Alok Tomar
डॉक्टर प्रणय रॉय और उनकी धर्म पत्नी राधिका ने नोटिस भिजवाया है। इनकी कंपनी एनडीटीवी की तरफ से ये नोटिस भिजवाया गया है। एनडीटीवी ने ऐसे कामों के लिए एक भारी भरकम कॉरपोरेट कानूनी कंपनी की सेवाएं ले रखी हैं। एनडीटीवी की ओर से लीगल नोटिस मुझे, यशवंत को, एमजे अकबर को, डेटलाइन इंडिया को, भड़ास4मीडिया को, दी संडे गार्जियन को थमाया गया है, मेल के जरिए भी और डाक से भेजकर भी।
एनडीटीवी ने कानूनी नोटिस भेज कर कहा है कि कंपनी के शेयरों की हेराफेरी में प्रणय रॉय की तुलना केतन पारिख से करने को ले कर हम सभी लोग माफी मांगें और उस माफी को धूम धड़ाके के साथ अपने-अपने पोर्टलों-साइटों पर प्रकाशित करें। अब जो बरखा दत्त मनमोहन सिंह को भी आदेश दे सकती है कि राजा को मंत्री बना लीजिए और राजा मंत्री बन भी जाते हैं ऐसी बरखा के बादलों यानी बॉस प्रणय रॉय का हम क्या बिगाड़ सकते हैं इसलिए लीजिए धूम धड़ाके से माफी पेश है। श्री प्रणय रॉय, हमे अफसोस है और हम शर्मिंदा हैं कि हमने आपके सिर्फ एक पक्ष के बारे में लिखा। कहानियां तो दिल्ली स्कूल ऑफ इकॉनामिक्स के जमाने से चलती आ रही हैं और स्टार वाले मर्डोक से भी सुना है कि एनडीटीवी ने स्टार के ठेके पर बनाए गए हर शो का कॉपीराइट हड़प करने की कैसे कोशिश की थी। लेकिन हमे लगा कि गंदा है लेकिन धंधा है। हम आपको रोजी रोटी के मामले में जलील क्यों करें? मगर बात आपने ही छेड़ी है तो जवाब भी सुन लीजिए।
आप कितनी रकम लेकर टीवी की दुनिया में आए थे और आज हजारों करोड़ का जो कारोबार बिखेर रखा है इसके पीछे का सच क्या है? क्या सच यह नहीं है कि करोड़ की पहली रकम आपने दूरदर्शन के फुटेज उसी को बेच कर कमाई थी और इस मामले में आपके और दूरदर्शन के कई बड़े अफसरों के खिलाफ बाकायदा सीबीआई में मुकदमा दर्ज हुआ था। अभी इसी साल यानी 2010 में सीबीआई ने लगभग उसी तरह यह मुकदमा वापस ले लिया जैसे महाठग और पद्मभूषण संत सिंह चटवाल का मुकदमा वापस लिया था। पद्म विभूषण तो आप भी हैं। पद्म सम्मानों और आर्थिक अपराधों का क्या आपस में कोई रिश्ता होता है?
एनडीटीवी पहले सिर्फ दूरदर्शन के लिए साप्ताहिक और बजट समीक्षा के कार्यक्रम बनाती थी। आप श्री प्रणय रॉय उस समय एक कमरे से चलने वाली इस कंपनी के एग्जीक्यूटिव चेयरमैन थे। आप पर और आपकी कंपनी पर दूरदर्शन को तीन करोड़ बावन लाख रुपए का नुकसान पहुंचाने और सरकारी अफसरों को रिश्वत देने के मामले में साजिश या धारा 120 बी और प्रिवेंशन ऑफ करप्शन एक्ट के तहत मामले दर्ज हुए थे।
उस समय दूरदर्शन से निकल कर बाद में स्टार टीवी में चले गए रतिकांत बसु के खिलाफ भी सीबीआई ने जांच शुरू की थी और इस बारे में उस समय के पर्सनल विभाग के अतिरिक्त सचिव वी लक्ष्मी रतन के हाथ की लिखी फाइल मौजूद है। इस मामले में रिश्वत देने वाले प्रणय रॉय थे और लेने वाले बसु। अगर मेरी जानकारी गलत हो तो लुथराओं से कहिए कि एक और नोटिस भेज दें। उसका भी जवाब अपने पास है। हमें मालूम है कि वे क्या लिखेंगे। हमे मालूम है कि आपके दामन में कितने छेद हैं।
सीबीआई ने जांच की शुरुआत के वक्त दो आरोपों पर ध्यान दिया था। रतिकांत बसु ने दूरदर्शन के महानिदेशक की हैसियत से प्रणय रॉय के एनडीटीवी द्वारा बनाए गए समाचार कार्यक्रम 'दी वर्ल्ड स्पीक' को प्रायोजकों से ज्यादा पैसे वसूलने के लिए ए वर्ग में रखा था। यह पहला और आखिरी समाचार कार्यक्रम था जो इस वर्ग में तब तक रखा गया था। संसद की लोकलेखा समिति तक ने इस घपले की आलोचना की थी। प्रणय बाबू आप किस दुनिया में रहते हैं? कोई आश्चर्य की बात नहीं कि जब एनडीटीवी और स्टार टीवी का गठबंधन हुआ तो रतिकांत बसु को सरकारी नौकरी से रिटायर होने के सिर्फ तीसरे दिन सारे नियम तोड़ कर 15 लाख रुपए प्रति माह के वेतन पर स्टार का सीईओ बना दिया गया। यह रकम बसु को बीस साल पहले मिलती थी। इसीलिए उस समय बसु ने कहा कि लोग मेरी तरक्की से जलते हैं इसलिए मामला बनाया जा रहा है।
स्टार टीवी जब भारत में आया था तो हमारे यहां प्रसारण का लाइसेंस पाने के लिए कई कड़ी शर्ते थीं। तब तक भारत सरकार मनमोहन सिंह के निवेश करो और जूते मारो वाले मंत्र की पूरी तरह भेंट नहीं चढ़ चुकी थी। किसी भी प्रकाशन या प्रसारण संस्था के लिए जरूरी था कि उसमें बहुसंख्यक शेयर्स भारतीय नागरिको के हों। इसीलिए स्टार ने एक फर्जी कंपनी बनाई जो आज भी स्टार न्यूज को चलाती है और उसकी पूंजी कुल मिला कर इतनी नहीं है कि अपने किसी बड़े अधिकारी का एक महीने का वेतन भी दे सके। इसके पहले स्टार ने जी न्यूज के साथ मिल कर धंधा शुरू करने की पहल की थी मगर जी न्यूज ने इरादे समझे और रिश्ता तोड़ लिया। स्टार को हेराफेरी के सारे तरीके बसु ने ही सिखाए थे।
