सिर्फ नाटक है यह जंग
अगर आप सोच रहे हों कि बसपा सुप्रीमो मायावती जिस तरह से कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी पर हमला कर रहीं हैं उससे साफ है कि राहुल गांधी ही उनके सबसे बड़े दुश्मन हैं। साथ ही जिस तरह से राहुल गांधी बसपा सरकार पर हमलावर हो रहे हैं उससे राहुल को भी यकीन है कि उनकी लड़ाई सिर्फ बसपा से है इन दोनों सोच को आप दिमाग से निकाल दीजिए। इन दोनों बातों में कोई हकीकत नहीं है। यह एक नूराकुश्ती है जिसे कांग्रेस और बसपा मिलकर बड़ी सफाई के साथ लड़ रहे हैं ताकि जनता को यह संदेश दिया जा सके कि असली मुकाबला कांग्रेस और बसपा के बीच ही होने वाला है बाकी सभी लोग मैदान से बाहर है। यह राजनीति का पुराना सिद्धांत है कि कभी भी अपने दुश्मन की चर्चा मत करो। चर्चा करने से वह प्रसिद्धि पायेगा और आपके साथ मुख्य मुकाबले में आ जायेगा। मायावती भी अपने सबसे बड़े दुश्मन मुलायम सिंह की राह पर चलकर वैसी ही राजनीति कर रहीं हैं जैसी मुलायम सिंह ने उनके साथ की थी। पिछले विधानसभा चुनाव में मुलायम सिंह ने पूरे प्रदेश का दौरा करके कांग्रेस को जमकर गरियाया था। वह अपने भाषणों में गलती से भी कहीं पर भी बसपा नेत्री मायावती का नाम नहीं लेते थे। पूरे प्रदेश में ऐसा वातावरण बनने लगा था कि मानों समाजवादी पार्टी की सबसे बड़ी लड़ाई कांग्रेस के साथ ही है। बसपा नेत्री इस बात से बेहद परेशान थीं क्योंकि उनको मिल रही जानकारी से उन्हें यकीन था कि प्रदेश में उन्हीं के नेतृत्व में सरकार बनने जा रही है। मगर सपा और कांग्रेस के बीच छिड़ी जंग में उनका नाम कहीं पर भी नहीं आ रहा था। ऐसे में उन्होंने रणनीति बनायी कि कोई ऐसी बात कही जाये जिससे उनकी पार्टी का नाम मुख्य चुनावी दौड़ में शामिल हो जाये। इसी बात को ध्यान में रखकर उन्होंने बयान दिया कि सत्ता में आते ही वह मुलायम सिंह और अमर सिंह को जेल भेज देंगी। उनके इस बयान ने पूरा चुनावी परिदृश्य ही बदल दिया। प्रदेश में इस बयान की जबर्दस्त चर्चा होने लगी और मुलायम सिंह तथा अमर सिंह को इस बयान की काट के लिये मायावती और बहुजन समाज पार्टी का नाम अपने भाषणों में शामिल करना पड़ा। उस समय मुलायम सिंह भी जानते थे कि प्रदेश में कांग्रेस का इतना वजूद नहीं है कि वह दो दर्जन सीटें भी जीत सके। यही बात इस समय मायावती भी जानती हैं कि अन्ना हजारे ने कांग्रेस की हवा निकाल दी है और कांग्रेस इस हैसियत में नहीं है कि वह प्रदेश में दो या तीन दर्जन सीटें हासिल कर सके। मगर दोनों की रणनीति एक जैसी है कि गलती से भी अपने प्रतिद्वंदी का नाम जबान पर मत लाओ। प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती इसी सिद्धांत पर काम कर रही हैं। अब से छह महीने पहले प्रदेश में ऐसा वातावरण बना था कि तब लग रहा था कि कांगे्रस लगभग सौ सीटों के आस-पास जीत हासिल करेगी और प्रदेश में उसके