–डॉ कुलदीप चन्द अग्निहोत्री
मालेगांव बम विस्फोट की घटना 8 सितम्बर 2006 की है और अजमेर की दरगाह में बम विस्फोट की घटना अक्तूबर 2007 की है। इन दोनों विस्फोटों के बीच में 18 फरवरी 2007 को समझौत एक्सप्रेस में बम विस्फोट हुआ था और 18 मई 2007 को हैदराबाद की मक्का मस्जिद में बम विस्फोट हुआ था। मालेगांव में पुनः 29 सितम्बर 2008 को बम विस्फोट हुए। इन पांचों विस्फोटों में जाहिर है कि अनेक लोग मारे गए थे।
समझौता एक्सप्रैस बम विस्फोट-18 फरवरी 2007 को पाकिस्तान जानेवाली समझौता एक्सप्रेस गाडी में पानीपत के पास दीवाना नामक गांव के पास जबरदस्त बम विस्फोट हुआ। यह बम विस्फोट मालेगांव जैसा देसी बम विस्फोट नहीं था बल्कि उच्च तकनीकी प्रक्रिया का घातक बम विस्फोट था। इस बम विस्फोट में 68 लोग मारे गए जिनमें 42 पाकिस्तानी नागरिक थे और 26 भारतीय नागरिक थे। भारतीय सेना के अनेक जवान इसमें हताहत हुए। हरियाणा पुलिस ने इस विस्फोट की जांच शुरु की। जांच में पाया गया कि विस्फोट एक सूटकेस में आईईडी के माध्यम से करवाया गया। एक सूटकेस रेलवे ट्रैक पर भी पाया गया जिसमें डेटोनेटर से जुडे हुए आईईडी रखे हुए थे और इनसे डिजीटल टाईमर भी जुडा हुआ था। मार्च 2007 में हरियाणा पुलिस ने इंदौर से दो लोगों को गिरफ्तार किया जिन पर विस्फोट में शामिल होने का संदेह था। मार्च 2007 में ही चंडीगढ में रेलवे के आईजी के.के. मिश्रा ने बताया कि इस विस्फोट के तार पाकिस्तान से जुडे हुए हैं। हरियाणा पुलिस एक सूत्र से दूसरे सूत्र को जोडती हुई अंत में सिमी ;जिसे भारत सरकार ने प्रतिबंधित किया हुआ है द्ध के सरगना सफदर नागौरी तक पहुंची, जिसने इस विस्फोट को करवाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी थी। जांच में यह भी पाया गया कि लश्कर-ए-तैयबा के आरिफ कासमानी के लोगों ने इस विस्फोट को अंजाम दिया और इसमें सिमी ने सक्रिय भूमिका निभायी। आरिफ कासमानी लश्कर -ए -तैयबा से सम्बंधित है और इसने जुलाई 2006 में मुम्बई में हुए रेल धमाकों में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभायी थी। मुम्बई के जुलाई 2006 के बम धमाकों के लिए उसे पैसा दाउद इब्राहिम ने दिया था। आरिफ कासमानी आतंकवादी गतिविधियां चलाने के लिए अलकायदा को भी वित्तीय सहायता प्रदान करता था। अफगानिस्तान में अलकायदा के आतंकवादियों को पहुंचाने और उन्हें वहां से बाहर निकालने में आरिफ कासमानी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता था। अलकायदा ने बदले में कासमानी को मुम्बई के जुलाई 2006 और समझौता एक्सप्रेस में फरवरी 2007 के बम विस्फोटों में भरपूर सहायता की। 2005 में आरिफ कासमानी ने अफगानिस्तान में तालिबान के लिए हथियार लाने ले जाने मंे भी सहायता की। सरकार की जांच एजेंसियों ने समझौता एक्सप्रेस के लिए लश्कर -ए -तैयबा के इसी आरिफ कासमानी और उसके गुर्गो को जिम्मेदार ठहराया और इस सम्बंध में अनेक लोगों को गिरफ्तार किया जो अभी भी जेलों में हैं। किस्सा कोताह यह कि हरियाणा पुलिस की सक्रियता और अन्य एजेंसियों की सहायता से समझौता एक्सप्रेस विस्फोट की जांच जल्दी ही पूरी कर ली गयी और उसमें स्पष्ट ही पाकिस्तान का हाथ दिखायी दे रहा था। भारत सरकार ने पाकिस्तान सरकार को इस विस्फोट में पाकिस्तानी संलिप्तता के प्रमाण भी दिए और इस प्रकार की गतिविधियों को बंद करने की चेतावनी भी।
भारत सरकार ने अपनी इस प्रमाण युक्त जांच की रपट अमेरिका और संयुक्त राष्ट्र संघ को भी दी। अमेरिका ने इसकी एक स्वतंत्र जांच अपने सूत्रों से भी करवायी। अमेरिका की जांच एजेंसियां भी इसी निष्कर्ष पर पहुंची कि समझौता एक्सप्रेस विस्फोट में लश्कर -ए-तैयबा का हाथ है। संयुक्त राष्ट्रसंघ की सुरक्षा परिषद से जुडी अलकायदा और तालिबान प्रतिबंध कमेटी ने इस जांच रिपोर्ट की गहरायी से छानबीन करने के उपरांत इसको स्वीकार किया और आरिफ कासमानी को समझौता एक्सप्रेस विस्फोट व अन्य अनेक आतंकवादी गतिविधियों में लिप्त होने के कारण प्रतिबंधित सूची में शामिल कर दिया।
हैदराबाद मक्का मस्जिद का विस्फोट -18 मई 2007 को हैदराबाद की मक्का मस्जिद में बम विस्फोट हुआ। मुस्लिम बहुल इस क्षेत्र में चार मीनार के पास की मक्का मस्जिद में नमाज के लिए लगभग दस हजार लोग एकत्रित थे। मोटी पाईप में आरडीएक्स भरकर उसमें मोबाईल के माध्यम से विस्फोट किया गया। इस विस्फोट में 16 लोग मारे गए और 100 से ज्यादा घायल हुए। आमतौर पर इतने भारी बम विस्फोट के बाद लोग जान बचाने के लिए इधर -उधर भागते हैं परन्तु इस बम विस्फोट के बाद लोगों ने तुरन्त ही एकत्रित होकर कुछ व्यापारिक प्रतिष्ठानों और दुकानों को निशाना बनाना शुरु कर दिया। पुलिस पर हमला कर दिया और एक पेट्रोल पम्प को आग लगाने की कोशिश की। आत्म सुरक्षा के लिए पुलिस द्वारा