लोकतंत्र का काला दिन : कायर बाहुबली ने सच्चाई को कैद में डाला : यह भारतीय लोकतंत्र के इतिहास का काला दिन है। दादरा नगर हवेली (सिलवासा) में कांग्रेस के एक स्थानीय नेता ने धनबल और बाहुबल का बेजा इस्तेमाल करते हुए रविवार को दादरा नगर हवेली (सिलवासा) में समाचार पत्रों को बंटने ही नहीं दिया। वस्तुत: उस नेता को परेशानी समाचार पत्रों से नहीं थी।
वह नवीनतम सत्य से भयभीत था। सत्य यह है कि गुजरात के स्थानीय निकाय चुनावों में भाजपा ने कांग्रेस को धूल चटा दी है। सिलवासा में रविवार को जिला पंचायत और ग्राम पंचायतों के चुनाव थे। उस कांग्रेसी नेता को डर था कि गुजरात के उदाहरण से प्रभावित होकर मतदाता कहीं सिलवासा में भी कांग्रेस की बुरी गत न कर दें। लिहाजा रविवार तड़के ही उसके आदमी समाचार पत्रों के एजेंटों की दुकानों पर पहुंच गए और सभी समाचार पत्रों को खरीद लिया। इसकी वजह से इस केंद्र शासित प्रदेश में एक भी अखबार वितरित नहीं हुआ।
यह दोनों पक्षों की सामूहिक कायरता थी, जिसने नागरिकों को खबरों से वाकिफ होने के अधिकार से वंचित कर दिया। नेता सत्य से भयभीत था और समाचार पत्रों के एजेंट उसकी धौंस पट्टी से। आम लोग दोपहर तक समझ ही नहीं पाए कि वाकया क्या है। पूरा दिन सिलवासा में किसी के पास कोई समाचार पत्र नहीं पहुंचा। सूचना का भी व्यसन होता है। यह व्यसन नागरिकों की प्रबुद्धता का सबूत और लोकतंत्र की जान है। हैरान परेशान लोग एक दूसरे से अखबार नहीं मिलने के बारे में पूछते रहे। उन्हें क्या मालूम कि एक स्थानीय नेता ने सच्चाई को कैद कर रखा है।
इस तरह दादरा नगर हवेली के इतिहास में पहली बार लोगों को समाचार पत्र पढऩे को नहीं मिले। गुजरात पंचायत निकाय चुनावों में कांग्रेस की करारी हार के कारण समाचार एजेंसियों से एक पार्टी ने सभी समाचार पत्र खरीद लिए। इसके बाद एजेंसियों के हॉकर दुकानों में ताला लगाकर पूरे दिन नदारद रहे। सूत्रों के अनुसार नेता के आदमियों ने झंडा चौक स्थित ऑनेस्ट और बजरंग एजेंसी से सभी समाचार पत्र खरीद लिए। सिलवासा के अलावा दादरा, नरोली और भिलाड़ की एजेंसियों से भी कार्यकर्ताओं ने समाचार पत्र खरीद कर गायब कर दिए। इसके कारण रोजाना के ग्राहकों को समाचार पत्र पढऩे को नहीं मिले। कई ग्राहकों ने समाचार पत्र मालिकों और शाखा प्रबंधकों को भी समाचार पत्र नहीं मिलने की शिकायत की।
इसके कारण समाचार पत्र प्रचार विभाग, सरकारी कार्यालय, समाचार पत्रों के शाखा कार्यालय में भी नहीं दिखे। कई ग्राहकों ने वापी और दूसरे शहरों से समाचार पत्र मंगवाए। इस घटना की सारे दिनभर चर्चा रही। दुर्भाग्य की बात यह है कि किसी भी अखबार ने इस खबर को स्थान नहीं दिया। वजह फिर वही, विज्ञापन का डर। इसके अलावा कांग्रेसी नेता का भय। आपको बता दें कि सिलवासा में इस कांग्रेसी नेता का आतंक इस कदर है कि मजाल है कोई पत्रकार उसके खिलाफ खबर छापदे। इसके अलावा उसने सभी समाचपत्रों को विज्ञापन के माध्यम से खरीद रखा है।
इसके बावजूद 'राजस्थान पत्रिका' ने इस खबर को छापा और लोगों ने 'पत्रिका' की रिपोर्टिंग को सराहा भी। गौरकरने वाली बात यह है कि यह नेता खुद एक हिन्दी अखबार को लांच कर रहा है। इसके लिए बकायदा दिल्ली के बड़े पत्रकार को बतौर संपादक नियुक्त भी कर दिया है। सवाल यह है कि क्या यह नेता जो लोकतंत्र का खुद को सिपाही बताता है वह अपने नेतागिरी व एक अखबारनवीस के तौर पर न्याय कर पाएगा।
