अब तो शर्म करें आला अफसर!
मुंशी प्रेमचंद की कहानी आप लोगों में से कई लोगों ने पढ़ी होगी। उनकी कई कहानियों में इस बात का विस्तार से उल्लेख होता था कि किस तरह गांव का जमींदार गरीब लोगों के हकों को मारकर उनका जीवन नरकमय कर देता था। यह कहानियां आज भी जीवित है। फर्क सिर्फ पात्रों में हैं। अब गरीब इस देश की जनता है। जमीदार के रूप में इस देश के नौकरशाह हैं। उन्हें न गरीब से मतलब है और न ही गरीबी से। सिर्फ और सिर्फ दौलत कमाना उनकी जिंदगी का आखिरी मकसद है और इसके लिए वह सब कुछ ताक पर रख सकते हैं। अपनी मर्यादा और अपना स्वाभिमान भी। यह बात पिछले दिनों गरीबों के उत्थान के लिए चलायी जा रही महत्वाकांक्षी योजना महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना में केंद्र और प्रदेश सरकार के बीच हुई तकरार के बाद और पुष्ट हो गयी।
केंद्र सरकार ने बड़े जोर शोर से कुछ साल पहले ही घोषणा की थी कि गरीबों के जीवन यापन के लिए ऐसी व्यवस्था की जाएगी कि उन्हें अपना और अपने परिवार का पेट पालने के लिए दर-दर न भटकना पड़े। इसके लिए उन्हें गांव में ही रोजगार देने की व्यवस्था की गयी। शुरू में इस योजना का नाम नरेगा रखा गया और बाद में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के सपनों को यर्थाथ में बदलने के लिए उनका नाम जोड़कर इस योजना का नाम मनरेगा कर दिया गया। पिछले दिनों भारत सरकार ने बड़े जोर शोर के साथ घोषणा की कि अब गरीबों को अपनी जिंदगी बसर करने के लिए शहरों की ओर नहीं दौडऩा पड़ेगा। ऐसा नहीं है कि भारत सरकार इस देश के नौकरशाहों को जानती नहीं थी। हकीकत यह थी कि यह ऐसे सपने थे जो गरीबों को दिखाये जरूर जाते हैं मगर पूरे कभी नहीं किये जाते।
इस मामले में ताजा विवाद तब उठ खड़ा हुआ जब केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश ने यूपी सहित कुछ राज्यों को कटघरे में खड़ा करते हुए कहा कि इन राज्यों में मनरेगा योजना का स्वरूप ही बदल गया है और योजना में व्यापक पैमाने पर भ्रष्टाचार किया गया है। उन्होंने कहा कि अच्छा हो कि इस मामले की सीबीआई जांच करवा ली जाये। जयराम रमेश का पत्र आते ही यूपी सरकार आग बबूला हो गयी। आनन-फानन में कैबिनेट सचिव शशांक शेखर सिंह ने प्रेस कॉन्फे्रंस करके इस पत्र को राजनीति से प्रेरित बताते हुये यूपी सरकार द्वारा मनरेगा में किये गये कार्यों को सर्वश्रेठ बताया। यह बात बेहद शर्मनाक थी। मनरेगा में हुई लूट प्रदेश में किसी से छुपी नहीं है। इस योजना में जिस तरह से भ्रष्टाचार के नये आयाम स्थापित किये गये उसने इस योजना का पूरा स्वरूप ही बदल दिया। मगर सरकार के काबिल नौकरशाह इस बात को साबित करने में जुटे रहे कि सरकार इस योजना में बहुत बेहतर काम कर रही है। उन्होंने पत्रकारों को कुछ आंकड़े भी दिये जिसमें बताया गया कि सरकार ने जहां भी भ्रष्टाचार की शिकायत मिली वहां तत्काल कार्रवाई की। साथ में कार्रवाई की जद में आये कुछ अफसरों की संख्या भी बतायी गयी। जैसा कि अनुमान था वैसा ही हुआ इन अफसरों में कोई भी आईएएस या पीसीएस अफसर शामिल नहीं था जिसे इस भ्रष्टाचार करने के कारण नौकरी से बरखास्त करके जेल की हवा खिला दी गयी हो।