चलायी गयी गोली से भी कुछ लोगों की मृत्यु हो गयी। आंध्र प्रदेश पुलिस ने बिना समय गंवाए बम विस्फोट की जांच शुरु की। प्रारम्भिक जांच के बाद प्रदेश के गृहमंत्री के जना रेड्डी ने खुलासा किया कि इस विस्फोट के पीछे विदेशी शक्तियों का हाथ है। जाहिर है उनका इशारा पाकिस्तान की तरफ था। जैसे -जैसे जांच आगे बढती गयी वैसे -वैसे स्पष्ट होता गया कि इस भयानक विस्फोट के पीछे हरकत -उल -जिहाद -अल -इस्लामी का हाथ है। इसके पुख्ता सबूत मिल जाने के बाद आंध्र प्रदेश पुलिस और भारत सरकार ने भी हूजी को इस अपराध के लिए चिन्हित किया। हूजी का संचालन भी पाकिस्तान में बैठे उसके आका ही कर रहे हैं। हूजी की हैदराबाद बम विस्फोट में संलिप्तता पुख्ता तौर पर सिद्ध हो चुकी थी। अमेरिका के गृहमंत्रालय ने भी इसकी अपने स्तर पर जांच करवायी और 6 अगस्त 2007 को हूजी को अंतर्राष्ट्रीय आतंकवादी गिरोह घोषित करके उसे प्रतिबंधित कर दिया। संयुक्त राष्ट्र ने इसी आधार पर हूजी को प्रतिबंधित किया। इस प्रकार भारतीय जांच एजेंसियों ने बहुत कम समय में तेजी से जांच पूरा करते हुए उसके पीछे के सूत्रधारों को बेनकाब कर दिया और उनसे जुडे अनेक अपराधियों को इस विस्फोट के लिए गिरफ्तार किया। एक बार फिर सिद्ध हुआ कि मक्का मस्जिद बम विस्फोट में विदेशी शक्तियों का हाथ है।
अजमेर दरगाह शरीफ का बम विस्फोट -11 अक्तूबर 2007 को अजमेर की एक दरगाह में बम विस्फोट हुआ जिसमें दो लोग मारे गए और 17 घायल हुए। पुलिस ने इसकी जांच शुरु की तो इसमें हूजी के लोागों की संलिप्तता के प्रमाण मिलने शुरु हुए। हूजी के कमांडर शाहिद बिलाल के बारे में भारत सरकार ने पाकिस्तान सरकार को भी सूचित किया कि इस विस्फोट में इन लोगों का हाथ है। पुलिस का कहना था कि बंग्लादेशी अबू हमजा भी इससे जुडा हुआ था जो कि हूजी का एक सक्रिय कार्यकर्ता है। पुलिस का यह भी कहना था कि इस काम में लश्कर-ए-तैयबा के एक सक्रिय कार्यकर्ता शेख अब्दुल नईम की भी संलिप्तता प्रमाणित हुई है। इसका अर्थ यह हुआ कि 2007 में समझौता एक्सप्रेस, हैदराबाद मक्का मस्जिद और दरगाह शरीफ अजमेर में जो बम विस्फोट हुए उसमंे हूजी, लश्कर -ए -तैयबा का हाथ प्रमाणित हुआ। और इस सम्बंध में भारत सरकार ने जांच मुकम्मल होने पर पाकिस्तान सरकार को भी सूचित किया और अमेरिका को भी इस सम्बंध में जानकारियां दी। अमेरिका ने अपने सूत्रों से भी इन घटनाओं के बारे जानकारियां हासिल कीें और उसी के आधार पर संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद् ने लश्कर -ए -तैयबा और हूजी से जुडे प्रमुख लोगों को आतंकवादी घोषित करते हुए उन पर पाबंदिया आयद की। पाबंदिया आयद करते समय संयुक्त राष्ट्र संघ ने समझौता एक्सप्रेस और हैदराबाद की मक्का मस्जिद में हुए बम विस्फोटों का जिक्र भी किया।
माले गांव में पुनः बम विस्फोट-इसी मरहले पर एक सूरते-हाल उभरी। मालेगांव में 29 सितम्बर 2008 को एक चौराहे पर बम विस्फोट हुए। जिसमें अनेक लोग घायल हुए। ध्यान रहे मालेगांव महाराष्ट्र में इस्लामी कट्टरता का बहुत बडा अड्डा है। दुनिया भर में कहीं भी मुसलमानों से सम्बंधित घटना क्यों न हो , मालेगांव में सरकारी सम्पत्ति को आग लगाने का काम तुरंत शुरु हो जाता है। इससे पहले भी 8 सितम्बर 2006 को मालेगांव में बम विस्फोट हुए थे जिसमें सिमी और लश्कर -ए-तैयबा के लोगों की संलिप्तता पायी गयी थी और पुलिस जांच से यह भी स्पष्ट हुआ था कि इन विस्फोटों में पाकिस्तान का हाथ है। इन विस्फोटों में 31 लोग मारे गए थे और 200 से अधिक लोग घायल हुए थे। पुलिस ने सिमी और लश्कर -ए -तैयबा के लोगों को इन विस्फोटों के लिए गिरफ्तार भी किया था। इसी मालेगांव में 2008 में पुन: विस्फोट हुए।
लेकिन इन विस्फोटों में जांच अभिकरणों ने पूरे दृश्य पर एक अन्य संगठन को लाकर खडा कर दिया। जांच एजेंसियों का कहना था कि इन विस्फोटों के पीछे ‘ अभिनव भारत ’ नाम के संगठन का हाथ है। इस संगठन के कर्ताधर्ता भारतीय सेना में काम कर रहे लेफ्टिनेंट कर्नल श्रीकांत प्रसाद पुरोहित हैं। कर्नल पुरोहित की टीम में जो कुछ और लोग जुडे हुए हैं उनका राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अथवा अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से सम्बंध रहा है। पुलिस का यह भी कहना था कि मुसलमानों द्वारा किए गए विस्फोटों का बदला लेने के लिए ये विस्फोट किए गए थे। जैसे ही जांच एजेंसियों ने अभिनव भारत को विस्फोटों के लिए जिम्मेदार ठहराने की कवायद शुरु की वैसे ही कांग्रेस के महासचिव दिग्विजय सिंह ने हिन्दू आतंकवाद का एक नया नारा देना शुरु कर दिया जिसे मीडिया के एक खास वर्ग की सहायता से सुनियोजित ढंग से जगह -जगह प्रचारित प्रसारित किया गया। महाराष्ट्र के आतंकवाद विरोधी दस्ते ने तथाकथित जांच पूरी करने के बाद मालेगांव बम विस्फोट को लेकर हजारों पृष्ठों की प्राथमिकी दर्ज करवायी जिसमें 14 लोगों को इन विस्फोटों के लिए जिम्मेदार ठहराया गया। इन 14 में से 11 को पुलिस ने पकड लिया और 3 को भगौडा घोषित कर दिया। पकडे गए लोगों में से कर्नल प्रसाद पुरोहित के अतिरिक्त साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर और समीर कुलकर्णी का नाम प्रमुख है।
