टीम अन्ना के सदस्य व वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण पर हमला जरूर ओछी मानसिकता का प्रतीक है लेकिन इसका मतलब यह भी नहीं निकाला जाना चाहिए कि प्रशांत भूषण जो कह रहे हैं वह सही है। हमलावरों ने उन्हें सुप्रीम कोर्ट स्थित उनके चैम्बर में घुस करके मारा पीटा। अगले दिन पेशी के दौरान भी झड़प हुई। शरारती तत्वों ने कुर्सी से उठा करके उन्हें नीचे पटक दिया और लात घूंसों से पिटाई करने लगे। वहां मौजूद लोगों ने हमलावरों में एक इंदर वर्मा को पकड़ करके पुलिस के हवाले कर दिया। प्रशांत भूषण ने 25 सितम्बर को वाराणसी में एक सार्वजनिक मंच से कहा था कि जम्मू कश्मीर से सेना हटाई जानी चाहिए। साथ ही उन्होंने यह भी कहा था कि एक जनमत संग्रह होना चाहिए जिससे यह पता चल सके कि जम्मू कश्मीर के लोग क्या चाहते हैं। हमलावर इंदर वर्मा का कहना है कि प्रशांत भूषण का कश्मीर पर दिया गया बयान असहनीय है। जिस तरह से कश्मीर से सेना हटाने की बात उन्होंने कही है वह देशद्रोह के समान है। इसी घटनाक्रम से जुड़े फरार तेजेंद्र पाल बग्गा की दलील है कि अन्ना की टीम से जुड़े लोगों ने भ्रष्टाचारियों को तो फांसी पर लटकाये जाने की मांग की है लेकिन अफजल और कसाब के मुद्दे पर वे मौन हैं। यह हमलावर श्रीराम सेना से जुड़े हुए हैं। जिस समय यह घटना हुई वहां पर कुछ मीडियाकर्मी भी मौजूद थे जो प्रशांत भूषण का इंटरव्यू लेने के इरादे से वहां बैठे हुए थे।
गांधीवादी नेता अन्ना हजारे ने इसकी घोर निंदा की है। उनका कहना है कि किसी को कानून अपने हाथ में लेने का अधिकार नहीं है। उनका मानना है कि प्रशांत भूषण सहित उनकी टीम के सभी अहम सदस्यों को सुरक्षा दी जानी चाहिए। प्रशांत भूषण की मांग है कि श्रीराम सेना जैसे संगठनों पर रोक लगनी चाहिए। पूर्व आईपीएस अधिकारी और टीम अन्ना की प्रमुख सदस्य किरण बेदी का कहना है कि प्रशांत भूषण से मारपीट यह दर्शाता है कि हम असहिष्णुता के किस स्तर पर पहुंच गए हैं। वे नहीं जानते कि वे ऐसे आदमी से मारपीट कर रहे थे जो समाज के लिए काम करता है। सभी प्रमुख राजनीतिक दलों ने इस हमले की निंदा की है। गृह मंत्री पी. चिदम्बरम ने दिल्ली पुलिस से बाकी दोनों हमलावरों की जल्द गिरफ्तारी की मांग की है। कांग्रेस ने इस हमले को बर्बरतापूर्ण करार दिया है। पार्टी के प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने जो खुद भी एक वकील हैं ने कहा है कि इस घटना की जितनी भी निंदा की जाए वह कम है। भाजपा प्रवक्ता प्रकाश जावड़ेकर ने कहा है कि हम इस हमले के पीछे के सच को उजागर करेंगे। उन्होंने इस संबंध में कांग्रेस पर निशाना साधा। माकपा महासचिव प्रकाश करात ने भी समूचे घटनाक्रम की निंदा की है।
