न दल जिस्म के लिए अपनाते रहे और सीमा सिर्फ गैंगवार से ही जूझती रही। अब जब पिछले एक दशक से सीमा ने बीहड़ को त्याग दिया तो अब वॉलीवुड की रंगीनियां उसे अपनी ओर आकर्षित कर रहीं हैं। वुंडेड फिल्म से अपनी नई जिंदगी की इबारत लिखने वाली सीमा परिहार आज बिग बॉस में अपनी एंट्री देने जा रही है। देश के सामने सेलिब्रिटी बनने जा रही सीमा परिहार की दास्तां कम दर्दनाक नहीं है। इटावा जिले के बिठौली थाना क्षेत्र के कालेश्वर की गढ़िया (अनेठा) में खासा दबदबा रखने वाले बलबल सिंह परिहार के पुत्र शिरोमणि सिंह की सबसे छोटी बेटी की जिंदगी इस कदर बदनुमा हो जाएगी, यह किसी को नहीं पता था। सीमा की तीनों बड़ी बहिन की शादी हो गई थी। इसके बाद शिरोमणि सिंह औरैया जनपद के अयाना थाना क्षेत्र के ग्राम बबाइन में जा बसे। इसी बीच अपनी बड़ी बहिन मंजू के घर चकरनगर क्षेत्र में गई सीमा की आंख सिपाही भारत सिंह से क्या लड़ी कि उसकी जिंदगी की तस्वीर ही बदल गई।
बकौल सीमा परिहार महज तेरह साल की उम्र में रंजिश के चलते कुख्यात दस्यु सरगना लालाराम ने उसे अगवा कर लिया और अठारह वर्ष उसने लालाराम के साथ बिताए। इस बीच वह सामाजिक जीवन में वापस न जा सके इसके लिए उसके ऊपर पुलिस ने दर्जनों मुकदमे दर्ज कर लिए। सीमा परिहार को पाने के लिए लालाराम गिरोह के ही जय सिंह ने बगावत कर ली, परंतु पुलिस ने जब जय सिंह का जीना मुश्किल कर दिया तो फक्कड़ की शर्त पर जय सिंह ने निर्भय गूर्जर को सौंपा। इसके बाद 5 फरवरी, 1989 को फक्कड़ ने कन्यादान देकर निर्भय के साथ उसके सात फेरे करा दिए।
जिंदगी का सुकून यहां भी खत्म नहीं हुआ। बीहड़ों में ही उसने मातृत्व सुख हासिल किया और निर्भय और लालाराम के बीच भंवर में वह फंस कर रह गई। दोनों में गैंगवार हो गया और अंतत: वर्ष 2000 में कानपुर देहात जनपद में लालाराम पुलिस की गोलियों का शिकार हो गया। इसी के साथ सीमा ने भी बीहड़ी जीवन को त्याग आत्मसमर्पण कर दिया। 7 नवंबर, 2005 को निर्भय की मौत के बाद जब सीमा परिहार ने अपने पति का पुलिस प्रशासन से शव मांगा तो उसके अनुरोध को पुलिस ने सिरे से खारिज कर दिया, बावजूद इसके सीमा ने वाराणसी में निर्भय की अस्थि विसर्जित कर जबरन पत्नी का दर्जा हासिल करने की कोशिश की। सीमा परिहार महिला डकैतों में ऐसी पहली महिला है जिसने बीहड़ी जीवन में मां बनने का सुख हासिल किया। हालांकि सीमा के बाद चंदन की पत्नी रेनू यादव, सलीम गूर्जर की प्रेयसी सुरेखा उर्फ सुलेखा और जगन गूर्जर की पत्नी कोमेश गूर्जर भी मां के सुख को हासिल कर चुकी थीं। अब देखना होगा कि बिग बॉस के घर में क्या सीमा अपने अतीत को साथियों के साथ शेयर करेंगी।