कर्नल पुरोहित और अभिनव भारत की भूमिका-यहां हमें अभिनव भारत और कर्नल पुरोहित के बारे में थोडी छानबीन करनी होगी। पुरोहित ने 2007 के अंत में अभिनव भारत का गठन किया था। कर्नल पुरोहित को लेकर दो प्रकार की घारणाएं प्रचलित हैं। प्रथम तो यह कि कर्नल पुरोहित को अभिनव भारत नाम का संगठन खडा करने के लिए भारत सरकार की एजंसियों ने ही प्रेरित किया था या फिर उन्हें आधिकारिक तौर पर यह संगठन खडा करने का जिम्मा सौंपा गया था। नए संगठन का नाम अभिनव भारत रखने के पीछे शायद एक कारण यह भी हो कि इस नाम का संगठन कभी ब्रिटिश शासन के खिलाफ स्वतंत्रता युद्ध करते हुए वीर सावरकर ने खडा किया था। लेकिन अंग्रेजों के चले जाने के बाद उन्होंने इस संगठन को भंग कर दिया था। सरकारी एजेंसियां भी शायद कर्नल पुरोहित के नेतृत्व में अभिनव भारत को दोबारा जिंदा करने के पीछे उसे हिंदू रंगत देने की सोच रहीं हो। अभिनव भारत के माध्यम से कर्नल पुरोहित को यह जिम्मेदारी दी गयी कि वह राष्ट्रीय स्वयंसेवकसंघ और उससे जुडे संगठनों में असंतोष पैदा करे। उनके ज्यादा से ज्यादा कार्यकर्ताओं को अपने साथ जोडे और उनमें फूट डलवाने की कोशिश करे। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए यह जरुरी था कि कर्नल पुरोहित और उनका अभिनव भारत हिंदुओं को लेकर उग्र नारा लगाए और यह अवधारणा आम कार्यकर्ता के मन में बिठाने का प्रयास करे कि देश भर में इस्लामी संगठन बम विस्फोट कर रहे हैं , देश को तोडने की साजिश हो रही है और संघ जो अपने आप को भारतीयता अथवा हिंदुत्व का पक्षधर मानता है, चुप बैठा है और इस्लामी आतंकवाद र्की इंट का जवाब पत्थर से नहीं दे रहा अर्थात संघ भारतीयता के पुरोधा के रुप में जिस उत्तरदायित्व को निभाने के लिए अवतरित हुआ था उसमें वह असफल हुआ है और अब समयानुकूल हिंदुत्व के एक उग्र संगठन अभिनव भारत की जरुरत है। अभिनव भारत ही इस्लामी आतंकवाद का उत्तर देने में सक्षम है। कर्नल पुरोहित और उनके अभिनव भारत ने इस दायित्व को पूरा करने के लिए उपरोक्त आचरण करना प्रारम्भ कर दिया। भारत सरकार या फिर कांग्रेस पार्टी ऐसा एक प्रयोग पहले भी पंजाब में कर चुकी थी। कांग्रेस ने पंजाब में अकालियों को अपदस्थ करने के लिए और उनकी प्रासंगिकता शून्य करने के लिए मैदान में जनरैल सिंह भिण्डरावाले को उतारा था। दायित्व उसे भी यही दिया गया था कि अकालियों को अपदस्थ करने के लिए अकालियांे से भी उग्र्र घोषणापत्र तैयार किया जाए। भिण्डरावाला जगह -जगह घूम घूमकर बताता था कि अकाली पंजाब और सिक्खों के हितों की रक्षा करने में असफल रहे हैं इसलिए एक नए संगठन की जरुरत पंथ की रक्षा के लिए जरुरी हो गयी है। जब सरकार की सहायता से भिण्डरावाला की कद -काठी बडी हो गयी तो कांग्रेस ने शिरोमणी गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के चुनावों में उसका प्रयोग अपने प्रत्याशियों को जिताने के लिए किया। लेकिन पंजाब के लोगों ने भिण्डरावाला की न मानकर अकाली दल के लोगों को ही जिताया। जाहिर है इससे भिण्डरावाला में निराशा उपजी और कांग्रेस में क्रोध। क्रोध की इस स्थिति में कांग्रेस भिण्डरावाला का उसी प्रकार प्रयोग कर सकती थी जिस प्रकार का प्रयोग उसने बाद के सालों में किया और पंजाब को आतंक की भट्टी में धकेल दिया। कांग्रेस का यह प्रयोग पंजाब में एक प्रकार से प्रादेशिक प्रयोग था। अब बडे स्तर पर कांग्रेस इसे हिन्दुओं के संदर्भ में पूरे देश में करना चाहती थी। तो जाहिर है उसे पढे लिखे और सैनिक प्रकार के व्यक्ति की ही जरुरत होती। क्या कर्नल पुरोहित को उसी भूमिका में उतारा गया था और इस बार निशाने पर अकाली दल के स्थान पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ था घ् शायद अब समय आ गया था कि कांग्रेस हिन्दुओं का यह जताना चाहती थी कि संघ उनकी पहचान और भारतीय अवधारणाओं का उतना पहरेदार नहीं है जितना अभिनव भारत। इसलिए जांच एजेंसियों ने पहले हल्ले में ही देश भर को सूचित कर दिया कि कर्नल पुरोहित और उनका अभिनव भारत राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मोहन भागवत और इन्द्रेेश कुमार की हत्या की योजना बना रहा है। जांच एजेंसियों ने यह दावा भी किया कि इन्द्रेश कुमार आईएसआई के एजेण्ट हैं। याने संदेश स्पष्ट था कि संघ हिन्दू हितों का रक्षक नहीं है इसीलिए देश के हिन्दू उससे निराश हो रहे हैं। कर्नल पुरोहित का अभिनव भारत ही अब एकमात्र आशा है। जाहिर है कि इस हत्या की योजना की जरुरत तभी पडी होगी जब कर्नल पुरोहित और उनके आदमियों को विश्वास हो गया होगा कि संघ मुसलमानों के खिलाफ आतंकवादी गतिविधियों में शामिल होने के लिए तैयार नहीं है और न ही मुसलमानों को जमात के तौर पर आतंकवादी मानता है।