अब जरा इस भ्रष्टाचार की एक बानगी देखिये। इस योजना में उल्लेख है कि अगर काम करने महिलाएं आएंगी तो उनके बच्चों के लिए कार्य स्थल के पास टेंट लगाये जाएंगे तथा बच्चों के लिए खिलौने दिये जाएंगे। मजे की बात यह रही कि गोण्डा जैसे जिले में काम करने के लिए महिलाएं तो नहीं आयीं मगर उनके बच्चों के नाम पर करोड़ों रुपये के टेंट और खिलौने खरीद लिये गये एक अन्य जनपद में इसी योजना में लाखों रुपये के कलेंडर और डायरियां बनवा दी गयी और वह भी दोगुनी कीमत पर। जब बहुत हंगामा हुआ तो वहां के डीएम सचिदानंद दुबे को और बड़े जिले का डीएम बना दिया गया। मतलब साफ कि अगर आईएएस बेईमानी करें तो उसके लिये सात खून माफ। यह बात सभी जानते हैं कि जिलों में किसी खण्ड विकास अधिकारी, जिला विकास अधिकारी तथा परियोजना निदेशक की इतनी हिम्मत नहीं है कि वह मुख्य विकास अधिकारी अथवा जिला विकास अधिकारी के सहमति के बिना कोई काम करवा सके। मुख्य विकास अधिकारी के पद पर आमतौर पर पीसीएस अफसर तैनात होता है जबकि जिलाधिकारी के पद पर सिर्फ और सिर्फ आईएएस अफसर तैनात होता है। कुछ दिनों पहले जब जिलाधिकारी के पद पर पीसीएस अफसरों की तैनाती की बात आयी तो आईएएस अफसरों ने हंगामा मचा दिया और यह निर्णय बदलना पड़ा क्योंकि आईएएस अफसरों की बड़ी जमात सिर्फ यह चाहती थी कि बड़ी बेईमानी पर केवल बड़े आईएएस अफसरों का ही बोलबाला बना रहे। यह सिर्फ एक योजना की बानगी नहीं है। प्रदेश में चल रही तमाम योजनाओं में लूट का यही आलम मचा हुआ है। भ्रष्टाचार के इस दलदल में फंसे कई मंत्रियों की तो लोकायुक्त ने छुट्टी करवा दी मगर किसी भी बड़े आईएएस अफसर का बाल बांका भी नहीं हो सका। केंद्र सरकार में महत्वपूर्ण पद पर तैनात रहे आईएएस अफसर सदाकांत जब भ्रष्टाचार में सीधे तौर पर लिप्त पाये गये और भ्रष्टाचार भी छोटा-मोटा नहीं बल्कि देश की सुरक्षा से जुड़ा हुआ तब केंद्र सरकार ने उन्हें वापस उनके मूल कैडर यूपी में भेज दिया। होना तो यह चाहिये था कि इतने भ्रष्टाचारी अफसर को सदस्य राजस्व परिषद जैसे पद पर तैनात किया जाना चाहिये था मगर उन्हें समाज कल्याण की जिम्मेदारी संभालने को कहा गया जहां अरबो रुपये का बजट आता है और करोड़ों रुपये का गोलमाल होता है। सदस्य राजस्व परिषद के रूप में वह अफसर तैनात किये गये जिनकी छवि आम तौर पर ईमानदार अफसर के रूप में मानी जाती है। संदेश साफ है कि महत्पवूर्ण पदों पर वही तैनात होगा जो भ्रष्टाचार के इस खेल को सफाई के साथ खेल सकता होगा।
यह देश की ऐसी घिनौनी तस्वीर है जिस पर सिर्फ रोया जा सकता है। आईएएस अफसर किसी भी व्यवस्था को चलाने के लिये रीढ़ की हड्डी माने जाते हैं। जब शरीर में रीढ़ की हड्डी ही काम न कर रही हो तो पूरे शरीर को लकवा मार जाता है। जब इस देश के आईएएस अफसर अपने स्वाभिमान को ताक पर रख कर बेईमानी का ऐसा घिनौना खेल खेलने में जुट जाएं तो इस देश को लकवा ही मारेगा। यूपी की मनरेगा योजना की अगर ईमानदारी से जांच हो जाये तो आधे से अधिक जिलों के डीएम और सीडीओ जेल के भीतर दिखायी पड़ेंगे।