चंबल घाटी के इतिहास को यदि देखा जाएं तो अस्सी के दशक के बाद से सक्रिय हुईं दस्यु सुंदरियां सिर्फ दस्यु सरगनाओं के मनोरंजन भर का साधन रहीं थीं। पुतलीबाई और फूलन देवी ने तो अपने ऊपर हुए अत्याचारों के प्रतिशोध की भावना में हथियार थाम कर अपने आतंक का साम्राज्य स्थापित किया परंतु अस्सी के दशक के बाद जितनी भी दस्यु सुंदरियां उभर कर सामने आईं, इनमें से अधिकाधिक अगवा कर लाईं गईं थी। बाद में दस्यु सरगनाओं को दिल दे कर गिरोह पर साम्राज्य स्थापित किया। कुछ ऐसी ही बिडंवना रही सीमा परिहार के साथ। अब सीमा परिहार बेशक फूलन के नक्शे कदम पर चल कर संसद का रास्ता अख्तियार करने की मंशा रखती हो परंतु फूलन का दर्द जगजाहिर हो चुका था और यही कारण था कि जब फूलन ने मिर्जापुर के भदोई लोकसभा चुनाव लड़ा तो मतदाताओं ने फूलन को हाथों हाथ लिया। ऐसा सीमा परिहार के साथ हो सकेगा, इसके बारे में फिलहाल तो कोई टिप्पणी नहीं की जा सकती है।
सीमा परिहार घाटी में महज दस्यु सरगनाओं के मोहरे तक ही सीमित रही। पहले सिपाही के साथ प्रेमपॉश में बंधने के साथ ही उसके जीवन का दुखद सिलसिला शुरु हो गया जिससे उसे अभी तक निजात नहीं मिल सकी है क्योंकि अभी भी वह दस्यु जीवन के मुकदमों से जूझ रही है। सीमा से जहां अपने जमाने के कुख्यात दस्यु सरगना लालाराम गिरोह ने जबरन जिस्मानी संबंध स्थापित किए वहीं दस्यु सरगना निर्भय गूर्जर को वह भेंट स्वरूप सौंपी गई थी। अपने जीवन में वह रखैल तो तमाम डकैतों की रही परंतु कन्यादान दस्यु सरगना रामआसरे तिवारी उर्फ फक्कड़ ने ही तब किया था जब निर्भय गूर्जर के साथ उसकी बीहड़ांचल के ही एक मंदिर में शादी कराई गई।
अस्सी के दशक में सीमा परिहार के बाद लवली पांडे, अनीता दीक्षित, नीलम गुप्ता, सरला जाटव, सुरेखा, बसंती पांडे, आरती, सलमा, सपना सोनी, रेनू यादव, शीला इंदौरी, सीमा यादव, अनीता, सुनीता पांडे, गंगाश्री आदि ने भी बीहड़ में दस्तक दी परंतु इनमें से कोई सीमा परिहार जैसा नाम नहीं हासिल कर सकीं तथा सरला जाटव, नीलम गुप्ता और रेनू यादव के अतिरिक्त अन्य महिला डकैत पुलिस की गोलियों का शिकार हो गईं। हालांकि सीमा परिहार से लवली पांडे ज्यादा खतरनाक साबित हुई थी।
यौवनावस्था को बीहड़ में गुजार चुकी सीमा परिहार ने अपने जीवन के महत्वपूर्ण पलों को चंबल की ऐसी घाटी में बिताया है जिसके बारे में सुनकर ही सिहरन हो उठती है। दस्यु जीवन में आमजनों के लिए खौफ का पर्याय बन चुकी सीमा परिहार के सीने में उठने वाला दर्द आज भी सीमा के चेहरे पर देखा जा सकता है। अपने इसी दर्द का उजागर करते हुए सीमा परिहार ने सपा में शामिल होने के बाद कई बिंदुओं पर खुलकर चर्चा की। समाजवादी पार्टी में शामिल हो चुकी सीमा परिहार ने राजनीतिक सफर तय करने के लिए चुनी सपा के बारे में कहा कि समाजवादी पार्टी ने हमेषा ही शोशितों के दर्द को समझा है। वह बतातीं हैं कि उसने दस्यु सुंदरी बनने का कोई सपना नहीं देखा था। उसे वक्त ने समय-समय पर छला और सपने पूरे होते इससे पहले ही उसके सपनों को तार-तार कर दिया जाता था।