कर्नल पुरोहित और उनके अभिनव भारत का दूसरा उत्तरदायित्व संध और उसके आनुषांगिक संगठनों के कार्यकर्ताओं को तोडना था। लेकिन इस कार्य में उन्हें शायद बहुत सफलता नहीं मिली। 4-5 लोगों को छोडकर और किसी का अभिनव भारत से सम्पर्क नहीं हुआ। शायद इन चार पांच लोगों को ही कर्नल पुरोहित यह समझाने में सफल हो पाए होंगे कि संघ इस मामले में मौन सिद्ध हुआ है और नए संगठन की भारी जरुरत है। साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर कभी विद्यार्थी परिषद् से जुडी रही हैं। समीर कुलकर्णी अरसा पहले विश्व हिंदू परिषद में सक्रिय रहे थे। इसी प्रकार देवेन्द्र गुप्ता भी कभी संघ में सक्रिय रहे थे। अभिनव भारत का निर्माण कर्नल पुरोहित ने 2007 के अंत में किया था। इसका अर्थ यह हुआ कि कांग्रेस को इस वोट राजनीति का हिसाब -किताब जोडते समय महसूस हुआ होगा कि हिन्दू आतंकवाद को प्रचलित करना भी बहुत जरुरी है। परन्तु जो दो काम सरकार ने कर्नल पुरोहित को दिए थे उनमें से पहले काम में वे सफल नहीं हो पाए। न तो वे संघ की छवि को धूमिल कर पाए, न ही संघ के कार्यकर्ताओं को तोडपाए और न ही संघ में फूट डलवा सके। जाहिर है संघ को खारिज करने का यह पहला अभियान टांय -टायं फिस्स हो गया। लेकिन क्योंकि अब संगठन खडा हो चुका था और कर्नल पुरोहित भी बहुत दूर तक आगे निकल आए थे। इसलिए सरकार के सामने समस्या आयी होगी कि अब कर्नल पुरोहित और उनके संगठन का क्या किया जाए।
यह समस्या पंजाब में भिण्डरावाला और उनके संगठन को लेकर भी उस समय सरकार के सामने आयी थी जब भिण्डरावाला शिरोमणी गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के चुनावों में कांग्रेस को जिताने में और अकाली दल को खारिज करने में असफल हुए थे। तब कांग्रेस ने सरकार की सहायता से भिण्डरावाला का जो प्रयोग किया था उसके घाव अब भी पंजाब की छाती पर लगे हुए हैं। लगता है कर्नल पुरोहित और अभिनव भारत का, पहले मोर्चे पर असफल हो जाने के बाद, उसी प्रकार का प्रयोग करने की योजना सरकार बना रही है। जांच एजेंसियों ने कर्नल पुरोहित से हासिल की गयी इस तथाकथित जानकारी को कि कर्नल संघ अधिकारियों की हत्या करवाने की योजना बना रहे थे, मीडिया में हवा देना बंद कर दिया। इसी योजना के अंतर्गत सरकार ने यह निर्णय किया कि यदि अभिनव भारत के माध्यम से संघ में फूट नहीं डलवायी जा सकी तो इसके माध्यम से संघ का आतंकवाद से तो जोडा ही जा सकता है क्योंकि अभिनव भारत के लोगों में से 4-5 लोग कभी संघ से जुडे रहे हैं। दरअसल , यह चित्त भी अपनी और पट्ट भी अपनी वाली रणनीति थी। अभिनव भारत का प्रयोग कांग्रेस ने हिन्दू कार्ड खेलने के लिए किया था। और उसी चक्कर में दिग्गविजय सिंह के हिन्दू आतंकवाद से बढते-बढते पी0 चिदम्बरम भगवा आतंकवाद तक पहुंचे , परन्तु दुर्भाग्य से कांग्रेस का यह हिन्दू कार्ड देश के लोगों में चल नहीं पाया। तब कांग्रेस ने इसी संगठन के माध्यम से मुस्लिम कार्ड खेलने की योजना बनायी और अभिनव भारत की तथाकथित गतिविधियों के माध्यम से संघ को आतंकवाद से जोडने की साजिश की। देहात में एक मुहावरा प्रचलित है कि -गाजर की पीपनी, बज जाए तो बज जाए नही ंतो खाने के काम आए। पहली योजना में सरकार अभिनव भारत को संघ विरोधी और उग्र हिन्दुत्व का सर्मथक बता रही थी लेकिन अब दूसरी योजना में उसे संघ से मिला हुआ सिद्व करने में लगी हुई थी। अब कांग्रेस मुसलमानों को बता रही थी कि संघ आपका शत्रु है और आतंकवाद से जुडा हुआ है इसलिए आपको इस समय सबसे ज्यादा जरुरत सुरक्षा की है और यह सुरक्षा कांग्रेस ही मुहैया करवा सकती है। इसलिए सौदा बहुत सस्ता और साफ है। कांग्रेस को वोट दो और अपनी सुरक्षा पक्की करो नहीं तो संघ तो अभिनव भारत के माध्यम से जगह -जगह विस्फोट करवा ही रहा है। इस अवधारणा को मुसलमानों के गले उतारने के लिए जरुरी था कि संघ को अनेक विस्फोटों से नत्थी किया जाय।लेकिन इस पूरी रणनीति में एक ही बाधा सामने आ रही थी वह था इन्द्रेश कुमार का राष्ट्रीय मुस्लिम मंच। संघ तो पिछले कुछ वर्षों से मुसलमानों से सार्थक संवाद रचना का प्रयास कर रहा था और इसमें उसे कुछ हद तक सफलता भी मिली थी। खासकर कश्मीर प्रांत में जिस प्रकार वहां के शिया, गुज्जर, बकरवाल और अन्य जनजातीय समुदाय के लाग आतंकवाद के खिलाफ खुलकर बोलने लगे थे उससे कांग्रेस की चिंता बढना स्वाभाविक ही था और यह सब कुछ इन्द्रेश कुमार के प्रयासों से हो रहा था। इसलिए जरुरी था कि इन्द्रेश कुमार को भी इन विस्फोटों से नत्थी किया जाए। लेकिन लाख प्रयासों के बावजूद इन्द्रेश कुमार के खिलाफ कोई प्रमाण नहीं मिल रहा था।