जब स्टार का डीटीएच लाइसेंस प्रतिबंधित कर दिया गया था तो रतिकांत बसु, प्रणय रॉय और उस समय बहती गंगा में हाथ धोने की कोशिश कर रहे रतज शर्मा सीधे तत्कालीन प्रधानमंत्री के पास भागे थे और प्रधानमंत्री ने उस समय के कैबिनेट सचिव टी एस आर सुब्रमण्यम, संचार सचिव वी के गोकाक और सूचना और प्रसारण सचिव एन पी नवानी को इस बात के लिए झाड़ा था कि बगैर प्रधानमंत्री कार्यालय को बताए इतना महत्वपूर्ण फैसला कैसे कर लिया गया। पूरी अफसरशाही बसु और प्रणय रॉय के खिलाफ हो गई थी। बसु पर हर तरफ से हमले हो रहे थे। उन्होंने 15 दिन में इस्तीफा देने की घोषणा कर दी थी। रुपर्ट मर्डोक से ज्यादा बड़ा मीडिया नटवरलाल आज तक दुनिया में पैदा नहीं हुआ। मर्डोक ने अपने बड़े अधिकारी गैरी डेवी को एक सप्ताह में दो बार दिल्ली भेजा, खुद हांगकांग में आ कर बैठ गए। रतिकांत बसु और प्रणय रॉय दिन रात सौदा बचाने की कोशिश कर रहे थे।
आखिरकार जब पूरा खेल उजागर हुआ सीबीआई ने प्रणय रॉय, बसु और दूरदर्शन के पांच और बड़े अधिकारियों के खिलाफ भ्रष्टाचार का मामला दर्ज किया। सीबीआई के विशेष जज अजित भरिहोक की अदालत में जो चार्जशीट दी गई उसमें साफ कहा गया था कि प्रणय रॉय ने आपराधिक षडयंत्र किया है और दूरदर्शन के अधिकारियों ने इसमें मदद की है। खुद प्रणय रॉय ने एनडीटीवी की वार्षिक रपट में 2004 में जा कर इस मामले का वर्णन किया। कुछ लोग कहते हैं कि सुषमा स्वराज ने एनडीए सरकार के दौरान यह मामला दर्ज करवाया था। मगर बात इतनी आसान नहीं है। सुषमा स्वराज मर्डोक से निपटना चाहती थी और एनडीटीवी वगैरह उनके लिए इतने बडे़ नहीं हुए थे।
श्री प्रणय रॉय ने शायद 20 जनवरी 1998 का इंडियन एक्सप्रेस पढ़ा होगा। एक जमाने में राधिका रॉय इसी अखबार की समाचार संपादक हुआ करती थी। इसी अखबार में लिखा है कि सीबीआई ने आपराधिक साजिश का जो मामला एनडीटीवी के प्रबंध निदेशक प्रणय रॉय और सीईओ रतिकांत बसु के खिलाफ दर्ज किया है उसमें शिव शर्मा, हरीश अवस्थी, अशोक मनुसुखानी, एस कपूर और एस कृष्णा भी शामिल थे। हर छोटे छोटे मामले पर खबरें बनाने वाले और देश में बाघों को बचाने की मुहिम चलाने वाले एनडीटीवी की सीबीआई के एक मामले के प्रति खामोशी समझ में नहीं आई। सीबीआई के रिकॉर्ड में दर्ज है कि एनडीटीवी को विशेष तौर पर माइक्रोवेव और उपग्रह अपलिंकिंग सुविधाएं बिना उचित रिस्क के दी गई थी और मुंबई स्टूडियो में आने वाले दुनिया भर के फुटेज को वे इस्तेमाल भी कर सकते थे। विमला भल्ला नाम की एक अधिकारी मदद करती थी और प्रणय रॉय दिन रात और साप्ताहिक शो में भी इन दृश्यों का इस्तेमाल करके इनकी कीमत दूरदर्शन से ही वसूल करते थे।
असली खेल तो यह था कि प्रणय रॉय के शो की कीमत दूरदर्शन की कॉस्टिंग कमेटी ने पचास हजार रुपए प्रति एपिसोड तय की थी मगर एनडीटीवी ने 81 हजार रुपए प्रति एपिसोड का बिल दिया था और विमला भल्ला ने ओएसडी न्यूज के नाते इसे फौरन मंजूर कर लिया था। यह मामला काल के शून्य में चला गया। रही बात एनडीटीवी के शेयर घोटाले की तो प्रणय रॉय ने बहुत चतुर रास्ता खोजा। बहुत सारी कंपनियां विदेश में बनाई और भारत में सौ रुपए में भी नहीं बिक रहे शेयर को वहां पांच सौ रुपए के आसपास बेच कर नीदरलैंड और लंदन तक से लगभग एक हजार करोड़ रुपए वसूल लिए। आखिर दिल्ली के ग्रेटर कैलाश में बहुत सारे बंगले और अर्चना सिनेमा जैसे महंगे कॉम्पलेक्स ऐसे ही नहीं खरीद लिए जाते। संपत्ति हड़पने की अलग कहानी है।