बिना कोई भी सरकार बनाने की स्थिति में नहीं होगा। मगर जिस तरह से अन्ना हजारे के आंदोलन से देश भर में वातावरण बना और उत्तर प्रदेश भी उससे अछूता नहीं रहा। इसके बाद दिग्विजय सिंह के बयानों ने भी कांग्रेस को जमकर नुकसान पहुंचा दिया। राहुल गांधी की इस दौर में खामोशी भी कांग्रेस को पीछे ही ढकेलती चली गयी। ऐसे में कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने इस बात की आस छोड़ दी कि प्रदेश में कोई बड़ा परिवर्तन होने जा रहा है। यह स्थिति मायावती के लिये बेहद नुकसानदायक थी। अगर कांग्रेस लड़ाई से बाहर दिखायी देती तो प्रदेश में मुस्लिमों का अधिकांश वोट समाजवादी पार्टी के पक्ष में जाता। कल्याण फैक्टर के बाद मुस्लिमों का एक धड़ा कांग्रेस की वकालत करने लगा है। अगर कांग्रेस चुनावी जंग से बाहर जाती दिखायी दी तो यह धड़ा भी वापस मुलायम सिंह के साथ ही खड़ा हो जायेगा और यह बसपा के लिये नुकसानदायक होगा। मायावती सरकार के ऊपर सबसे बड़ा आरोप भ्रष्टाचार का है। ऐसे में मायावती के लिये भी यह बात बेहद सुविधाजनक है कि वह केन्द्र सरकार के ऊपर हमला बोले क्योंकि उत्तर प्रदेश सरकार पर जितना भ्रष्टाचार का आरोप लगता है उतना तो कांग्रेस के अकेले एक मंत्री ने ही कर रखा है। मायावती को लगता है कि जब केन्द्र सरकार के बड़े-बड़े भ्रष्टाचार के किस्से आम जनता के बीच आयेंगे तो उनकी सरकार पर लगे आरोप कम हो जायेंगे। इसी रणनीति के तहत मायावती लगातार कांग्रेस पर हमला बोलने में जुटी हुई हैं। कांग्रेस के लिये भी यह रणनीति कम फायदेमंद नहीं है। वह चुनाव की मुख्य लड़ाई में नहीं है यह बात सभी कांग्रेसी जानते हैं। राहुल गांधी के लिये यह बहुत अच्छा है कि मुख्यमंत्री मायावती उन पर हमला बोलें जिससे यह मैसेज साफ हो जाये कि कांग्रेस ही अकेली ऐसी पार्टी है जो माया सरकार से मोर्चा संभाल रही है और संघर्ष कर रही है। इससे आम जनता के बीच यह मैसेज जायेगा कि कांग्रेस को वोट दिया जाये क्योंकि कांग्रेस ही बसपा सरकार से लड़ाई लडऩे की स्थिति में है। आम जनता के इसी पसोपेश में कांग्रेस को कुछ अतिरिक्त वोटों का जुगाड़ हो जायेगा। कांग्रेस यूपी के चुनाव को लेकर इसलिये भी परेशान है क्योंकि यहां उसके युवराज की इज्जत और भविष्य दांव पर है। अगर यूपी में कांग्रेस तीसरे स्थान पर भी नहीं आ पायी तो ऐसे में युवराज का प्रधानमंत्री बनने का सपना टूट जायेगा। लिहाजा कांग्रेस भी किसी तरह से इसी रणनीति को बनाने में जुटी है कि यह मैसेज आम जनता तक दिया जा सके कि बसपा सरकार का मुकाबला सिर्फ और सिर्फ वह ही कर सकती है। जाहिर है कि इस तरह की साझा लड़ाई से बसपा और कांग्रेस दोनों के हित सधते हैं। लिहाजा दोनों के लिये जरूरी है कि वह एक दूसरे के खिलाफ जबानी जंग जारी रखें भले ही हकीकत में उसका कोई औचित्य न हो।
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