समझौता एक्सप्रैस बम विस्फोट-18 फरवरी 2007 को पाकिस्तान जानेवाली समझौता एक्सप्रेस गाडी में पानीपत के पास दीवाना नामक गांव के पास जबरदस्त बम विस्फोट हुआ। यह बम विस्फोट मालेगांव जैसा देसी बम विस्फोट नहीं था बल्कि उच्च तकनीकी प्रक्रिया का घातक बम विस्फोट था। इस बम विस्फोट में 68 लोग मारे गए जिनमें 42 पाकिस्तानी नागरिक थे और 26 भारतीय नागरिक थे। भारतीय सेना के अनेक जवान इसमें हताहत हुए। हरियाणा पुलिस ने इस विस्फोट की जांच शुरु की। जांच में पाया गया कि विस्फोट एक सूटकेस में आईईडी के माध्यम से करवाया गया। एक सूटकेस रेलवे ट्रैक पर भी पाया गया जिसमें डेटोनेटर से जुडे हुए आईईडी रखे हुए थे और इनसे डिजीटल टाईमर भी जुडा हुआ था। मार्च 2007 में हरियाणा पुलिस ने इंदौर से दो लोगों को गिरफ्तार किया जिन पर विस्फोट में शामिल होने का संदेह था। मार्च 2007 में ही चंडीगढ में रेलवे के आईजी के.के. मिश्रा ने बताया कि इस विस्फोट के तार पाकिस्तान से जुडे हुए हैं। हरियाणा पुलिस एक सूत्र से दूसरे सूत्र को जोडती हुई अंत में सिमी ;जिसे भारत सरकार ने प्रतिबंधित किया हुआ है द्ध के सरगना सफदर नागौरी तक पहुंची, जिसने इस विस्फोट को करवाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी थी। जांच में यह भी पाया गया कि लश्कर-ए-तैयबा के आरिफ कासमानी के लोगों ने इस विस्फोट को अंजाम दिया और इसमें सिमी ने सक्रिय भूमिका निभायी। आरिफ कासमानी लश्कर -ए -तैयबा से सम्बंधित है और इसने जुलाई 2006 में मुम्बई में हुए रेल धमाकों में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभायी थी। मुम्बई के जुलाई 2006 के बम धमाकों के लिए उसे पैसा दाउद इब्राहिम ने दिया था। आरिफ कासमानी आतंकवादी गतिविधियां चलाने के लिए अलकायदा को भी वित्तीय सहायता प्रदान करता था। अफगानिस्तान में अलकायदा के आतंकवादियों को पहुंचाने और उन्हें वहां से बाहर निकालने में आरिफ कासमानी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता था। अलकायदा ने बदले में कासमानी को मुम्बई के जुलाई 2006 और समझौता एक्सप्रेस में फरवरी 2007 के बम विस्फोटों में भरपूर सहायता की। 2005 में आरिफ कासमानी ने अफगानिस्तान में तालिबान के लिए हथियार लाने ले जाने मंे भी सहायता की। सरकार की जांच एजेंसियों ने समझौता एक्सप्रेस के लिए लश्कर -ए -तैयबा के इसी आरिफ कासमानी और उसके गुर्गो को जिम्मेदार ठहराया और इस सम्बंध में अनेक लोगों को गिरफ्तार किया जो अभी भी जेलों में हैं। किस्सा कोताह यह कि हरियाणा पुलिस की सक्रियता और अन्य एजेंसियों की सहायता से समझौता एक्सप्रेस विस्फोट की जांच जल्दी ही पूरी कर ली गयी और उसमें स्पष्ट ही पाकिस्तान का हाथ दिखायी दे रहा था। भारत सरकार ने पाकिस्तान सरकार को इस विस्फोट में पाकिस्तानी संलिप्तता के प्रमाण भी दिए और इस प्रकार की गतिविधियों को बंद करने की चेतावनी भी।
भारत सरकार ने अपनी इस प्रमाण युक्त जांच की रपट अमेरिका और संयुक्त राष्ट्र संघ को भी दी। अमेरिका ने इसकी एक स्वतंत्र जांच अपने सूत्रों से भी करवायी। अमेरिका की जांच एजेंसियां भी इसी निष्कर्ष पर पहुंची कि समझौता एक्सप्रेस विस्फोट में लश्कर -ए-तैयबा का हाथ है। संयुक्त राष्ट्रसंघ की सुरक्षा परिषद से जुडी अलकायदा और तालिबान प्रतिबंध कमेटी ने इस जांच रिपोर्ट की गहरायी से छानबीन करने के उपरांत इसको स्वीकार किया और आरिफ कासमानी को समझौता एक्सप्रेस विस्फोट व अन्य अनेक आतंकवादी गतिविधियों में लिप्त होने के कारण प्रतिबंधित सूची में शामिल कर दिया।
हैदराबाद मक्का मस्जिद का विस्फोट -18 मई 2007 को हैदराबाद की मक्का मस्जिद में बम विस्फोट हुआ। मुस्लिम बहुल इस क्षेत्र में चार मीनार के पास की मक्का मस्जिद में नमाज के लिए लगभग दस हजार लोग एकत्रित थे। मोटी पाईप में आरडीएक्स भरकर उसमें मोबाईल के माध्यम से विस्फोट किया गया। इस विस्फोट में 16 लोग मारे गए और 100 से ज्यादा घायल हुए। आमतौर पर इतने भारी बम विस्फोट के बाद लोग जान बचाने के लिए इधर -उधर भागते हैं परन्तु इस बम विस्फोट के बाद लोगों ने तुरन्त ही एकत्रित होकर कुछ व्यापारिक प्रतिष्ठानों और दुकानों को निशाना बनाना शुरु कर दिया। पुलिस पर हमला कर दिया और एक पेट्रोल पम्प को आग लगाने की कोशिश की। आत्म सुरक्षा के लिए पुलिस द्वारा चलायी गयी गोली से भी कुछ लोगों की मृत्यु हो गयी। आंध्र प्रदेश पुलिस ने बिना समय गंवाए बम विस्फोट की जांच शुरु की। प्रारम्भिक जांच के बाद प्रदेश के गृहमंत्री के जना रेड्डी ने खुलासा किया कि इस विस्फोट के पीछे विदेशी शक्तियों का हाथ है। जाहिर है उनका