प्रणय रॉय आपको याद होगा कि आपके चैनल ने गैर समाचार श्रेणी का जो पहला और आखिरी कार्यक्रम 'जी मंत्री जी' बनाया था और जो स्टार प्लस पर प्रसारित हुआ था, उसे मैंने ही लिखा था। हिंदी न जानने वाली एक ताड़का इसकी प्रोड्यूसर थी और उनके सौभाग्य से लंदन में बीबीसी में बैठे परवेज आलम हर पटकथा की जांच कर के अगर जरूरी होता था तो मुझे संशोधन की सलाह देते थे। जब आपकी इतनी खिंचाई कर ली तो थोड़ा बहुत अपनी तारीफ करने का हक भी बनता है। 'जी मंत्री जी' प्रसारित हुआ और काफी चर्चित हुआ। पेंग्विन ने इसकी पटकथा पर किताब भी छापी। लेकिन 'जी प्रधानमंत्री जी' मैंने नहीं लिखा था और उसे स्टार ने प्रसारण लायक भी नहीं समझा। इस कहानी से शिक्षा मिलती है कि सब कुछ हेराफेरी से नहीं हो जाता। थोड़ी बुद्वि, थोड़ी प्रतिभा और थोड़ी ईमानदारी चाहिए होती है।
मैं वाकई आपका प्रशंसक रहा हूं और मुझे यहां जो लिखा गया है वह लिखते हुए प्रसन्नता नहीं हो रही। लेकिन एक मुद्दा था जो उठाया गया था जिसे आपने वकीलों को मोटी फीस दे कर झूठा करार दिया था। सच को पूरे संदर्भों के साथ सच की तरह देखा जाए इसलिए यह लिखा गया है। अगर बुरा लगे तो माफ कर दीजिएगा और ध्यान रखिएगा कि यह मेरी आखिरी माफी है। अदालत जाना हो तो चलते हैं, वहां भी मिल लेंगे।
लेखक आलोक तोमर देश के जाने-माने पत्रकार हैं
एनडीटीवी ने कानूनी नोटिस भेज कर कहा है कि कंपनी के शेयरों की हेराफेरी में प्रणय रॉय की तुलना केतन पारिख से करने को ले कर हम सभी लोग माफी मांगें और उस माफी को धूम धड़ाके के साथ अपने-अपने पोर्टलों-साइटों पर प्रकाशित करें। अब जो बरखा दत्त मनमोहन सिंह को भी आदेश दे सकती है कि राजा को मंत्री बना लीजिए और राजा मंत्री बन भी जाते हैं ऐसी बरखा के बादलों यानी बॉस प्रणय रॉय का हम क्या बिगाड़ सकते हैं इसलिए लीजिए धूम धड़ाके से माफी पेश है। श्री प्रणय रॉय, हमे अफसोस है और हम शर्मिंदा हैं कि हमने आपके सिर्फ एक पक्ष के बारे में लिखा। कहानियां तो दिल्ली स्कूल ऑफ इकॉनामिक्स के जमाने से चलती आ रही हैं और स्टार वाले मर्डोक से भी सुना है कि एनडीटीवी ने स्टार के ठेके पर बनाए गए हर शो का कॉपीराइट हड़प करने की कैसे कोशिश की थी। लेकिन हमे लगा कि गंदा है लेकिन धंधा है। हम आपको रोजी रोटी के मामले में जलील क्यों करें? मगर बात आपने ही छेड़ी है तो जवाब भी सुन लीजिए।
आप कितनी रकम लेकर टीवी की दुनिया में आए थे और आज हजारों करोड़ का जो कारोबार बिखेर रखा है इसके पीछे का सच क्या है? क्या सच यह नहीं है कि करोड़ की पहली रकम आपने दूरदर्शन के फुटेज उसी को बेच कर कमाई थी और इस मामले में आपके और दूरदर्शन के कई बड़े अफसरों के खिलाफ बाकायदा सीबीआई में मुकदमा दर्ज हुआ था। अभी इसी साल यानी 2010 में सीबीआई ने लगभग उसी तरह यह मुकदमा वापस ले लिया जैसे महाठग और पद्मभूषण संत सिंह चटवाल का मुकदमा वापस लिया था। पद्म विभूषण तो आप भी हैं। पद्म सम्मानों और आर्थिक अपराधों का क्या आपस में कोई रिश्ता होता है?
