भाई जहा आग होती है वही से धुँआ निकलता है फिर क्यों लगते है यशवंत सिंह पर दलाली के आरोप ? पूरा मीडिया सोचता है यशवंत सिंह चोर है | पैसा लेकर खबरों का गला काट देना मीडिया में आम बात है | हर मीडिया कर्मी बिकने तैयार खड़ा है बस खरीदने वाला चाहिए |
अभी भी कुछ लोग है रोटी पर नमक लगाकर खा रहे है और पत्रकारिता कर रहे है | मै हमेशा उनका शुक्रगुजार हु ऐसे ही लोगो ने मीडिया को जिदा रखा है | नहीं तो मीडिया दलाल - हरामखोरो ने मीडिया का सौदा कब का कर चुके होते | आप सभी लोगो को नया साल मुबारक हो | मै यशवंत सिंह की खबर को साभार लेकर लगा रहा हु आप भी पढ़े |
संपादक
सुशील गंगवार
फ़ोन -०९१६७६१८८६६
मीडिया दलाल डाट.कॉम ..
यशवंत न हुए गांव के भौजाई हो गए. जो आए, आंख मारे, छेड़े, और आगे बढ़ ले. पर ठीक भी है. दूसरे बेइमान छेड़े जाने के लिए मिलते कहां हैं. और हम हैं कि छेड़वा छेड़वा के मुग्ध हुए जा रहे हैं. पर इस प्रक्रिया ने सचमुच मुझे अंदर से बदल दिया है. खुद के खिलाफ छापने का तर्क जबसे ढूंढा है तबसे तगड़े से तगड़ा अपने खिलाफ पत्र छाप दे रहा हूं. और इस प्रक्रिया ने मेरे अंदर भयंकर बदलाव ला दिया है. सच में, मान अपमान से परे होने लगा हूं. बहुत हरामी आदमी भी मान-अपमान से परे हो जाता है और संत किस्म का आदमी भी मान-अपमान से उपर उठ जाता है.
मैं किस कोटि का हूं, यह आपके उपर छोड़ रहा हूं. मेरे विरोधी मुझे राकस उर्फ राक्छ्स उर्फ ड्रैगन मानें, मुझे चाहने प्यार करने वाले देवता, साधु, प्रिय मानें.... दोनों के मानने न मानने से भी मेरे पर अब कोई फरक नहीं पड़ने वाला. स्वभाव में यह स्वाभाविक अपग्रेडेशन भड़ास ने किया है. अगर दुनिया भर के लोगों की पोलपट्टी छापने का काम मैं करता हूं तो मुझे अपने खिलाफ आने वाली चिट्ठियों आरोपों को भी उसी सहजता से छापने का माद्दा होना चाहिए. तभी मैं भड़ास का संपादक कहलाने का अधिकारी हूं अन्यथा दुनिया में ढेर सारे संपादक हैं जो चोरी चोरी चोरकटई करके खुलेआम साधु बने घूम रहे हैं.
पर इधर न तो साधु बनने का शौक है और न राक्षस बनाए जाने से कोई दुख. स्थितप्रज्ञ हो जाना अब समझ पा रहा हूं. दुनिया अब जिधर जा रही है उसमें पाप-पुण्य, नैतिकता-अनैतिकता से ज्यादा बड़ा मुद्दा ट्रांसपैरेंसी होगा और ट्रांसपैरेंट होना सबसे बड़ा मेरिट बन जाएगा. इसकी झलक दिखाई भी पड़ रही है. जूलियन असांजे पर कितने तरह के आरोप लगाए गए, टीम अन्ना पर कितने तरह के आरोप लगाए गए, लेकिन जनता को पता है कि ये आरोप अगर सच हुए तो भी उससे असांजे या टीम अन्ना का महत्व कम नहीं हो जाता. लंबी बहस है, जारी रहेगी. और, मैं स्वागत करूंगा अपने खिलाफ लिखने वालों का. वे जरूर लिखें. सबसे पहले मैं छापूंगा.