वह नवीनतम सत्य से भयभीत था। सत्य यह है कि गुजरात के स्थानीय निकाय चुनावों में भाजपा ने कांग्रेस को धूल चटा दी है। सिलवासा में रविवार को जिला पंचायत और ग्राम पंचायतों के चुनाव थे। उस कांग्रेसी नेता को डर था कि गुजरात के उदाहरण से प्रभावित होकर मतदाता कहीं सिलवासा में भी कांग्रेस की बुरी गत न कर दें। लिहाजा रविवार तड़के ही उसके आदमी समाचार पत्रों के एजेंटों की दुकानों पर पहुंच गए और सभी समाचार पत्रों को खरीद लिया। इसकी वजह से इस केंद्र शासित प्रदेश में एक भी अखबार वितरित नहीं हुआ।
यह दोनों पक्षों की सामूहिक कायरता थी, जिसने नागरिकों को खबरों से वाकिफ होने के अधिकार से वंचित कर दिया। नेता सत्य से भयभीत था और समाचार पत्रों के एजेंट उसकी धौंस पट्टी से। आम लोग दोपहर तक समझ ही नहीं पाए कि वाकया क्या है। पूरा दिन सिलवासा में किसी के पास कोई समाचार पत्र नहीं पहुंचा। सूचना का भी व्यसन होता है। यह व्यसन नागरिकों की प्रबुद्धता का सबूत और लोकतंत्र की जान है। हैरान परेशान लोग एक दूसरे से अखबार नहीं मिलने के बारे में पूछते रहे। उन्हें क्या मालूम कि एक स्थानीय नेता ने सच्चाई को कैद कर रखा है।
इस तरह दादरा नगर हवेली के इतिहास में पहली बार लोगों को समाचार पत्र पढऩे को नहीं मिले। गुजरात पंचायत निकाय चुनावों में कांग्रेस की करारी हार के कारण समाचार एजेंसियों से एक पार्टी ने सभी समाचार पत्र खरीद लिए। इसके बाद एजेंसियों के हॉकर दुकानों में ताला लगाकर पूरे दिन नदारद रहे। सूत्रों के अनुसार नेता के आदमियों ने झंडा चौक स्थित ऑनेस्ट और बजरंग एजेंसी से सभी समाचार पत्र खरीद लिए। सिलवासा के अलावा दादरा, नरोली और भिलाड़ की एजेंसियों से भी कार्यकर्ताओं ने समाचार पत्र खरीद कर गायब कर दिए। इसके कारण रोजाना के ग्राहकों को समाचार पत्र पढऩे को नहीं मिले। कई ग्राहकों ने समाचार पत्र मालिकों और शाखा प्रबंधकों को भी समाचार पत्र नहीं मिलने की शिकायत की।
इसके कारण समाचार पत्र प्रचार विभाग, सरकारी कार्यालय, समाचार पत्रों के शाखा कार्यालय में भी नहीं दिखे। कई ग्राहकों ने वापी और दूसरे शहरों से समाचार पत्र मंगवाए। इस घटना की सारे दिनभर चर्चा रही। दुर्भाग्य की बात यह है कि किसी भी अखबार ने इस खबर को स्थान नहीं दिया। वजह फिर वही, विज्ञापन का डर। इसके अलावा कांग्रेसी नेता का भय। आपको बता दें कि सिलवासा में इस कांग्रेसी नेता का आतंक इस कदर है कि मजाल है कोई पत्रकार उसके खिलाफ खबर छापदे। इसके अलावा उसने सभी समाचपत्रों को विज्ञापन के माध्यम से खरीद रखा है।
इसके बावजूद 'राजस्थान पत्रिका' ने इस खबर को छापा और लोगों ने 'पत्रिका' की रिपोर्टिंग को सराहा भी। गौरकरने वाली बात यह है कि यह नेता खुद एक हिन्दी अखबार को लांच कर रहा है। इसके लिए बकायदा दिल्ली के बड़े पत्रकार को बतौर संपादक नियुक्त भी कर दिया है। सवाल यह है कि क्या यह नेता जो लोकतंत्र का खुद को सिपाही बताता है वह अपने नेतागिरी व एक अखबारनवीस के तौर पर न्याय कर पाएगा।
साभार : भड़ास ४ मीडिया .कॉम
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