एनडीटीवी पहले सिर्फ दूरदर्शन के लिए साप्ताहिक और बजट समीक्षा के कार्यक्रम बनाती थी। आप श्री प्रणय रॉय उस समय एक कमरे से चलने वाली इस कंपनी के एग्जीक्यूटिव चेयरमैन थे। आप पर और आपकी कंपनी पर दूरदर्शन को तीन करोड़ बावन लाख रुपए का नुकसान पहुंचाने और सरकारी अफसरों को रिश्वत देने के मामले में साजिश या धारा 120 बी और प्रिवेंशन ऑफ करप्शन एक्ट के तहत मामले दर्ज हुए थे।
उस समय दूरदर्शन से निकल कर बाद में स्टार टीवी में चले गए रतिकांत बसु के खिलाफ भी सीबीआई ने जांच शुरू की थी और इस बारे में उस समय के पर्सनल विभाग के अतिरिक्त सचिव वी लक्ष्मी रतन के हाथ की लिखी फाइल मौजूद है। इस मामले में रिश्वत देने वाले प्रणय रॉय थे और लेने वाले बसु। अगर मेरी जानकारी गलत हो तो लुथराओं से कहिए कि एक और नोटिस भेज दें। उसका भी जवाब अपने पास है। हमें मालूम है कि वे क्या लिखेंगे। हमे मालूम है कि आपके दामन में कितने छेद हैं।
सीबीआई ने जांच की शुरुआत के वक्त दो आरोपों पर ध्यान दिया था। रतिकांत बसु ने दूरदर्शन के महानिदेशक की हैसियत से प्रणय रॉय के एनडीटीवी द्वारा बनाए गए समाचार कार्यक्रम 'दी वर्ल्ड स्पीक' को प्रायोजकों से ज्यादा पैसे वसूलने के लिए ए वर्ग में रखा था। यह पहला और आखिरी समाचार कार्यक्रम था जो इस वर्ग में तब तक रखा गया था। संसद की लोकलेखा समिति तक ने इस घपले की आलोचना की थी। प्रणय बाबू आप किस दुनिया में रहते हैं? कोई आश्चर्य की बात नहीं कि जब एनडीटीवी और स्टार टीवी का गठबंधन हुआ तो रतिकांत बसु को सरकारी नौकरी से रिटायर होने के सिर्फ तीसरे दिन सारे नियम तोड़ कर 15 लाख रुपए प्रति माह के वेतन पर स्टार का सीईओ बना दिया गया। यह रकम बसु को बीस साल पहले मिलती थी। इसीलिए उस समय बसु ने कहा कि लोग मेरी तरक्की से जलते हैं इसलिए मामला बनाया जा रहा है।
स्टार टीवी जब भारत में आया था तो हमारे यहां प्रसारण का लाइसेंस पाने के लिए कई कड़ी शर्ते थीं। तब तक भारत सरकार मनमोहन सिंह के निवेश करो और जूते मारो वाले मंत्र की पूरी तरह भेंट नहीं चढ़ चुकी थी। किसी भी प्रकाशन या प्रसारण संस्था के लिए जरूरी था कि उसमें बहुसंख्यक शेयर्स भारतीय नागरिको के हों। इसीलिए स्टार ने एक फर्जी कंपनी बनाई जो आज भी स्टार न्यूज को चलाती है और उसकी पूंजी कुल मिला कर इतनी नहीं है कि अपने किसी बड़े अधिकारी का एक महीने का वेतन भी दे सके। इसके पहले स्टार ने जी न्यूज के साथ मिल कर धंधा शुरू करने की पहल की थी मगर जी न्यूज ने इरादे समझे और रिश्ता तोड़ लिया। स्टार को हेराफेरी के सारे तरीके बसु ने ही सिखाए थे।