सामाजिक संगठनों का रवैया कश्मीर के सवाल पर आम आदमी के रुख से मेल नहीं खाता है। जम्मू व कश्मीर के सवाल पर कई पेचीदगियां पहले से बरकरार हैं। 1947 से यह भारत और पाकिस्तान के बीच संबंधों की फांस बना हुआ है। 1947 में देश की आजादी के वक्त जब तमाम रियासतों का भारतीय गणराज्य में विलय हो रहा था तब जम्मू व कश्मीर के लोगों में तीन भावनायें नजर आ रही थीं। जम्मू रियासत के राजा महाराजा हरी सिंह, जो पूर्व केंद्रीय मंत्री कर्ण सिंह के पिता थे, ने भारतीय गणराज्य में विलय को मंजूरी प्रदान की। कश्मीर घाटी में कुछ ऐसे लोग थे जो पाकिस्तान के साथ चले जाना चाहते थे। लेकिन एक बड़ा वर्ग उन लोगों का था जो शेख अब्दुल्ला के प्रभाव में थे। शेख अब्दुल्ला उन दिनों पंडित जवाहर लाल नेहरू के परम मित्रों में से एक थे लेकिन वे जम्मू व कश्मीर को विशेष दर्जा दिए जाने के हिमायती थे। नेहरूजी खुद चाहते थे कि कश्मीर भारत के साथ रहे। पाकिस्तान भी चाहता था कि कश्मीर उसके साथ आ जाए। शेख अब्दुल्ला की पहल और महाराजा हरी सिंह की रणनीति के बाद जम्मू व कश्मीर भारत का राज्य बन गया। हालांकि संविधान की धारा 377 के तहत इसे विशेष राज्य का दर्जा मिला।
पाकिस्तान के लिए यह बेहद क्षोभ एवं अपमान की स्थिति थी। उसने एक वर्ष बाद ही 1948 में कबायली आक्रमण की आड़ में अपने सैनिक भारतीय सीमाओं में घुसा दिए। इन सैनिकों का भारतीय सैनिकों के साथ-साथ जम्मू व कश्मीर की जनता ने भी मुकाबला किया। यहीं तीन घटनाएं एक साथ घटी थीं। संयुक्त राष्ट्र का अधिवेशन चल रहा था जिसमें भारतीय राजदूत बीके कृष्णा मेनन का धुंआधार भाषण चल रहा था जो तकरीबन नौ घंटों तक जारी रहा। इधर भारतीय सेनायें कश्मीर की सीमाओं पर आगे बढ़ती जा रही थीं। सरदार पटेल, जो उन दिनों गृह मंत्री थे, का अघोषित निर्देश था कि समूचे कश्मीर पर कब्जा कर लिया जाए। न जाने तभी पंडित जवाहर लाल नेहरू को क्या सूझी कि उन्होंने युद्ध विराम का निर्देश दे दिया। अगर यह निर्देश कुछ घंटों बाद आया होता तो शायद भारतीय सेना के कब्जे में पूरा कश्मीर आ गया होता। बहरहाल दो तिहाई कश्मीर आज भी भारत के कब्जे में है और एक तिहाई कश्मीर जो पाक अधिकृत कश्मीर के नाम से जाना जाता है पाकिस्तान के नियंत्रण में है। यही संबंधों का असल पेंच है। यह मुद्दा न तो शिमला समझौते के दौरान सुलझ सका न ही उसके बाद की वार्ताओं के दौरान। इसी वजह से नेहरूजी व सरदार पटेल के रिश्तों में दरार पड़ी व जम्मू कश्मीर का सवाल आज भी उलझा पड़ा है।
जम्मू व कश्मीर में आज नेशनल कांफ्रेंस और कांग्रेस की सरकार है। पीडीपी प्रमुख विपक्षी दल है जिसकी प्रमुख नेता महबूबा मुफ्ती हैं। जम्मू व कश्मीर के मुख्यमंत्री शेख अब्दुल्ला के पोते और फारूख अब्दुल्ला के बेटे उमर अब्दुल्ला हैं। वहां अलगाववादी गुटों की सालों से समानांतर सत्ता है। इन गुटों पर अमरीका सहित कई पश्चिमी देशों एवं पाकिस्तान का विशेष प्रभाव है। पाकिस्तान सीमापार आतंकवाद को बढ़ावा देकर अमन व चैन बिगाड़ रहा है। भाजपा और इससे पहले जनसंघ की मांग थी कि जम्मू व कश्मीर में धारा 377 हटायी जानी चाहिए तथा देश भर में समान नागरिक संहिता लागू की जानी चाहिए। नेशनल कांफ्रेंस व पीडीपी में सत्ता के लिए म्युजिकल चेयर रेस चल रही है। अलगाववादी गुटों से बातचीत के लिए केंद्र सरकार तैयार है लेकिन इन गुटों का अभी तक कोई पाजीटिव रुख नहीं दिखाई दे रहा है। केंद्र सरकार ने दिलीप पडग़ांवकर की अध्यक्षता में वार्ता के लिए जो कमेटी बना रखी थी उसे भी कोई खास कामयाबी न मिल सकी। जम्मू व कश्मीर में सामान्य स्थिति की बहाली तथा कानून व व्यवस्था बनाये रखने के लिए केंद्र प्राय वहां सेना की तैनाती करता है। सेना के जवानों पर अक्सर कुछ लोग ज्यादती का आरोप लगाते हैं। यहीं से दो विचारधारायें जन्म लेती हैं। मानवाधिकार संगठनों तथा सिविल सोसाइटी के लोग सेना हटाये जाने, जनमत संग्रह कराये जाने की दलील देते हैं। जबकि राष्ट्रवादी विचारधारा के मानने वाले लोगों का मत है कि जम्मू व कश्मीर देश का अभिन्न अंग है। कुछ लोग तो इस ख्याल के भी हैं कि हमें पाकिस्तान पर हमला करके पाक अधिकृत कश्मीर के इलाकों पर कब्जा कर लेना चाहिए। प्रशांत भूषण ने जब वहां जनमत संग्रह कराने की बात कही तो वह कुछ लोगों को हजम नहीं हुई। इन लोगों ने मारपीट का रास्ता अपनाया।
सामाजिक संगठनों का रवैया कश्मीर के सवाल पर आम आदमी के रुख से मेल नहीं खाता है। जम्मू व कश्मीर के सवाल पर कई पेचीदगियां पहले से बरकरार हैं। 1947 से यह भारत और पाकिस्तान के बीच संबंधों की फांस बना हुआ है। 1947 में देश की आजादी के वक्त जब तमाम रियासतों का भारतीय गणराज्य में विलय हो रहा था तब जम्मू व कश्मीर के लोगों में तीन भावनायें नजर आ रही थीं। जम्मू रियासत के राजा महाराजा हरी सिंह, जो पूर्व केंद्रीय मंत्री कर्ण सिंह के पिता थे, ने भारतीय गणराज्य में विलय को मंजूरी प्रदान की। कश्मीर घाटी में कुछ ऐसे लोग थे जो पाकिस्तान के साथ चले जाना चाहते थे। लेकिन एक बड़ा वर्ग उन लोगों का था जो शेख अब्दुल्ला के प्रभाव में थे। शेख अब्दुल्ला उन दिनों पंडित जवाहर लाल नेहरू के परम मित्रों में से एक थे लेकिन वे जम्मू व कश्मीर को विशेष दर्जा दिए जाने के हिमायती थे। नेहरूजी खुद चाहते थे कि कश्मीर भारत के साथ रहे। पाकिस्तान भी चाहता था कि कश्मीर उसके साथ आ जाए। शेख अब्दुल्ला की पहल और महाराजा हरी सिंह की रणनीति के बाद जम्मू व कश्मीर भारत का राज्य बन गया। हालांकि संविधान की धारा 377 के तहत इसे विशेष राज्य का दर्जा मिला।
