-निर्मल रानी-
भारतवर्ष के धर्मनिरपेक्ष स्वरूप पर कलंक समझे जाने वाले गोधरा ट्रेन कांड व उसके पश्चात हुए गुजरात के भयावह दंगों को हालांकि दस वर्ष बीत चुके हैं। परंतु देश को अयोध्या, गोधरा व गुजरात हादसों के मोड़ तक पहुंचाने वाली सांप्रदायिक शक्तियां अभी भी अपनी पूरी शक्ति व सामथ्र्य के साथ भारतीय समाज में धर्म के आधार पर वैमनस्य फैलाने का काम जारी रखे हुए हैं। अयोध्या मुद्दे को राजनैतिक रूप से भुना पाने में असफल रही दक्षिणपंथी शक्तियां अब पिछड़े अल्पसंख्यक वर्ग के आरक्षण के मुद्दे को बहाना बना कर देश में सांप्रदायिकता फैलाने की कोशिश कर रही हैं। पिछले दिनों विश्वहिंदू परिषद् के फायर ब्रांड नेता प्रवीण तोगडिय़ा ने हरियाणा व पंजाब जैसे शांतिप्रिय राज्यों का दौरा किया। वे जहां-जहां भी गए उन्होंने देश की धर्मनिरपेक्ष विचारधारा रखने वाले राजनैतिक दलों को ज़रूर कोसा। उनपर मुस्लिम तुष्टिकरण करने का आरोप लगाया तथा साफतौर पर कई स्थानों पर तोगडिय़ा ने कहा कि मुस्लिम समुदाय को चंूकि आरक्षण मिलने से देश के हिंदुओं का नुकसान हो रहा है इसलिए मुसलमानों को देश से उखाड़ फेंकना होगा। तोगडिय़ा ने यह भी कहा कि एक ओर तो जनता अपने अधिकारों से मोहताज है लेकिन नेता मुसलमानों के हाथों की कठपुतली बने हुए हैं।
गौरतलब है कि डा० प्रवीण तोगडिय़ा पेशे से एक चिकित्सक हैं तथा एक चिकित्सक का पहला धर्म मानवसेवा करना ही होता है न कि समाज में जातिवाद व सामप्रदायिकता का ज़हर घोलकर देश के शांतिपूर्ण वातावरण को बिगाडऩा व देश में सांप्रदायिक दंगों जैसे वातावरण तैयार करना। यानी तोगडिय़ा अपने फायर ब्रांड भाषणों के माध्यम से जिस हिंदू धर्म की रक्षा करने की बात करते हैं वह तब तक बेमानी है जब तक कि वे अपने पेशे से जुड़े धर्म का निर्वहन न करें। रहा सवाल मुस्लिम आरक्षण व उसके विरोध का तो इस मुद्दे पर आरक्षण का श्रेय लेने वालों तथा इसका विरोध करने वाले, दोनों ही पक्षों की ओर से ज़बरदस्त राजनीति की जा रही है। जहां अल्पसंख्यक आरक्षण के पैरोकार सत्तापक्ष द्वारा इसे पिछड़े वर्ग के कोटे से दिए जा रहे मुस्लिम आरक्षण के रूप में प्रचारित करने की गलत कोशिश की जा रही है वहीं दक्षिणपंथी विचारधारा के लोग भी इसे पिछड़े वर्ग के कोटे में से मुसलमानों को ही दिया गया आरक्षण प्रचारित कर रहे हैं। जबकि वास्तविकता यह है कि साढ़े चार प्रतिशत आरक्षण का प्रस्ताव भारतीय अल्पसंख्यक समुदाय के पिछड़े वर्ग के लिए है न कि केवल मुसलमानों के लिए। परंतु दुर्भाग्यवश एक ओर जहां मुस्लिम मतों को आकर्षित करने के लिए इसे मुसलमानों को दिया गया आक्षण बताया जा रहा है वहीं हिंदुओं व मुसलमानों के बीच नफरत फैलाने के महारथियों द्वारा भी इसे मुस्लिमों को दिया गया आरक्षण ही कहकर प्रचारित किया जा रहा है।