सपा नेत्री बन चुकी पूर्व दस्यु सुंदरी सीमा परिहार बतातीं हैं कि उन्होंने दस्यु जीवन को अलविदा कहने के बाद अपने ऊपर हुए अत्याचारों की लड़ाई लड़ने के लिए पहले इंडियन जस्टिस पार्टी को चुना मगर उसमें जस्टिस नाम की कोई चीज ही नहीं थी। उसकी आवाज उसे इंसाफ दिला पाने में नाकामयाब साबित होती थी। वह बतातीं हैं दस्यु जीवन में जो दर्द उसने महसूस किया, वह चाहती हैं कि किसी अन्य महिला के जीवन में ऐसा मंजर न आए जो वह बंदूक थामे। अपनी इसी मंशा के तहत उसने राजनीति करने का निर्णय लिया और वह सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह का आभार जताया कि उन्होंने मुझे ऐसा मंच दिया है जिसके माध्यम से वह जनता के दर्द को महसूस करेंगीं और उनकी समस्याओं का समाधान कराने में वह अपनी भूमिका का निर्वाहन करेंगीं। दस्यु जीवन के बारे में वह कहतीं हैं कि घाटी के उन खौफनाक पलों को वह भूलना चाहतीं हैं।
चंबल के नामचीन डकैतों के साथ दहशत की पर्याय बनी पूर्व दस्यु सुंदरी सीमा परिहार एक नए रूप में कलर्स पर प्रसारित हो रहे बिग बॉस के घर की सदस्य बनकर शायद अपनी जीवन चक्र से दर्शकों को रूबरू कराए। सीमा परिहार वह पहली दस्यु सुंदरी के रूप में सामने आई थी जिसने अपने डकैती के जीवन काल में ही माँ का तो दर्जा हासिल कर लिया, परंतु पत्नी वह आज तक किसी की नहीं बन सकी। हालांकि कुख्यात दस्यु सरगना निर्भय सिंह गूर्जर के साथ बेशक कुठारा (अजीतमल) में सात फेरे लिए हों और दस्यु सरगना रामआसरे तिवारी उर्फ फक्कड़ ने कन्यादान भी किया हो, परंतु निर्भय की मौत के बाद उसे न तो पति के अंतिम संस्कार की पुलिस प्रशासन ने ही और न ही समाज ने मान्यता दी।
बीहड़ में रहने के बावजूद हथियारों से दूर रहने वाली सीमा परिहार को विभिन्न दल जिस्म के लिए अपनाते रहे और सीमा सिर्फ गैंगवार से ही जूझती रही। अब जब पिछले एक दशक से सीमा ने बीहड़ को त्याग दिया तो अब वॉलीवुड की रंगीनियां उसे अपनी ओर आकर्षित कर रहीं हैं। वुंडेड फिल्म से अपनी नई जिंदगी की इबारत लिखने वाली सीमा परिहार आज बिग बॉस में अपनी एंट्री देने जा रही है। देश के सामने सेलिब्रिटी बनने जा रही सीमा परिहार की दास्तां कम दर्दनाक नहीं है। इटावा जिले के बिठौली थाना क्षेत्र के कालेश्वर की गढ़िया (अनेठा) में खासा दबदबा रखने वाले बलबल सिंह परिहार के पुत्र शिरोमणि सिंह की सबसे छोटी बेटी की जिंदगी इस कदर बदनुमा हो जाएगी, यह किसी को नहीं पता था। सीमा की तीनों बड़ी बहिन की शादी हो गई थी। इसके बाद शिरोमणि सिंह औरैया जनपद के अयाना थाना क्षेत्र के ग्राम बबाइन में जा बसे। इसी बीच अपनी बड़ी बहिन मंजू के घर चकरनगर क्षेत्र में गई सीमा की आंख सिपाही भारत सिंह से क्या लड़ी कि उसकी जिंदगी की तस्वीर ही बदल गई।