पाकिस्तान के लिए यह बेहद क्षोभ एवं अपमान की स्थिति थी। उसने एक वर्ष बाद ही 1948 में कबायली आक्रमण की आड़ में अपने सैनिक भारतीय सीमाओं में घुसा दिए। इन सैनिकों का भारतीय सैनिकों के साथ-साथ जम्मू व कश्मीर की जनता ने भी मुकाबला किया। यहीं तीन घटनाएं एक साथ घटी थीं। संयुक्त राष्ट्र का अधिवेशन चल रहा था जिसमें भारतीय राजदूत बीके कृष्णा मेनन का धुंआधार भाषण चल रहा था जो तकरीबन नौ घंटों तक जारी रहा। इधर भारतीय सेनायें कश्मीर की सीमाओं पर आगे बढ़ती जा रही थीं। सरदार पटेल, जो उन दिनों गृह मंत्री थे, का अघोषित निर्देश था कि समूचे कश्मीर पर कब्जा कर लिया जाए। न जाने तभी पंडित जवाहर लाल नेहरू को क्या सूझी कि उन्होंने युद्ध विराम का निर्देश दे दिया। अगर यह निर्देश कुछ घंटों बाद आया होता तो शायद भारतीय सेना के कब्जे में पूरा कश्मीर आ गया होता। बहरहाल दो तिहाई कश्मीर आज भी भारत के कब्जे में है और एक तिहाई कश्मीर जो पाक अधिकृत कश्मीर के नाम से जाना जाता है पाकिस्तान के नियंत्रण में है। यही संबंधों का असल पेंच है। यह मुद्दा न तो शिमला समझौते के दौरान सुलझ सका न ही उसके बाद की वार्ताओं के दौरान। इसी वजह से नेहरूजी व सरदार पटेल के रिश्तों में दरार पड़ी व जम्मू कश्मीर का सवाल आज भी उलझा पड़ा है।
जम्मू व कश्मीर में आज नेशनल कांफ्रेंस और कांग्रेस की सरकार है। पीडीपी प्रमुख विपक्षी दल है जिसकी प्रमुख नेता महबूबा मुफ्ती हैं। जम्मू व कश्मीर के मुख्यमंत्री शेख अब्दुल्ला के पोते और फारूख अब्दुल्ला के बेटे उमर अब्दुल्ला हैं। वहां अलगाववादी गुटों की सालों से समानांतर सत्ता है। इन गुटों पर अमरीका सहित कई पश्चिमी देशों एवं पाकिस्तान का विशेष प्रभाव है। पाकिस्तान सीमापार आतंकवाद को बढ़ावा देकर अमन व चैन बिगाड़ रहा है। भाजपा और इससे पहले जनसंघ की मांग थी कि जम्मू व कश्मीर में धारा 377 हटायी जानी चाहिए तथा देश भर में समान नागरिक संहिता लागू की जानी चाहिए। नेशनल कांफ्रेंस व पीडीपी में सत्ता के लिए म्युजिकल चेयर रेस चल रही है। अलगाववादी गुटों से बातचीत के लिए केंद्र सरकार तैयार है लेकिन इन गुटों का अभी तक कोई पाजीटिव रुख नहीं दिखाई दे रहा है। केंद्र सरकार ने दिलीप पडग़ांवकर की अध्यक्षता में वार्ता के लिए जो कमेटी बना रखी थी उसे भी कोई खास कामयाबी न मिल सकी। जम्मू व कश्मीर में सामान्य स्थिति की बहाली तथा कानून व व्यवस्था बनाये रखने के लिए केंद्र प्राय वहां सेना की तैनाती करता है। सेना के जवानों पर अक्सर कुछ लोग ज्यादती का आरोप लगाते हैं। यहीं से दो विचारधारायें जन्म लेती हैं। मानवाधिकार संगठनों तथा सिविल सोसाइटी के लोग सेना हटाये जाने, जनमत संग्रह कराये जाने की दलील देते हैं। जबकि राष्ट्रवादी विचारधारा के मानने वाले लोगों का मत है कि जम्मू व कश्मीर देश का अभिन्न अंग है। कुछ लोग तो इस ख्याल के भी हैं कि हमें पाकिस्तान पर हमला करके पाक अधिकृत कश्मीर के इलाकों पर कब्जा कर लेना चाहिए। प्रशांत भूषण ने जब वहां जनमत संग्रह कराने की बात कही तो वह कुछ लोगों को हजम नहीं हुई। इन लोगों ने मारपीट का रास्ता अपनाया।
चेलों ने बढ़ाई मुसीबत