इशारा पाकिस्तान की तरफ था। जैसे -जैसे जांच आगे बढती गयी वैसे -वैसे स्पष्ट होता गया कि इस भयानक विस्फोट के पीछे हरकत -उल -जिहाद -अल -इस्लामी का हाथ है। इसके पुख्ता सबूत मिल जाने के बाद आंध्र प्रदेश पुलिस और भारत सरकार ने भी हूजी को इस अपराध के लिए चिन्हित किया। हूजी का संचालन भी पाकिस्तान में बैठे उसके आका ही कर रहे हैं। हूजी की हैदराबाद बम विस्फोट में संलिप्तता पुख्ता तौर पर सिद्ध हो चुकी थी। अमेरिका के गृहमंत्रालय ने भी इसकी अपने स्तर पर जांच करवायी और 6 अगस्त 2007 को हूजी को अंतर्राष्ट्रीय आतंकवादी गिरोह घोषित करके उसे प्रतिबंधित कर दिया। संयुक्त राष्ट्र ने इसी आधार पर हूजी को प्रतिबंधित किया। इस प्रकार भारतीय जांच एजेंसियों ने बहुत कम समय में तेजी से जांच पूरा करते हुए उसके पीछे के सूत्रधारों को बेनकाब कर दिया और उनसे जुडे अनेक अपराधियों को इस विस्फोट के लिए गिरफ्तार किया। एक बार फिर सिद्ध हुआ कि मक्का मस्जिद बम विस्फोट में विदेशी शक्तियों का हाथ है।
अजमेर दरगाह शरीफ का बम विस्फोट -11 अक्तूबर 2007 को अजमेर की एक दरगाह में बम विस्फोट हुआ जिसमें दो लोग मारे गए और 17 घायल हुए। पुलिस ने इसकी जांच शुरु की तो इसमें हूजी के लोागों की संलिप्तता के प्रमाण मिलने शुरु हुए। हूजी के कमांडर शाहिद बिलाल के बारे में भारत सरकार ने पाकिस्तान सरकार को भी सूचित किया कि इस विस्फोट में इन लोगों का हाथ है। पुलिस का कहना था कि बंग्लादेशी अबू हमजा भी इससे जुडा हुआ था जो कि हूजी का एक सक्रिय कार्यकर्ता है। पुलिस का यह भी कहना था कि इस काम में लश्कर-ए-तैयबा के एक सक्रिय कार्यकर्ता शेख अब्दुल नईम की भी संलिप्तता प्रमाणित हुई है। इसका अर्थ यह हुआ कि 2007 में समझौता एक्सप्रेस, हैदराबाद मक्का मस्जिद और दरगाह शरीफ अजमेर में जो बम विस्फोट हुए उसमंे हूजी, लश्कर -ए -तैयबा का हाथ प्रमाणित हुआ। और इस सम्बंध में भारत सरकार ने जांच मुकम्मल होने पर पाकिस्तान सरकार को भी सूचित किया और अमेरिका को भी इस सम्बंध में जानकारियां दी। अमेरिका ने अपने सूत्रों से भी इन घटनाओं के बारे जानकारियां हासिल कीें और उसी के आधार पर संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद् ने लश्कर -ए -तैयबा और हूजी से जुडे प्रमुख लोगों को आतंकवादी घोषित करते हुए उन पर पाबंदिया आयद की। पाबंदिया आयद करते समय संयुक्त राष्ट्र संघ ने समझौता एक्सप्रेस और हैदराबाद की मक्का मस्जिद में हुए बम विस्फोटों का जिक्र भी किया।
माले गांव में पुनः बम विस्फोट-इसी मरहले पर एक सूरते-हाल उभरी। मालेगांव में 29 सितम्बर 2008 को एक चौराहे पर बम विस्फोट हुए। जिसमें अनेक लोग घायल हुए। ध्यान रहे मालेगांव महाराष्ट्र में इस्लामी कट्टरता का बहुत बडा अड्डा है। दुनिया भर में कहीं भी मुसलमानों से सम्बंधित घटना क्यों न हो , मालेगांव में सरकारी सम्पत्ति को आग लगाने का काम तुरंत शुरु हो जाता है। इससे पहले भी 8 सितम्बर 2006 को मालेगांव में बम विस्फोट हुए थे जिसमें सिमी और लश्कर -ए-तैयबा के लोगों की संलिप्तता पायी गयी थी और पुलिस जांच से यह भी स्पष्ट हुआ था कि इन विस्फोटों में पाकिस्तान का हाथ है। इन विस्फोटों में 31 लोग मारे गए थे और 200 से अधिक लोग घायल हुए थे। पुलिस ने सिमी और लश्कर -ए -तैयबा के लोगों को इन विस्फोटों के लिए गिरफ्तार भी किया था। इसी मालेगांव में 2008 में पुन: विस्फोट हुए।
लेकिन इन विस्फोटों में जांच अभिकरणों ने पूरे दृश्य पर एक अन्य संगठन को लाकर खडा कर दिया। जांच एजेंसियों का कहना था कि इन विस्फोटों के पीछे ‘ अभिनव भारत ’ नाम के संगठन का हाथ है। इस संगठन के कर्ताधर्ता भारतीय सेना में काम कर रहे लेफ्टिनेंट कर्नल श्रीकांत प्रसाद पुरोहित हैं। कर्नल पुरोहित की टीम में जो कुछ और लोग जुडे हुए हैं उनका राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अथवा अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से सम्बंध रहा है। पुलिस का यह भी कहना था कि मुसलमानों द्वारा किए गए विस्फोटों का बदला लेने के लिए ये विस्फोट किए गए थे। जैसे ही जांच एजेंसियों ने अभिनव भारत को विस्फोटों के लिए जिम्मेदार ठहराने की कवायद शुरु की वैसे ही कांग्रेस के महासचिव दिग्विजय सिंह ने हिन्दू आतंकवाद का एक नया नारा देना शुरु कर दिया जिसे मीडिया के एक खास वर्ग की सहायता से सुनियोजित ढंग से जगह -जगह प्रचारित प्रसारित किया गया। महाराष्ट्र के आतंकवाद विरोधी दस्ते ने तथाकथित जांच पूरी करने के बाद मालेगांव बम विस्फोट को लेकर हजारों पृष्ठों की प्राथमिकी दर्ज करवायी जिसमें 14 लोगों को इन विस्फोटों के लिए जिम्मेदार ठहराया गया। इन 14 में से 11 को पुलिस ने पकड लिया और 3 को भगौडा घोषित कर दिया। पकडे गए लोगों में से कर्नल प्रसाद पुरोहित के अतिरिक्त साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर और समीर कुलकर्णी का नाम प्रमुख है।