जब स्टार का डीटीएच लाइसेंस प्रतिबंधित कर दिया गया था तो रतिकांत बसु, प्रणय रॉय और उस समय बहती गंगा में हाथ धोने की कोशिश कर रहे रतज शर्मा सीधे तत्कालीन प्रधानमंत्री के पास भागे थे और प्रधानमंत्री ने उस समय के कैबिनेट सचिव टी एस आर सुब्रमण्यम, संचार सचिव वी के गोकाक और सूचना और प्रसारण सचिव एन पी नवानी को इस बात के लिए झाड़ा था कि बगैर प्रधानमंत्री कार्यालय को बताए इतना महत्वपूर्ण फैसला कैसे कर लिया गया। पूरी अफसरशाही बसु और प्रणय रॉय के खिलाफ हो गई थी। बसु पर हर तरफ से हमले हो रहे थे। उन्होंने 15 दिन में इस्तीफा देने की घोषणा कर दी थी। रुपर्ट मर्डोक से ज्यादा बड़ा मीडिया नटवरलाल आज तक दुनिया में पैदा नहीं हुआ। मर्डोक ने अपने बड़े अधिकारी गैरी डेवी को एक सप्ताह में दो बार दिल्ली भेजा, खुद हांगकांग में आ कर बैठ गए। रतिकांत बसु और प्रणय रॉय दिन रात सौदा बचाने की कोशिश कर रहे थे।
आखिरकार जब पूरा खेल उजागर हुआ सीबीआई ने प्रणय रॉय, बसु और दूरदर्शन के पांच और बड़े अधिकारियों के खिलाफ भ्रष्टाचार का मामला दर्ज किया। सीबीआई के विशेष जज अजित भरिहोक की अदालत में जो चार्जशीट दी गई उसमें साफ कहा गया था कि प्रणय रॉय ने आपराधिक षडयंत्र किया है और दूरदर्शन के अधिकारियों ने इसमें मदद की है। खुद प्रणय रॉय ने एनडीटीवी की वार्षिक रपट में 2004 में जा कर इस मामले का वर्णन किया। कुछ लोग कहते हैं कि सुषमा स्वराज ने एनडीए सरकार के दौरान यह मामला दर्ज करवाया था। मगर बात इतनी आसान नहीं है। सुषमा स्वराज मर्डोक से निपटना चाहती थी और एनडीटीवी वगैरह उनके लिए इतने बडे़ नहीं हुए थे।
श्री प्रणय रॉय ने शायद 20 जनवरी 1998 का इंडियन एक्सप्रेस पढ़ा होगा। एक जमाने में राधिका रॉय इसी अखबार की समाचार संपादक हुआ करती थी। इसी अखबार में लिखा है कि सीबीआई ने आपराधिक साजिश का जो मामला एनडीटीवी के प्रबंध निदेशक प्रणय रॉय और सीईओ रतिकांत बसु के खिलाफ दर्ज किया है उसमें शिव शर्मा, हरीश अवस्थी, अशोक मनुसुखानी, एस कपूर और एस कृष्णा भी शामिल थे। हर छोटे छोटे मामले पर खबरें बनाने वाले और देश में बाघों को बचाने की मुहिम चलाने वाले एनडीटीवी की सीबीआई के एक मामले के प्रति खामोशी समझ में नहीं आई। सीबीआई के रिकॉर्ड में दर्ज है कि एनडीटीवी को विशेष तौर पर माइक्रोवेव और उपग्रह अपलिंकिंग सुविधाएं बिना उचित रिस्क के दी गई थी और मुंबई स्टूडियो में आने वाले दुनिया भर के फुटेज को वे इस्तेमाल भी कर सकते थे। विमला भल्ला नाम की एक अधिकारी मदद करती थी और प्रणय रॉय दिन रात और साप्ताहिक शो में भी इन दृश्यों का इस्तेमाल करके इनकी कीमत दूरदर्शन से ही वसूल करते थे।