प्रशांत भूषण के बड़बोलेपन ने टीम अन्ना के लिए नई मुसीबत खड़ी कर दी है। जिस तरह से प्रशांत भूषण ने कश्मीर के सवाल पर जनमत संग्रह कराने की बात की है उससे किरण बेदी, संतोष हेगड़े और खुद अन्ना हजारे काफी हद तक नाराज हैं। अन्ना हजारे ने खुलकर कह दिया है यह प्रशांत भूषण की निजी राय है। उनका प्रशांत भूषण प्रति स्नेह बना हुआ है। वे अभी भी उन्हें अपनी टीम का अहम हिस्सा मानते है। हालांकि अन्ना हजारे ने खुलकर कहा है कि कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है।उन्होंने अपने राजनीतिक शिष्यों को इस बात की सख्त चेतावनी दी है कि वे विवादास्पद मुद्दों अपनी राय इस तरह से न जाहिर करें। व्यथित अन्ना ने इस मुद्दे को लेकर बेमियादी मौन व्रत भी रखने की घोषणा की है।
प्रशांत भूषण के बड़बोलेपन ने टीम अन्ना के लिए नई मुसीबत खड़ी कर दी है। जिस तरह से प्रशांत भूषण ने कश्मीर के सवाल पर जनमत संग्रह कराने की बात की है उससे किरण बेदी, संतोष हेगड़े और खुद अन्ना हजारे काफी हद तक नाराज हैं। अन्ना हजारे ने खुलकर कह दिया है यह प्रशांत भूषण की निजी राय है। उनका प्रशांत भूषण प्रति स्नेह बना हुआ है। वे अभी भी उन्हें अपनी टीम का अहम हिस्सा मानते है। हालांकि अन्ना हजारे ने खुलकर कहा है कि कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है।उन्होंने अपने राजनीतिक शिष्यों को इस बात की सख्त चेतावनी दी है कि वे विवादास्पद मुद्दों अपनी राय इस तरह से न जाहिर करें। व्यथित अन्ना ने इस मुद्दे को लेकर बेमियादी मौन व्रत भी रखने की घोषणा की है।
टीम अन्ना का यूपी दौरा
काफी दिनों से इस बात की अटकलें लगायी जा रही थी कि क्या अन्ना हजारे और उनके साथी भ्रष्टाचार तथा जनलोकपाल बिल को लेकर उत्तर प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले कोई मुहिम शुरू करेंगे। तमाम राजनीतिक दल इसी आशंका में परेशान थे। अब टीम अन्ना के साथियों ने यह पहल कर दी है कि वे लखनऊ, कानपुर, इलाहाबाद, बनारस, गोरखपुर सहित बुंदेलखंड के तमाम इलाकों में जनसभाएं करेंगे और भ्रष्टाचार तथा जनलोकपाल बिल को लेकर मतदाताओं के बीच जागरूकता पैदा करने की कोशिश करेंगे। हिसार लोकसभा चुनाव के बाद उत्तर प्रदेश में टीम अन्ना की यह अहम राजनीतिक गतिविधि थी। हालांकि टीम के साथियों ने इस बात का ऐलान कर दिया है कि खुद अन्ना हजारे इस अभियान में शामिल नहीं होंगे। प्रदेश की राजधानी लखनऊ में इंडिया अगेंस्ट करप्शन के कार्यकर्ता पहले से ही अन्ना के समर्थन की मुहिम चला रहे हैं।
काफी दिनों से इस बात की अटकलें लगायी जा रही थी कि क्या अन्ना हजारे और उनके साथी भ्रष्टाचार तथा जनलोकपाल बिल को लेकर उत्तर प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले कोई मुहिम शुरू करेंगे। तमाम राजनीतिक दल इसी आशंका में परेशान थे। अब टीम अन्ना के साथियों ने यह पहल कर दी है कि वे लखनऊ, कानपुर, इलाहाबाद, बनारस, गोरखपुर सहित बुंदेलखंड के तमाम इलाकों में जनसभाएं करेंगे और भ्रष्टाचार