हम सब बड़े आराम से राजनेताओं को कोसते रहते हैं और मानते हैं कि इस देश में भ्रष्टाचार करने में वही सबसे आगे हैं मगर हकीकत यह है कि हमारे नौकरशाह भी इसमें पीछे नहीं हैं बल्कि कड़वी सच्चाई तो यह है कि अगर नौकरशाह ईमानदार हो जाये तो राजनेता चाहकर भी बेईमानी नहीं कर सकते मगर चोर-चोर मौसेरे भाई की तर्ज पर नौकरशाह और राजनेता मिलकर गरीबों की लाशों पर अपना महल खड़ा करने में लगे हैं मगर यह लोग यह भूल गये कि असली हकीकत सिर्फ गरीब की वह मिट्टी ही है जिससे वह अपने और अपने परिवार के पेट के लिये अन्न उगाता है और इन सबको एक दिन उसी मिट्टी में मिलना है।
केंद्र सरकार ने बड़े जोर शोर से कुछ साल पहले ही घोषणा की थी कि गरीबों के जीवन यापन के लिए ऐसी व्यवस्था की जाएगी कि उन्हें अपना और अपने परिवार का पेट पालने के लिए दर-दर न भटकना पड़े। इसके लिए उन्हें गांव में ही रोजगार देने की व्यवस्था की गयी। शुरू में इस योजना का नाम नरेगा रखा गया और बाद में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के सपनों को यर्थाथ में बदलने के लिए उनका नाम जोड़कर इस योजना का नाम मनरेगा कर दिया गया। पिछले दिनों भारत सरकार ने बड़े जोर शोर के साथ घोषणा की कि अब गरीबों को अपनी जिंदगी बसर करने के लिए शहरों की ओर नहीं दौडऩा पड़ेगा। ऐसा नहीं है कि भारत सरकार इस देश के नौकरशाहों को जानती नहीं थी। हकीकत यह थी कि यह ऐसे सपने थे जो गरीबों को दिखाये जरूर जाते हैं मगर पूरे कभी नहीं किये जाते।
इस मामले में ताजा विवाद तब उठ खड़ा हुआ जब केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश ने यूपी सहित कुछ राज्यों को कटघरे में खड़ा करते हुए कहा कि इन राज्यों में मनरेगा योजना का स्वरूप ही बदल गया है और योजना में व्यापक पैमाने पर भ्रष्टाचार किया गया है। उन्होंने कहा कि अच्छा हो कि इस मामले की सीबीआई जांच करवा ली जाये। जयराम रमेश का पत्र आते ही यूपी सरकार आग बबूला हो गयी। आनन-फानन में कैबिनेट सचिव शशांक शेखर सिंह ने प्रेस कॉन्फे्रंस करके इस पत्र को राजनीति से प्रेरित बताते हुये यूपी सरकार द्वारा मनरेगा में किये गये कार्यों को सर्वश्रेठ बताया। यह बात बेहद शर्मनाक थी। मनरेगा में हुई लूट प्रदेश में किसी से छुपी नहीं है। इस योजना में जिस तरह से भ्रष्टाचार के नये आयाम स्थापित किये गये उसने इस योजना का पूरा स्वरूप ही बदल दिया। मगर सरकार के काबिल नौकरशाह इस बात को साबित करने में जुटे रहे कि सरकार इस योजना में बहुत बेहतर काम कर रही है। उन्होंने पत्रकारों को कुछ आंकड़े भी दिये जिसमें बताया गया कि सरकार ने जहां भी भ्रष्टाचार की शिकायत मिली वहां तत्काल कार्रवाई की। साथ में कार्रवाई की जद में आये कुछ अफसरों की संख्या भी बतायी गयी। जैसा कि अनुमान था वैसा ही हुआ इन अफसरों में कोई भी आईएएस या पीसीएस अफसर शामिल नहीं था जिसे इस भ्रष्टाचार करने के कारण नौकरी से बरखास्त करके जेल की हवा खिला दी गयी हो।
अब जरा इस भ्रष्टाचार की एक बानगी देखिये। इस योजना में उल्लेख है कि अगर काम करने महिलाएं आएंगी तो उनके बच्चों के लिए कार्य स्थल के पास टेंट लगाये जाएंगे तथा बच्चों के लिए खिलौने दिये जाएंगे। मजे की बात यह रही कि गोण्डा जैसे जिले में काम करने के लिए महिलाएं तो नहीं आयीं मगर उनके बच्चों के नाम पर करोड़ों रुपये के टेंट और खिलौने खरीद लिये गये एक अन्य जनपद में इसी योजना में लाखों रुपये के कलेंडर और डायरियां बनवा दी गयी और वह भी दोगुनी कीमत पर। जब बहुत हंगामा हुआ तो वहां