असली खेल तो यह था कि प्रणय रॉय के शो की कीमत दूरदर्शन की कॉस्टिंग कमेटी ने पचास हजार रुपए प्रति एपिसोड तय की थी मगर एनडीटीवी ने 81 हजार रुपए प्रति एपिसोड का बिल दिया था और विमला भल्ला ने ओएसडी न्यूज के नाते इसे फौरन मंजूर कर लिया था। यह मामला काल के शून्य में चला गया। रही बात एनडीटीवी के शेयर घोटाले की तो प्रणय रॉय ने बहुत चतुर रास्ता खोजा। बहुत सारी कंपनियां विदेश में बनाई और भारत में सौ रुपए में भी नहीं बिक रहे शेयर को वहां पांच सौ रुपए के आसपास बेच कर नीदरलैंड और लंदन तक से लगभग एक हजार करोड़ रुपए वसूल लिए। आखिर दिल्ली के ग्रेटर कैलाश में बहुत सारे बंगले और अर्चना सिनेमा जैसे महंगे कॉम्पलेक्स ऐसे ही नहीं खरीद लिए जाते। संपत्ति हड़पने की अलग कहानी है।
प्रणय रॉय आपको याद होगा कि आपके चैनल ने गैर समाचार श्रेणी का जो पहला और आखिरी कार्यक्रम 'जी मंत्री जी' बनाया था और जो स्टार प्लस पर प्रसारित हुआ था, उसे मैंने ही लिखा था। हिंदी न जानने वाली एक ताड़का इसकी प्रोड्यूसर थी और उनके सौभाग्य से लंदन में बीबीसी में बैठे परवेज आलम हर पटकथा की जांच कर के अगर जरूरी होता था तो मुझे संशोधन की सलाह देते थे। जब आपकी इतनी खिंचाई कर ली तो थोड़ा बहुत अपनी तारीफ करने का हक भी बनता है। 'जी मंत्री जी' प्रसारित हुआ और काफी चर्चित हुआ। पेंग्विन ने इसकी पटकथा पर किताब भी छापी। लेकिन 'जी प्रधानमंत्री जी' मैंने नहीं लिखा था और उसे स्टार ने प्रसारण लायक भी नहीं समझा। इस कहानी से शिक्षा मिलती है कि सब कुछ हेराफेरी से नहीं हो जाता। थोड़ी बुद्वि, थोड़ी प्रतिभा और थोड़ी ईमानदारी चाहिए होती है।
मैं वाकई आपका प्रशंसक रहा हूं और मुझे यहां जो लिखा गया है वह लिखते हुए प्रसन्नता नहीं हो रही। लेकिन एक मुद्दा था जो उठाया गया था जिसे आपने वकीलों को मोटी फीस दे कर झूठा करार दिया था। सच को पूरे संदर्भों के साथ सच की तरह देखा जाए इसलिए यह लिखा गया है। अगर बुरा लगे तो माफ कर दीजिएगा और ध्यान रखिएगा कि यह मेरी आखिरी माफी है। अदालत जाना हो तो चलते हैं, वहां भी मिल लेंगे।
लेखक आलोक तोमर देश के जाने-माने पत्रकार हैं
Sabhaar : bhdas4media.com
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