कर्नल पुरोहित और अभिनव भारत की भूमिका-यहां हमें अभिनव भारत और कर्नल पुरोहित के बारे में थोडी छानबीन करनी होगी। पुरोहित ने 2007 के अंत में अभिनव भारत का गठन किया था। कर्नल पुरोहित को लेकर दो प्रकार की घारणाएं प्रचलित हैं। प्रथम तो यह कि कर्नल पुरोहित को अभिनव भारत नाम का संगठन खडा करने के लिए भारत सरकार की एजंसियों ने ही प्रेरित किया था या फिर उन्हें आधिकारिक तौर पर यह संगठन खडा करने का जिम्मा सौंपा गया था। नए संगठन का नाम अभिनव भारत रखने के पीछे शायद एक कारण यह भी हो कि इस नाम का संगठन कभी ब्रिटिश शासन के खिलाफ स्वतंत्रता युद्ध करते हुए वीर सावरकर ने खडा किया था। लेकिन अंग्रेजों के चले जाने के बाद उन्होंने इस संगठन को भंग कर दिया था। सरकारी एजेंसियां भी शायद कर्नल पुरोहित के नेतृत्व में अभिनव भारत को दोबारा जिंदा करने के पीछे उसे हिंदू रंगत देने की सोच रहीं हो। अभिनव भारत के माध्यम से कर्नल पुरोहित को यह जिम्मेदारी दी गयी कि वह राष्ट्रीय स्वयंसेवकसंघ और उससे जुडे संगठनों में असंतोष पैदा करे। उनके ज्यादा से ज्यादा कार्यकर्ताओं को अपने साथ जोडे और उनमें फूट डलवाने की कोशिश करे। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए यह जरुरी था कि कर्नल पुरोहित और उनका अभिनव भारत हिंदुओं को लेकर उग्र नारा लगाए और यह अवधारणा आम कार्यकर्ता के मन में बिठाने का प्रयास करे कि देश भर में इस्लामी संगठन बम विस्फोट कर रहे हैं , देश को तोडने की साजिश हो रही है और संघ जो अपने आप को भारतीयता अथवा हिंदुत्व का पक्षधर मानता है, चुप बैठा है और इस्लामी आतंकवाद र्की इंट का जवाब पत्थर से नहीं दे रहा अर्थात संघ भारतीयता के पुरोधा के रुप में जिस उत्तरदायित्व को निभाने के लिए अवतरित हुआ था उसमें वह असफल हुआ है और अब समयानुकूल हिंदुत्व के एक उग्र संगठन अभिनव भारत की जरुरत है। अभिनव भारत ही इस्लामी आतंकवाद का उत्तर देने में सक्षम है। कर्नल पुरोहित और उनके अभिनव भारत ने इस दायित्व को पूरा करने के लिए उपरोक्त आचरण करना प्रारम्भ कर दिया। भारत सरकार या फिर कांग्रेस पार्टी ऐसा एक प्रयोग पहले भी पंजाब में कर चुकी थी। कांग्रेस ने पंजाब में अकालियों को अपदस्थ करने के लिए और उनकी प्रासंगिकता शून्य करने के लिए मैदान में जनरैल सिंह भिण्डरावाले को उतारा था। दायित्व उसे भी यही दिया गया था कि अकालियों को अपदस्थ करने के लिए अकालियांे से भी उग्र्र घोषणापत्र तैयार किया जाए। भिण्डरावाला जगह -जगह घूम घूमकर बताता था कि अकाली पंजाब और सिक्खों के हितों की रक्षा करने में असफल रहे हैं इसलिए एक नए संगठन की जरुरत पंथ की रक्षा के लिए जरुरी हो गयी है। जब सरकार की सहायता से भिण्डरावाला की कद -काठी बडी हो गयी तो कांग्रेस ने शिरोमणी गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के चुनावों में उसका प्रयोग अपने प्रत्याशियों को जिताने के लिए किया। लेकिन पंजाब के लोगों ने भिण्डरावाला की न मानकर अकाली दल के लोगों को ही जिताया। जाहिर है इससे भिण्डरावाला में निराशा उपजी और कांग्रेस में क्रोध। क्रोध की इस स्थिति में कांग्रेस भिण्डरावाला का उसी प्रकार प्रयोग कर सकती थी जिस प्रकार का प्रयोग उसने बाद के सालों में किया और पंजाब को आतंक की भट्टी में धकेल दिया। कांग्रेस का यह प्रयोग पंजाब में एक प्रकार से प्रादेशिक प्रयोग था। अब बडे स्तर पर कांग्रेस इसे हिन्दुओं के संदर्भ में पूरे देश में करना चाहती थी। तो जाहिर है उसे पढे लिखे और सैनिक प्रकार के व्यक्ति की ही जरुरत होती। क्या कर्नल पुरोहित को उसी भूमिका में उतारा गया था और इस बार निशाने पर अकाली दल के स्थान पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ था घ् शायद अब समय आ गया था कि कांग्रेस हिन्दुओं का यह जताना चाहती थी कि संघ उनकी पहचान और भारतीय अवधारणाओं का उतना पहरेदार नहीं है जितना अभिनव भारत। इसलिए जांच एजेंसियों ने पहले हल्ले में ही देश भर को सूचित कर दिया कि कर्नल पुरोहित और उनका अभिनव भारत राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मोहन भागवत और इन्द्रेेश कुमार की हत्या की योजना बना रहा है। जांच एजेंसियों ने यह दावा भी किया कि इन्द्रेश कुमार आईएसआई के एजेण्ट हैं। याने संदेश स्पष्ट था कि संघ हिन्दू हितों का रक्षक नहीं है इसीलिए देश के हिन्दू उससे निराश हो रहे हैं। कर्नल पुरोहित का अभिनव भारत ही अब एकमात्र आशा है। जाहिर है कि इस हत्या की योजना की जरुरत तभी पडी होगी जब कर्नल पुरोहित और उनके आदमियों को विश्वास हो गया होगा कि संघ मुसलमानों के खिलाफ आतंकवादी गतिविधियों में शामिल होने के लिए तैयार नहीं है और न ही मुसलमानों को जमात के तौर पर आतंकवादी मानता है।