तथा जनलोकपाल बिल को लेकर मतदाताओं के बीच जागरूकता पैदा करने की कोशिश करेंगे। हिसार लोकसभा चुनाव के बाद उत्तर प्रदेश में टीम अन्ना की यह अहम राजनीतिक गतिविधि थी। हालांकि टीम के साथियों ने इस बात का ऐलान कर दिया है कि खुद अन्ना हजारे इस अभियान में शामिल नहीं होंगे। प्रदेश की राजधानी लखनऊ में इंडिया अगेंस्ट करप्शन के कार्यकर्ता पहले से ही अन्ना के समर्थन की मुहिम चला रहे हैं।
देखना यह होगा कि इस आंदोलन के प्रति मायावती सरकार का क्या रवैया रहेगा। यह भी देखना दिलचस्प रहेगा कि क्या टीम अन्ना सिर्फ कांग्रेस को ही निशाना बनायेगी या फिर भाजपा और सपा को भी भ्रष्टाचार के लिए दोषी ठहरायेगी। टीम अन्ना ने पहले ही तय कर दिया है कि वह जनलोकपाल के बाबत मायावती सरकार को दोषी नहीं मानती लिहाजा वह बसपा के खिलाफ कोई मुहिम नहीं चलाने जा रही है। इसी बात से राहत महसूस करते हुए बसपा सरकार ने एक तरह से अन्ना के समर्थकों के आंदोलन को क्लीन चिट दे रखी है। यह भी देखना गौरतलब होगा कि संघ परिवार, मानवाधिकार संगठनों तथा अन्य सामाजिक संगठनों का इस आंदोलन के प्रति क्या रवैया रहता है।
जताया विरोध
टीम अन्ना के एक अहम सदस्य संतोष हेगड़े ने अन्ना टीम की कारगुजारियों के प्रति असंतोष जताया है। वे खुलकर कहते हैं कि हिसार लोक सभा उपचुनाव के बाबत अरविंद केजरीवाल और अन्य लोगों ने जिस तरह कांग्रेस के विरोध में प्रचार किया उससे अन्ना हजारे के आंदोलन की धार कुंद हुई है। वे कहते हैं कि अगर सरकार को शीतकालीन सत्र में जनलोकपाल विधेयक पेश करना है और तभी इसे पारित करना है तो समय से पहले कैसे उस पर वादा खिलाफी का आरोप लगाया जा सकता है।कांग्रेस ही नहीं अन्य पार्टियां भी भ्रष्टाचार के लिए सामान रूप से दोषी हैं। हेगड़े अपने साथियों की हिसार लोकसभा चुनाव के दौरान जारी गतिविधियों को अत्याधिक राजनीतिक करार देते हैं। प्रशांत भूषण के कश्मीर संबंधी बयान से भी उन्हें सख्त एतराज है।
टीम अन्ना के एक अहम सदस्य संतोष हेगड़े ने अन्ना टीम की कारगुजारियों के प्रति असंतोष जताया है। वे खुलकर कहते हैं कि हिसार लोक सभा उपचुनाव के बाबत अरविंद केजरीवाल और अन्य लोगों ने जिस तरह कांग्रेस के विरोध में प्रचार किया उससे अन्ना हजारे के आंदोलन की धार कुंद हुई है। वे कहते हैं कि अगर सरकार को शीतकालीन सत्र में जनलोकपाल विधेयक पेश करना है और तभी इसे पारित करना है तो समय से पहले कैसे उस पर वादा खिलाफी का आरोप लगाया जा सकता है।कांग्रेस ही नहीं अन्य पार्टियां भी भ्रष्टाचार के लिए सामान रूप से दोषी हैं। हेगड़े अपने साथियों की हिसार लोकसभा चुनाव के दौरान जारी गतिविधियों को अत्याधिक राजनीतिक करार देते हैं। प्रशांत भूषण के कश्मीर संबंधी बयान से भी उन्हें सख्त एतराज है।
Sabhar: http://weekandtimes.com/?p=3674
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