पत्रकारों से छुपते अधिकारी और लोग : संगरूर (पंजाब): दीपावली के दिन नजदीक आ रहे हैं, लोग दीपावली के लिए शुभ सन्देश अपने निकटवर्तियों को दे रहे हैं या फिर देने की तैयारी कर रहे हैं. परन्तु जो कुछ अपने शहर में देखेने को मिल रहा है, उसे देखकर मैं खुद को लिखने से नहीं रोक सका.
जहां इस में पत्रकारों की बिरादरी को नीचा किया जा रहा है, वहीं इस बात को सब के सामने रख कर निष्पक्षता दिखाने की भी जरुरत है. हाल ये है कि जो सही तरह की पत्रकारिता कर रहे हैं, उनको भी कभी-कभार लोगों के गुस्सा में सब कुछ सुनना पड़ रहा है. अब आपको बताते हैं कि वास्तव में चल क्या रहा है? दीपावली को नजदीक देख ऐसे पत्रकार क्षेत्र में नजर आ रहे हैं, जो कि पहले कभी पत्रकारिता के नजदीक तक नहीं देखे गए थे. कमी उनकी भी नहीं जो पत्रकारिता में नजर तो हर रोज आते हैं, लेकिन पत्रकारिता की आड़ में पैसे इकट्ठे करने में जुटे हुए हैं.
दीपावली में कुछ ही दिन रह गए हैं, तो अधिकारी छुपते-छुपाते नजर आ रहे हैं. कारण है दीपावली पर त्योहारी मांगना. आपको लगेगा की अधिकारी आप को किस बात की त्योहारी देंगे और किस तरह की. जी हां ये लोग भिखारियों की तरह अधिकारियों के पीछे घूमते रहते हैं कि वो उन्हें कुछ न कुछ जरुर दें. जिसका भाव जैसा भाव है वैसा मूल्य उन्हें मिले. इन पत्रकारों से अधकारी बेचारे इतने परेशान हैं कि वो इन दिनों अपनी कुर्सी पर भी बैठने से डर रहे हैं. बैठते हैं तो अपने काम को जल्द पूरा कर भागने में भलाई समझते हैं. जाने कब कहां से कोई पत्रकार आ टपके, कुछ मालूम नहीं.
इन पत्रकारों की वजह से शहर के बाकी पत्रकार भी परेशान हैं कि ऐसे लोगों लोगों की वजह से कभी कभार परेशान लोग इनको भी मांगने वाले पत्रकारों समान समझ लेते हैं, लेकिन सच्चाई सच्चाई ही है. जब अधिकारियों या लोगों को अपनी गलती का आभास होता है तो माफ़ी मांगते हैं या अपना दुखड़ा सुनाते हैं. इन मांगने वाले पत्रकारों के पास इनके समाचार ग्रुप का अधिकृत पत्र मांगा जाए तो ऐसे निकाल कर दिखाते हैं, जिसका कभी नाम भी न सुना गया हो. ये लोग हर विभाग के अधिकारी के पास जाते हैं, जो इन्हें प्यार से बुला ले तो उसकी शामत ही आ जाती है, लेकिन जो कड़क हो वो जरुर इनके जुल्म से बच जाता है.
इन मांगने वाले पत्रकारों में से तो कुछ ऐसे भी हैं जिनको अपना नाम तक लिखना नहीं आता। दीपावली क्या आ गई कि मांगने वाले पत्रकारों ने तो हड़कंप मचा रखा है. हर किसी से दीपावली के नाम पर जम कर पैसे मांग रहे हैं और न देने पर उनके खिलाफ खबर लगाने की धमकी भी देते हैं. ऐसे मौकों पर मालूम चलता है कि सही पत्रकार लोग इस कलयुग में अभी भी जिन्दा हैं, जिनकी वजह से पत्रकारिता की साख बरक़रार है.
जहां इस में पत्रकारों की बिरादरी को नीचा किया जा रहा है, वहीं इस बात को सब के सामने रख कर निष्पक्षता दिखाने की भी जरुरत है. हाल ये है कि जो सही तरह की पत्रकारिता कर रहे हैं, उनको भी कभी-कभार लोगों के गुस्सा में सब कुछ सुनना पड़ रहा है. अब आपको बताते हैं कि वास्तव में चल क्या रहा है? दीपावली को नजदीक देख ऐसे पत्रकार क्षेत्र में नजर आ रहे हैं, जो कि पहले कभी पत्रकारिता के नजदीक तक नहीं देखे गए थे. कमी उनकी भी नहीं जो पत्रकारिता में नजर तो हर रोज आते हैं, लेकिन पत्रकारिता की आड़ में पैसे इकट्ठे करने में जुटे हुए हैं.
दीपावली में कुछ ही दिन रह गए हैं, तो अधिकारी छुपते-छुपाते नजर आ रहे हैं. कारण है दीपावली पर त्योहारी मांगना. आपको लगेगा की अधिकारी आप को किस बात की त्योहारी देंगे और किस तरह की. जी हां ये लोग भिखारियों की तरह अधिकारियों के पीछे घूमते रहते हैं कि वो उन्हें कुछ न कुछ जरुर दें. जिसका भाव जैसा भाव है वैसा मूल्य उन्हें मिले. इन पत्रकारों से अधकारी बेचारे इतने परेशान हैं कि वो इन दिनों अपनी कुर्सी पर भी बैठने से डर रहे हैं. बैठते हैं तो अपने काम को जल्द पूरा कर भागने में भलाई समझते हैं. जाने कब कहां से कोई पत्रकार आ टपके, कुछ मालूम नहीं.
इन पत्रकारों की वजह से शहर के बाकी पत्रकार भी परेशान हैं कि ऐसे लोगों लोगों की वजह से कभी कभार परेशान लोग इनको भी मांगने वाले पत्रकारों समान समझ लेते हैं, लेकिन सच्चाई सच्चाई ही है. जब अधिकारियों या लोगों को अपनी गलती का आभास होता है तो माफ़ी मांगते हैं या अपना दुखड़ा सुनाते हैं. इन मांगने वाले पत्रकारों के पास इनके समाचार ग्रुप का अधिकृत पत्र मांगा जाए तो ऐसे निकाल कर दिखाते हैं, जिसका कभी नाम भी न सुना गया हो. ये लोग हर विभाग के अधिकारी के पास जाते हैं, जो इन्हें प्यार से बुला ले तो उसकी शामत ही आ जाती है, लेकिन जो कड़क हो वो जरुर इनके जुल्म से बच जाता है.
इन मांगने वाले पत्रकारों में से तो कुछ ऐसे भी हैं जिनको अपना नाम तक लिखना नहीं आता। दीपावली क्या आ गई कि मांगने वाले पत्रकारों ने तो हड़कंप मचा रखा है. हर किसी से दीपावली के नाम पर जम कर पैसे मांग रहे हैं और न देने पर उनके खिलाफ खबर लगाने की धमकी भी देते हैं. ऐसे मौकों पर मालूम चलता है कि सही पत्रकार लोग इस कलयुग में अभी भी जिन्दा हैं, जिनकी वजह से पत्रकारिता की साख बरक़रार है.
साभार : भड़ास ४ मीडिया .कॉम
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
ReplyDeleteप्रस्तुति कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (1/11/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com