कर्नल पुरोहित और उनके अभिनव भारत का दूसरा उत्तरदायित्व संध और उसके आनुषांगिक संगठनों के कार्यकर्ताओं को तोडना था। लेकिन इस कार्य में उन्हें शायद बहुत सफलता नहीं मिली। 4-5 लोगों को छोडकर और किसी का अभिनव भारत से सम्पर्क नहीं हुआ। शायद इन चार पांच लोगों को ही कर्नल पुरोहित यह समझाने में सफल हो पाए होंगे कि संघ इस मामले में मौन सिद्ध हुआ है और नए संगठन की भारी जरुरत है। साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर कभी विद्यार्थी परिषद् से जुडी रही हैं। समीर कुलकर्णी अरसा पहले विश्व हिंदू परिषद में सक्रिय रहे थे। इसी प्रकार देवेन्द्र गुप्ता भी कभी संघ में सक्रिय रहे थे। अभिनव भारत का निर्माण कर्नल पुरोहित ने 2007 के अंत में किया था। इसका अर्थ यह हुआ कि कांग्रेस को इस वोट राजनीति का हिसाब -किताब जोडते समय महसूस हुआ होगा कि हिन्दू आतंकवाद को प्रचलित करना भी बहुत जरुरी है। परन्तु जो दो काम सरकार ने कर्नल पुरोहित को दिए थे उनमें से पहले काम में वे सफल नहीं हो पाए। न तो वे संघ की छवि को धूमिल कर पाए, न ही संघ के कार्यकर्ताओं को तोडपाए और न ही संघ में फूट डलवा सके। जाहिर है संघ को खारिज करने का यह पहला अभियान टांय -टायं फिस्स हो गया। लेकिन क्योंकि अब संगठन खडा हो चुका था और कर्नल पुरोहित भी बहुत दूर तक आगे निकल आए थे। इसलिए सरकार के सामने समस्या आयी होगी कि अब कर्नल पुरोहित और उनके संगठन का क्या किया जाए।
यह समस्या पंजाब में भिण्डरावाला और उनके संगठन को लेकर भी उस समय सरकार के सामने आयी थी जब भिण्डरावाला शिरोमणी गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के चुनावों में कांग्रेस को जिताने में और अकाली दल को खारिज करने में असफल हुए थे। तब कांग्रेस ने सरकार की सहायता से भिण्डरावाला का जो प्रयोग किया था उसके घाव अब भी पंजाब की छाती पर लगे हुए हैं। लगता है कर्नल पुरोहित और अभिनव भारत का, पहले मोर्चे पर असफल हो जाने के बाद, उसी प्रकार का प्रयोग करने की योजना सरकार बना रही है। जांच एजेंसियों ने कर्नल पुरोहित से हासिल की गयी इस तथाकथित जानकारी को कि कर्नल संघ अधिकारियों की हत्या करवाने की योजना बना रहे थे, मीडिया में हवा देना बंद कर दिया। इसी योजना के अंतर्गत सरकार ने यह निर्णय किया कि यदि अभिनव भारत के माध्यम से संघ में फूट नहीं डलवायी जा सकी तो इसके माध्यम से संघ का आतंकवाद से तो जोडा ही जा सकता है क्योंकि अभिनव भारत के लोगों में से 4-5 लोग कभी संघ से जुडे रहे हैं। दरअसल , यह चित्त भी अपनी और पट्ट भी अपनी वाली रणनीति थी। अभिनव भारत का प्रयोग कांग्रेस ने हिन्दू कार्ड खेलने के लिए किया था। और उसी चक्कर में दिग्गविजय सिंह के हिन्दू आतंकवाद से बढते-बढते पी0 चिदम्बरम भगवा आतंकवाद तक पहुंचे , परन्तु दुर्भाग्य से कांग्रेस का यह हिन्दू कार्ड देश के लोगों में चल नहीं पाया। तब कांग्रेस ने इसी संगठन के माध्यम से मुस्लिम कार्ड खेलने की योजना बनायी और अभिनव भारत की तथाकथित गतिविधियों के माध्यम से संघ को आतंकवाद से जोडने की साजिश की। देहात में एक मुहावरा प्रचलित है कि -गाजर की पीपनी, बज जाए तो बज जाए नही ंतो खाने के काम आए। पहली योजना में सरकार अभिनव भारत को संघ विरोधी और उग्र हिन्दुत्व का सर्मथक बता रही थी लेकिन अब दूसरी योजना में उसे संघ से मिला हुआ सिद्व करने में लगी हुई थी। अब कांग्रेस मुसलमानों को बता रही थी कि संघ आपका शत्रु है और आतंकवाद से जुडा हुआ है इसलिए आपको इस समय सबसे ज्यादा जरुरत सुरक्षा की है और यह सुरक्षा कांग्रेस ही मुहैया करवा सकती है। इसलिए सौदा बहुत सस्ता और साफ है। कांग्रेस को वोट दो और अपनी सुरक्षा पक्की करो नहीं तो संघ तो अभिनव भारत के माध्यम से जगह -जगह विस्फोट करवा ही रहा है। इस अवधारणा को मुसलमानों के गले उतारने के लिए जरुरी था कि संघ को अनेक विस्फोटों से नत्थी किया जाय।लेकिन इस पूरी रणनीति में एक ही बाधा सामने आ रही थी वह था इन्द्रेश कुमार का राष्ट्रीय मुस्लिम मंच। संघ तो पिछले कुछ वर्षों से मुसलमानों से सार्थक संवाद रचना का प्रयास कर रहा था और इसमें उसे कुछ हद तक सफलता भी मिली थी। खासकर कश्मीर प्रांत में जिस प्रकार वहां के शिया, गुज्जर, बकरवाल और अन्य जनजातीय समुदाय के लाग आतंकवाद के खिलाफ खुलकर बोलने लगे थे उससे कांग्रेस की चिंता बढना स्वाभाविक ही था और यह सब कुछ इन्द्रेश कुमार के प्रयासों से हो रहा था। इसलिए जरुरी था कि इन्द्रेश कुमार को भी इन विस्फोटों से नत्थी किया जाए। लेकिन लाख प्रयासों के बावजूद इन्द्रेश कुमार के खिलाफ कोई प्रमाण नहीं मिल रहा था।
Sabhaar: www.pravakta.com
बहुत गम्भीर मुद्दा है..
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