मैं इतना ही कहूंगा कि मैं भी एक मनुष्य हूं. काम क्रोध लोभ मोह जैसे प्राचीन व मानवीय अवगुण मेरे अंदर भी हैं. इंद्रियजन्य वासनाएं मेरे अंदर भी हैं. और, सभी अवगुणों व वासनाओ को नाना प्रकार से जीता जानता सीखता आया हूं. गल्तियां करते और उससे बूझते समझते आगे बढ़ता रहा हूं. भिड़ते गिरते धूल पोंछते आगे चलता रहा हूं. और, वही गल्ती करता है जो काम करता है. वही गिरता है जो लड़ता है. द ग्रेट इंडियन मिडिल क्लास पूरी जिंदगी इस प्रयत्न में गुजार देता है कि उसके दामन पर दाग न लगे भले वह पर्दे के पीछे दाग पर दाग खुद लगाए जा रहा हो.... और, यह भी कि उसकी निगाह में आए लोगों में से किस किस के दामन कितने दागदार हैं, किसी के उजले हैं तो क्यों उजले हैं, इस पर विश्लेषण करते.
मुद्दे पर लौटते हैं. दो नए साथियों ने मेरे पर आरोप लगाए हैं. एक साथी ने मेल भेजकर गरियाया है तो दूसरे साथी ने फेसबुक पर कमेंट डालकर आरोप लगाया है. इन दोनों मित्रों के आरोपों को यहां प्रकाशित कर रहा हूं. सोच रहा हूं कि भड़ास4मीडिया पर ही एक 'यशवंत विरोधी कोना' क्यों न शुरू कर दूं ताकि मुझे गरियाने के लिए किसी को इधर उधर न भटकना पड़े. नीचे दोनों पत्र असंपादित प्रकाशित किए जा रहे हैं. आप सभी को नए साल की ढेरों शुभकामनाएं. -यशवंत, एडिटर, भड़ास4मीडिया (09999330099)
सेवा में यशवंत भाई, आपको खबर भेजी थी की आगरा में पंजाब केसरी दिल्ली के आगरा में तीन तीन ब्यूरो हैड हैं जिसे अपने छापा नहीं। मुझे ऐसा प्रतीत होता हैं की कही आप पंजाब केसरी दिल्ली के संपादक अश्वनी कुमार से दर तो नहीं गए क्या। या फिर अश्वनी कुमार आप को भड़ास 4 मीडिया को चलाने का पैसा देते हैं। अगर यह बात सही हैं तो फिर आप को भड़ास को बंद कर देना चाहिए। क्योंकि भड़ास 4 मीडिया पत्रकारों को न्याय दिलाने का मंच हैं नाकी उनकी आवाज को बंद करने का मंच। आप को पता होना चाहिए की आगरा में पंजाब केसरी के ब्यूरो हैड के रूप में श्री एसके शर्मा जो कि पतरकारिता की आड़ में अपना धनदा चलते हैं तो वही दूसरी और दिनेश भदोरीयआ हैं। इसके साथ साथ श्री निवास गुप्ता भी लटके पड़े हैं।
Abhishek Media
ये वही नम्बर 1 न्यूज़ पोर्टल है जिसने वीओआई की एक खबर को पैसे लेकर दबा दिया था। जब मैं जबलपुर में वीओआई का ब्यूरोचीफ़ था। यशवंत जी आपकी मोटी चमड़ी का जवाब नही !! मैंने आपको फ़ोन भी किया था लेकिन आप बच्चों की पढ़ायी की व्यस्तता बता कर मुझे ऐसे चुप करा दिये थे जैसे जिले का कलेक्टर !! आपने सिन्हा साहब और मालवीय साहब से पैसा बटोर लिया। हाँ हर वह पत्रकार चूतिया है जो आपको अपनी वेदना सुनाता है और आप उसकी वेदना को कैश कर लेते हैं. मेरी उसी खबर को एक दूसरी वेबसाइट ने प्रमुखता