निश्चित रूप से न केवल डा० प्रवीण तोगडिय़ा बल्कि इन जैसे और भी तमाम सांप्रदायिक विचारधारा रखने वाले तंगनज़र लोग चाहे वे किसी भी धर्म अथवा संप्रदाय से संबद्ध क्यों न हों वे सभी दिन-रात,उठते-बैठते,सोते-जागते अपने इसी विध्वंसकारी मिशन में लगे रहते हैं कि किसी प्रकार समाज को धर्म व जाति के आधार पर विभाजित कर अपना राजनैतिक उल्लू सीधा किया जाए। परंतु भारतवासियों को उनके संस्कारों में मिली धर्मनिरपेक्षता इन फिरक़ापरस्त शक्तियों की मंशा पर समय-समय पर पानी फेर देती है। देश की जनता अब न केवल तथाकथित धर्मनिरपेक्षतावादियों के चेहरे पहचानने लगी है बल्कि वह धर्म व हिंदुत्व के स्वयंभू ठेकेदारों के राजनैतिक मकसद को भी भलीभांति समझने लगी है। यही वजह है कि अब इन दक्षिणपंथियों के मुंह से न तो अयोध्या मुद्दा सुनाई देता है न ही यह अब देश में रामराज्य लाने की बात करते हैं। कल तक भारतीय जनता पार्टी को भगवान राम का आशीर्वाद प्राप्त पार्टी बताने वाले उमा भारती व कल्याण सिंह जैसे नेता अब स्वयं यह कहने लगे हैं कि भाजपा भगवान राम के कोपभाजन का शिकार है तथा इसे रामजी का श्राप लग गया है। परंतु इन वास्तविकताओं को समझने के बावजूद सांप्रदायिक ताकतों का सांप्रदायिकता फैलाने का मिशन पूर्ववत् जारी है।और ऐसा शयद इसीलिए है क्योंकि समाज में न$फरत फैलाने की राह में इनके कदम अब इतने आगे निकल चुके हैं तथा इनकी इन कोशिशों के परिणामस्वरूप इतने अधिक लोग अपने जान व माल से हाथ धो चुके हैं कि अब इन सांप्रदायिक संगठनों के रहनुमाओं का इस राह से अपने कदम वापस खींचना संभव नहीं है।
विश्वहिंदू परिषद् और तोगडिय़ा जैसे नेता चुनावों के दौरान भाजपा को अपने राजनैतिक दल के रूप में आगे रखते हैं। विश्वहिंदू परिषद के मंच से तो यह नेता मुसलमानों को देश से उखाड़ फेंकने की बात करते हैं जबकि भारतीय जनता पार्टी के प्लेटफार्म पर शाहनवाज़खां व मुख्तार अब्बास नकवी जैसे लोग पार्टी नेताओं की तीसरी पंक्ति में खड़े नज़र आते हैं। तोगडिय़ा जी देश से 21 करोड़ मुसलमानों को उखाड़ फेंकने से पहले भाजपा से मुस्लिम नेताओं को क्यों नहीं उखाड़ फेंकते? यह सांप्रदायिक ताकतें अन्य धर्मनिरपेक्ष दलों पर मुस्लिम मतों को लुभाने के आरोप लगाती हैं। परंतु निश्चित रूप से आज देश की राजनीति का ढांचा ही कुछ ऐसा बन चुका है कि सभी राजनैतिक दल किसी न किसी वर्ग, जाति अथवा समुदाय को आकर्षित करने के लिए कोई न कोई हथकंडे ज़रूर अपना रहे हैं। भाजपा में भी शाहनवाज़ व मुख्तार नकवी के चेहरे इसी मकसद से पार्टी ने आगे कर रखे हैं ताकि वह मुस्लिम मतों को भाजपा की ओर खींच सकें। दूसरा प्रश्र यह है कि तोगडिय़ा व विश्वहिंदू परिषद् समर्थित भाजपा प्राय: इस बात का श्रेय लेते दिखाई देती है कि डा० एपीजे अब्दुल कलाम को राष्ट्रपति के उम्मीदवार के रूप में भाजपा ने प्रस्तावित किया था। आखर गोधरा कांड के बाद हुए गुजरात दंगों की भयावहता के पश्चात भाजपा को डा० कलाम का नाम राष्ट्रपति के रूप में प्रस्तावित करने की ज़रूरत क्यों महसूस हुई? यही नहीं बल्कि भारतीय जनता पार्टी ने अपने संगठन में बाकायदा अल्पसंख्यक मार्चा बना रखा है तथा यह मोर्चा चुनावों के दौरान मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्रों में अपने आयोजन भी करता रहता है। यहां तक कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने भी पिछले दिनों लखनऊ सहित अन्य कई स्थानों पर ऐसे तमाम कार्यक्रम आयोजित किए जिन्हें मुस्लिम समुदाय को अपनी ओर आकर्षित किए जाने का प्रयास कहा जा सकता है।