बकौल सीमा परिहार महज तेरह साल की उम्र में रंजिश के चलते कुख्यात दस्यु सरगना लालाराम ने उसे अगवा कर लिया और अठारह वर्ष उसने लालाराम के साथ बिताए। इस बीच वह सामाजिक जीवन में वापस न जा सके इसके लिए उसके ऊपर पुलिस ने दर्जनों मुकदमे दर्ज कर लिए। सीमा परिहार को पाने के लिए लालाराम गिरोह के ही जय सिंह ने बगावत कर ली, परंतु पुलिस ने जब जय सिंह का जीना मुश्किल कर दिया तो फक्कड़ की शर्त पर जय सिंह ने निर्भय गूर्जर को सौंपा। इसके बाद 5 फरवरी, 1989 को फक्कड़ ने कन्यादान देकर निर्भय के साथ उसके सात फेरे करा दिए।
जिंदगी का सुकून यहां भी खत्म नहीं हुआ। बीहड़ों में ही उसने मातृत्व सुख हासिल किया और निर्भय और लालाराम के बीच भंवर में वह फंस कर रह गई। दोनों में गैंगवार हो गया और अंतत: वर्ष 2000 में कानपुर देहात जनपद में लालाराम पुलिस की गोलियों का शिकार हो गया। इसी के साथ सीमा ने भी बीहड़ी जीवन को त्याग आत्मसमर्पण कर दिया। 7 नवंबर, 2005 को निर्भय की मौत के बाद जब सीमा परिहार ने अपने पति का पुलिस प्रशासन से शव मांगा तो उसके अनुरोध को पुलिस ने सिरे से खारिज कर दिया, बावजूद इसके सीमा ने वाराणसी में निर्भय की अस्थि विसर्जित कर जबरन पत्नी का दर्जा हासिल करने की कोशिश की। सीमा परिहार महिला डकैतों में ऐसी पहली महिला है जिसने बीहड़ी जीवन में मां बनने का सुख हासिल किया। हालांकि सीमा के बाद चंदन की पत्नी रेनू यादव, सलीम गूर्जर की प्रेयसी सुरेखा उर्फ सुलेखा और जगन गूर्जर की पत्नी कोमेश गूर्जर भी मां के सुख को हासिल कर चुकी थीं। अब देखना होगा कि बिग बॉस के घर में क्या सीमा अपने अतीत को साथियों के साथ शेयर करेंगी।चंबल घाटी के इतिहास को यदि देखा जाएं तो अस्सी के दशक के बाद से सक्रिय हुईं दस्यु सुंदरियां सिर्फ दस्यु सरगनाओं के मनोरंजन भर का साधन रहीं थीं। पुतलीबाई और फूलन देवी ने तो अपने ऊपर हुए अत्याचारों के प्रतिशोध की भावना में हथियार थाम कर अपने आतंक का साम्राज्य स्थापित किया परंतु अस्सी के दशक के बाद जितनी भी दस्यु सुंदरियां उभर कर सामने आईं, इनमें से अधिकाधिक अगवा कर लाईं गईं थी। बाद में दस्यु सरगनाओं को दिल दे कर गिरोह पर साम्राज्य स्थापित किया। कुछ ऐसी ही बिडंवना रही सीमा परिहार के साथ। अब सीमा परिहार बेशक फूलन के नक्शे कदम पर चल कर संसद का रास्ता अख्तियार करने की मंशा रखती हो परंतु फूलन का दर्द जगजाहिर हो चुका था और यही कारण था कि जब फूलन ने मिर्जापुर के भदोई लोकसभा चुनाव लड़ा तो मतदाताओं ने फूलन को हाथों हाथ लिया। ऐसा सीमा परिहार के साथ हो सकेगा, इसके बारे में फिलहाल तो कोई टिप्पणी नहीं की जा सकती है।