से छापा था । जब वी ओ आई को अमित सिन्हा ने टेक ओवर किया था। चाल चरित्र और चेहरा स्थूल रहना चाहिये यशवंत जी ! वक्त किसी का सगा नहीं लेकिन जो जिस बात की दलाली करता है उसे वक्त वहीं ला खड़ा करता है । तब उसे वो सारी बातें याद आती हैं। जो उसने दम्भ में किया था । जिस मकसद से आपने भड़ास शुरू किया था क्या वो शाश्वत रहा है? मैने उपर लिख दिया है भड़ास के भतीजे भूखे रहे और आपने पैसे लेकर ……॥ यशवंत जी हाँथ जोड़ कर माफ़ी मांगने से बच्चों की चित्कार नही सुनायी दे ऐसा हो सकता है क्या? मै नही मानता हूं कि आप सड़क से उठे आदमी हो अगर सड़क से उठे हो तो आदमी नही हो !! यशवंत जी ब्लॉग और साईट्स बहुत हैं लेकिन जिन्हें प्राथमिकता मिल गयी है उन्हें मानवी संवेदनाओ को छोड़ना भी नही चाहिये ।
ब्यूरोचीफ़, हरिभूमि अखबार
सतना (मध्य प्रदेश)
(अनिलराज तिवारी से फेसबुक पर हुई लंबी चैटबाजी के सिर्फ उस हिस्से को यहां एकसाथ प्रकाशित किया गया है जो अनिलराज की तरफ से मेरे लिए कहे गए. मैंने अपना पक्ष यहां नहीं दिया है. और अब देना जरूरी भी नहीं समझता. जिस वीओआई के बारे में कहा जाता है कि वह भड़ास के चलते ही एक्सपोज हुआ, और आखिरकार बंद हुआ, उसको लेकर क्या कहूं. वीओआई में कार्यरत सैकड़ों लोगों को सेलरी या बकाया या पीएफ या अन्य बकाया अभी तक नहीं दिया गया, तो उसमें से एक अचानक आकर कहे कि यशवंतजी, आपके कारण नहीं मिला तो मुझे इस पर क्या कहना चाहिए. जो लोग भड़ास को एक पैसे का भी सपोर्ट नहीं करते, वे अगर मुझे भूख, बच्चे, दूध आदि की दुहाई देकर गरियाते हैं तो मन करता है कि कहूं कि यार, अपने बच्चे और दूध-भूख की ही तरह थोड़ा भड़ास की भी भूख, सेहत आदि की चिंता कर लेते तो ज्यादा अच्छा रहता. लेकिन सेल्फ सेंटर्ड सोच के इस दौर में हर आदमी चाहता है कि उसके दुख कोई दूसरा आकर खुद ब खुद दूर कर दे और वह दूसरों के दुखों की परवाह करे या न करे, उसे कोई ना टोके. अनिलराज तिवारी जी का प्रकरण क्या था, और किस हालात में मेरे यहां नहीं छपा, एक बार देखना पड़ेगा, लेकिन बताना चाहूंगा कि सैकड़ों की संख्या में आने वाले मेल में से अगर दो तीन दर्जन ही रोज छप पाते हैं तो बाकियों को यह कहां से कहने का अधिकार मिल गया कि मैंने उनकी खबरों पर पैसा ले लिया? अगर न छापा जाना ही पैसे लेने का तर्क है तो चलो भइया मान लेता हूं कि मैं हर रोज कम से कम लाख दो लाख तो बना ही लेता हूं. पर मेरी माली हालत जानने वाले जानते हैं कि मेरे पास कितने पैसे हैं, कैसी जगह पर रहता हूं, किस तरह से गुजारा करता हूं. पर मैं सफाई किस किस को और क्यूं दूं. प्रणाम. -यशवंत
साभार - भड़ास ४ मीडिया .कॉम
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