सवाल यह है कि इस प्रकार की दोहरी राजनीति करने की वजह क्या है? देश का वह समाज जोकि आज बुरी तरह से मंहगाई, बेरोज़गारी,भ्रष्टाचार, मिलावटखोरी,अशिक्षा तथा स्वास्थय जैसी समस्याओं से जूझ रहा है उसे सांप्रदायिक आधार पर विभाजित करने तथा दो समुदायों के बीच न$फरत फैलाने का आखिऱ क्या औचित्य है? इन्हीं फरक़ापरस्त शक्तियों ने भाजपा के केंद्रीय सत्ता में आने के पश्चात यह दावा करना शुरु कर दिया था कि मात्र दो वर्षों में भारतवर्ष हिंदू राष्ट्र बन जाएगा। स्वयं तोगडिय़ा जी उन दिनों यह बयान दिया करते थे जबकि देश में भारतरत्न एपीजे अब्दुल कलाम राष्ट्रपति थे। परंतु देश का हिंदू राष्ट्र बनना तो दूर उल्टे इन सांप्रदायिक शक्तियों को ही देश की जनता ने सत्ता से उखाड़ फेंका। नफरत फैलाने के लिए मुसलमानों की बढ़ती आबादी को भी यह शक्तियां हथियार के तौर पर इस्तेमाल करती हैं। जबकि वास्तव में जनसंख्या वृद्धि के आंकड़ों का धर्म या संप्रदाय से उतना लेना-देना नहीं जितना कि इसका सीधा सबंध अशिक्षा व गरीबी से है।
आमतौर पर अधिक बच्चों की पैदावार गरीब या अशिक्षित परिवार में ही देखी जाती है चाहे वे किसी भी समुदाय के क्यों न हों। परंतु सांप्रदायिक आधार पर न$फरत फैलाने के लिए जनसंख्या वृद्धि के मुद्दे को मुस्लिम समाज से जोडऩे की कोशिश की जाती है। हिंदुत्व के नाम पर देश में नफरत फैलाने वाली शक्तियोंं को यह समझ लेना चाहिए कि इसी मुस्लिम समुदाय ने देश को जहां एपीजे अब्दुल कलाम जैसा महान वैज्ञानिक दिया है वहीं देश की शिक्षा की बेहतरी पर साढ़े नौ हज़ार करोड़ रुपये का दान देने वाले उद्योगपति अज़ीम प्रेमजी भी न केवल मुसलमान हैं बल्कि डा० तोगडिय़ा व नरेंद्र मोदी के गृह राज्य नगर गुजरात से संबद्ध हैं। लिहाज़ा इस देश की जनता ऐसे महान लोगों के महान कारनामों को कतई नज़रअंदाज़ नहीं कर सकती। जबकि यही जनता सांप्रदायिक शक्तियों व राजनीतिज्ञों की कथनी और करनी के अंतर को बखूबी समझती है। यह जनता इनकी रामराज्य की परिकल्पना तथा राममंदिर प्रेम के पाखंडपूर्ण प्रदर्शन से भी अच्छी तरह वाकिफ हो चुकी है। यही वजह है कि अब इन दक्षिणपंथी ताकतों को सत्ता का सुख दूर तक दिखाई नहीं दे रहा है
Sabhar- Journalistcommunity.com
भारतवर्ष के धर्मनिरपेक्ष स्वरूप पर कलंक समझे जाने वाले गोधरा ट्रेन कांड व उसके पश्चात हुए गुजरात के भयावह दंगों को हालांकि दस वर्ष बीत चुके हैं। परंतु देश को अयोध्या, गोधरा व गुजरात हादसों के मोड़ तक पहुंचाने वाली सांप्रदायिक शक्तियां अभी भी अपनी पूरी शक्ति व सामथ्र्य के साथ भारतीय समाज में धर्म के आधार पर वैमनस्य फैलाने का काम जारी रखे हुए हैं। अयोध्या मुद्दे को राजनैतिक रूप से भुना पाने में असफल रही दक्षिणपंथी शक्तियां अब पिछड़े अल्पसंख्यक वर्ग के आरक्षण के मुद्दे को बहाना बना कर देश में सांप्रदायिकता फैलाने की कोशिश कर रही हैं। पिछले दिनों विश्वहिंदू परिषद् के फायर ब्रांड नेता प्रवीण तोगडिय़ा ने हरियाणा व पंजाब जैसे शांतिप्रिय राज्यों का दौरा किया। वे जहां-जहां भी गए उन्होंने देश की धर्मनिरपेक्ष विचारधारा रखने वाले राजनैतिक दलों को ज़रूर कोसा। उनपर मुस्लिम तुष्टिकरण करने का आरोप लगाया तथा साफतौर पर कई स्थानों पर तोगडिय़ा ने कहा कि मुस्लिम समुदाय को चंूकि आरक्षण मिलने से देश के हिंदुओं का नुकसान हो रहा है इसलिए मुसलमानों को देश से उखाड़ फेंकना होगा। तोगडिय़ा ने यह भी कहा कि एक ओर तो जनता अपने अधिकारों से मोहताज है लेकिन नेता मुसलमानों के हाथों की कठपुतली बने हुए हैं।