सीमा परिहार घाटी में महज दस्यु सरगनाओं के मोहरे तक ही सीमित रही। पहले सिपाही के साथ प्रेमपॉश में बंधने के साथ ही उसके जीवन का दुखद सिलसिला शुरु हो गया जिससे उसे अभी तक निजात नहीं मिल सकी है क्योंकि अभी भी वह दस्यु जीवन के मुकदमों से जूझ रही है। सीमा से जहां अपने जमाने के कुख्यात दस्यु सरगना लालाराम गिरोह ने जबरन जिस्मानी संबंध स्थापित किए वहीं दस्यु सरगना निर्भय गूर्जर को वह भेंट स्वरूप सौंपी गई थी। अपने जीवन में वह रखैल तो तमाम डकैतों की रही परंतु कन्यादान दस्यु सरगना रामआसरे तिवारी उर्फ फक्कड़ ने ही तब किया था जब निर्भय गूर्जर के साथ उसकी बीहड़ांचल के ही एक मंदिर में शादी कराई गई।
अस्सी के दशक में सीमा परिहार के बाद लवली पांडे, अनीता दीक्षित, नीलम गुप्ता, सरला जाटव, सुरेखा, बसंती पांडे, आरती, सलमा, सपना सोनी, रेनू यादव, शीला इंदौरी, सीमा यादव, अनीता, सुनीता पांडे, गंगाश्री आदि ने भी बीहड़ में दस्तक दी परंतु इनमें से कोई सीमा परिहार जैसा नाम नहीं हासिल कर सकीं तथा सरला जाटव, नीलम गुप्ता और रेनू यादव के अतिरिक्त अन्य महिला डकैत पुलिस की गोलियों का शिकार हो गईं। हालांकि सीमा परिहार से लवली पांडे ज्यादा खतरनाक साबित हुई थी।
यौवनावस्था को बीहड़ में गुजार चुकी सीमा परिहार ने अपने जीवन के महत्वपूर्ण पलों को चंबल की ऐसी घाटी में बिताया है जिसके बारे में सुनकर ही सिहरन हो उठती है। दस्यु जीवन में आमजनों के लिए खौफ का पर्याय बन चुकी सीमा परिहार के सीने में उठने वाला दर्द आज भी सीमा के चेहरे पर देखा जा सकता है। अपने इसी दर्द का उजागर करते हुए सीमा परिहार ने सपा में शामिल होने के बाद कई बिंदुओं पर खुलकर चर्चा की। समाजवादी पार्टी में शामिल हो चुकी सीमा परिहार ने राजनीतिक सफर तय करने के लिए चुनी सपा के बारे में कहा कि समाजवादी पार्टी ने हमेषा ही शोशितों के दर्द को समझा है। वह बतातीं हैं कि उसने दस्यु सुंदरी बनने का कोई सपना नहीं देखा था। उसे वक्त ने समय-समय पर छला और सपने पूरे होते इससे पहले ही उसके सपनों को तार-तार कर दिया जाता था।
सपा नेत्री बन चुकी पूर्व दस्यु सुंदरी सीमा परिहार बतातीं हैं कि उन्होंने दस्यु जीवन को अलविदा कहने के बाद अपने ऊपर हुए अत्याचारों की लड़ाई लड़ने के लिए पहले इंडियन जस्टिस पार्टी को चुना मगर उसमें जस्टिस नाम की कोई चीज ही नहीं थी। उसकी आवाज उसे इंसाफ दिला पाने में नाकामयाब साबित होती थी। वह बतातीं हैं दस्यु जीवन में जो दर्द उसने महसूस किया, वह चाहती हैं कि किसी अन्य महिला के जीवन में ऐसा मंजर न आए जो वह बंदूक थामे। अपनी इसी मंशा के तहत उसने राजनीति करने का निर्णय लिया और वह सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह का आभार जताया कि उन्होंने मुझे ऐसा मंच दिया है जिसके माध्यम से वह जनता के दर्द को महसूस करेंगीं और उनकी समस्याओं का समाधान कराने में वह अपनी भूमिका का निर्वाहन करेंगीं। दस्यु जीवन के बारे में वह कहतीं हैं कि घाटी के उन खौफनाक पलों को वह भूलना चाहतीं हैं।
साभार - विस्फोट.कॉम
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