के डीएम सचिदानंद दुबे को और बड़े जिले का डीएम बना दिया गया। मतलब साफ कि अगर आईएएस बेईमानी करें तो उसके लिये सात खून माफ। यह बात सभी जानते हैं कि जिलों में किसी खण्ड विकास अधिकारी, जिला विकास अधिकारी तथा परियोजना निदेशक की इतनी हिम्मत नहीं है कि वह मुख्य विकास अधिकारी अथवा जिला विकास अधिकारी के सहमति के बिना कोई काम करवा सके। मुख्य विकास अधिकारी के पद पर आमतौर पर पीसीएस अफसर तैनात होता है जबकि जिलाधिकारी के पद पर सिर्फ और सिर्फ आईएएस अफसर तैनात होता है। कुछ दिनों पहले जब जिलाधिकारी के पद पर पीसीएस अफसरों की तैनाती की बात आयी तो आईएएस अफसरों ने हंगामा मचा दिया और यह निर्णय बदलना पड़ा क्योंकि आईएएस अफसरों की बड़ी जमात सिर्फ यह चाहती थी कि बड़ी बेईमानी पर केवल बड़े आईएएस अफसरों का ही बोलबाला बना रहे। यह सिर्फ एक योजना की बानगी नहीं है। प्रदेश में चल रही तमाम योजनाओं में लूट का यही आलम मचा हुआ है। भ्रष्टाचार के इस दलदल में फंसे कई मंत्रियों की तो लोकायुक्त ने छुट्टी करवा दी मगर किसी भी बड़े आईएएस अफसर का बाल बांका भी नहीं हो सका। केंद्र सरकार में महत्वपूर्ण पद पर तैनात रहे आईएएस अफसर सदाकांत जब भ्रष्टाचार में सीधे तौर पर लिप्त पाये गये और भ्रष्टाचार भी छोटा-मोटा नहीं बल्कि देश की सुरक्षा से जुड़ा हुआ तब केंद्र सरकार ने उन्हें वापस उनके मूल कैडर यूपी में भेज दिया। होना तो यह चाहिये था कि इतने भ्रष्टाचारी अफसर को सदस्य राजस्व परिषद जैसे पद पर तैनात किया जाना चाहिये था मगर उन्हें समाज कल्याण की जिम्मेदारी संभालने को कहा गया जहां अरबो रुपये का बजट आता है और करोड़ों रुपये का गोलमाल होता है। सदस्य राजस्व परिषद के रूप में वह अफसर तैनात किये गये जिनकी छवि आम तौर पर ईमानदार अफसर के रूप में मानी जाती है। संदेश साफ है कि महत्पवूर्ण पदों पर वही तैनात होगा जो भ्रष्टाचार के इस खेल को सफाई के साथ खेल सकता होगा।
यह देश की ऐसी घिनौनी तस्वीर है जिस पर सिर्फ रोया जा सकता है। आईएएस अफसर किसी भी व्यवस्था को चलाने के लिये रीढ़ की हड्डी माने जाते हैं। जब शरीर में रीढ़ की हड्डी ही काम न कर रही हो तो पूरे शरीर को लकवा मार जाता है। जब इस देश के आईएएस अफसर अपने स्वाभिमान को ताक पर रख कर बेईमानी का ऐसा घिनौना खेल खेलने में जुट जाएं तो इस देश को लकवा ही मारेगा। यूपी की मनरेगा योजना की अगर ईमानदारी से जांच हो जाये तो आधे से अधिक जिलों के डीएम और सीडीओ जेल के भीतर दिखायी पड़ेंगे।
हम सब बड़े आराम से राजनेताओं को कोसते रहते हैं और मानते हैं कि इस देश में भ्रष्टाचार करने में वही सबसे आगे हैं मगर हकीकत यह है कि हमारे नौकरशाह भी इसमें पीछे नहीं हैं बल्कि कड़वी सच्चाई तो यह है कि अगर नौकरशाह ईमानदार हो जाये तो राजनेता चाहकर भी बेईमानी नहीं कर सकते मगर चोर-चोर मौसेरे भाई की तर्ज पर नौकरशाह और राजनेता मिलकर गरीबों की लाशों पर अपना महल खड़ा करने में लगे हैं मगर यह लोग यह भूल गये कि असली हकीकत सिर्फ गरीब की वह मिट्टी ही है जिससे वह अपने और अपने परिवार के पेट के लिये अन्न उगाता है और इन सबको एक दिन उसी मिट्टी में मिलना है।
Sabhar:- http://weekandtimes.com/?p=3952
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