Sabhaar : http://www.pravakta.com
आ. संजीव जी.
जैसा कि आप जानते हैं कि प्रवक्ता से अपना भी जुड़ाव इसके शुरुआती दौर से ही रहा है. कुछ अपवादों को छोड़ दें तो वेब पर नियमित लेखन अपना प्रवक्ता से ही शुरू हुआ था. तो मिळकियत ये भले ही आपका या भारत जी का रहा हो लेकिन मुझे भी यह हमेशा अपना ही लगा. जब कई बार आपने अपने उचित सरोकारों के कारण मेरा लेख पोस्ट करने से इनकार भी किया तो भी आपका संपादकीय विशेषाधिकार समझ, फैसले को शिरोधार्य किया. लेकिन इस बार आपसे चाहे गए फैसले को सीधे तौर पर आपने फासीवाद और सामंतवाद कह दिया. हम फ़िर इस बात को दुहरा रहे हैं कि अगर इस बहस का कुछ सार नहीं निकला तो लोग इसे ‘प्रोपगंडा’ ही समझेंगे, क्योंकि हमारे लिए विश्वसनीय ‘होने’ के अलावा ‘दिखना’ भी ज़रूरी है. तो आपसे उम्मीद खत्म हो जाने पर मैं अपनी तरफ से एक पहल कर रहा हूँ. यह मेरे और प्रवक्ता की विश्वसनीयता कायम रखने के लिए शायद उपयोगी हो.
आज से मैं एक लेखक और टिप्पणीकार के रूप में इस साईट से स्वयं को निर्वासित करता हूँ. यह साबित करने के लिए कि यह बहस महज़ बुद्धिविलास या सस्ती लोकप्रियता प्राप्त करने का उपक्रम नहीं था, मेरे लिए यह ज़रूरी है. निश्चित ही मुझे प्रवक्ता से काफी प्यार है, अपने आ. टिप्पणीकारों,पाठकों, मार्गदर्शकों के प्रति अत्यधिक अनुग्रहित भी महसूस करता हूँ. निश्चित ही मैं अपने रूटीन की तरह प्रावाका पर आता भी रहूँगा. अपने प्रिय लेखकों, आ. टिप्पणीकारों को पढता भी रहूँगा. लेकिन जब-तक आप इस बहस का कोई निष्कर्ष सार्वजनिक नहीं करेंगे (हालांकि आप नहीं करेंगे यह आपने बता दिया है) तब-तक एक लेखक के रूप में अब इस साईट से खुद को निकाला दे रहा हूँ. सदा की तरह प्रवक्ता के लिए अनन्य-अशेश शुभकामना….आपको धन्यवाद
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