गौरतलब है कि डा० प्रवीण तोगडिय़ा पेशे से एक चिकित्सक हैं तथा एक चिकित्सक का पहला धर्म मानवसेवा करना ही होता है न कि समाज में जातिवाद व सामप्रदायिकता का ज़हर घोलकर देश के शांतिपूर्ण वातावरण को बिगाडऩा व देश में सांप्रदायिक दंगों जैसे वातावरण तैयार करना। यानी तोगडिय़ा अपने फायर ब्रांड भाषणों के माध्यम से जिस हिंदू धर्म की रक्षा करने की बात करते हैं वह तब तक बेमानी है जब तक कि वे अपने पेशे से जुड़े धर्म का निर्वहन न करें। रहा सवाल मुस्लिम आरक्षण व उसके विरोध का तो इस मुद्दे पर आरक्षण का श्रेय लेने वालों तथा इसका विरोध करने वाले, दोनों ही पक्षों की ओर से ज़बरदस्त राजनीति की जा रही है। जहां अल्पसंख्यक आरक्षण के पैरोकार सत्तापक्ष द्वारा इसे पिछड़े वर्ग के कोटे से दिए जा रहे मुस्लिम आरक्षण के रूप में प्रचारित करने की गलत कोशिश की जा रही है वहीं दक्षिणपंथी विचारधारा के लोग भी इसे पिछड़े वर्ग के कोटे में से मुसलमानों को ही दिया गया आरक्षण प्रचारित कर रहे हैं। जबकि वास्तविकता यह है कि साढ़े चार प्रतिशत आरक्षण का प्रस्ताव भारतीय अल्पसंख्यक समुदाय के पिछड़े वर्ग के लिए है न कि केवल मुसलमानों के लिए। परंतु दुर्भाग्यवश एक ओर जहां मुस्लिम मतों को आकर्षित करने के लिए इसे मुसलमानों को दिया गया आक्षण बताया जा रहा है वहीं हिंदुओं व मुसलमानों के बीच नफरत फैलाने के महारथियों द्वारा भी इसे मुस्लिमों को दिया गया आरक्षण ही कहकर प्रचारित किया जा रहा है।
निश्चित रूप से न केवल डा० प्रवीण तोगडिय़ा बल्कि इन जैसे और भी तमाम सांप्रदायिक विचारधारा रखने वाले तंगनज़र लोग चाहे वे किसी भी धर्म अथवा संप्रदाय से संबद्ध क्यों न हों वे सभी दिन-रात,उठते-बैठते,सोते-जागते अपने इसी विध्वंसकारी मिशन में लगे रहते हैं कि किसी प्रकार समाज को धर्म व जाति के आधार पर विभाजित कर अपना राजनैतिक उल्लू सीधा किया जाए। परंतु भारतवासियों को उनके संस्कारों में मिली धर्मनिरपेक्षता इन फिरक़ापरस्त शक्तियों की मंशा पर समय-समय पर पानी फेर देती है। देश की जनता अब न केवल तथाकथित धर्मनिरपेक्षतावादियों के चेहरे पहचानने लगी है बल्कि वह धर्म व हिंदुत्व के स्वयंभू ठेकेदारों के राजनैतिक मकसद को भी भलीभांति समझने लगी है। यही वजह है कि अब इन दक्षिणपंथियों के मुंह से न तो अयोध्या मुद्दा सुनाई देता है न ही यह अब देश में रामराज्य लाने की बात करते हैं। कल तक भारतीय जनता पार्टी को भगवान राम का आशीर्वाद प्राप्त पार्टी बताने वाले उमा भारती व कल्याण सिंह जैसे नेता अब स्वयं यह कहने लगे हैं कि भाजपा भगवान राम के कोपभाजन का शिकार है तथा इसे रामजी का श्राप लग गया है। परंतु इन वास्तविकताओं को समझने के बावजूद सांप्रदायिक ताकतों का सांप्रदायिकता फैलाने का मिशन पूर्ववत् जारी है।और ऐसा शयद इसीलिए है क्योंकि समाज में न$फरत फैलाने की राह में इनके कदम अब इतने आगे निकल चुके हैं तथा इनकी इन कोशिशों के परिणामस्वरूप इतने अधिक लोग अपने जान व माल से हाथ धो चुके हैं कि अब इन सांप्रदायिक संगठनों के रहनुमाओं का इस राह से अपने कदम वापस खींचना संभव नहीं है।
विश्वहिंदू परिषद् और तोगडिय़ा जैसे नेता चुनावों के दौरान भाजपा को अपने राजनैतिक दल के रूप में आगे रखते हैं। विश्वहिंदू परिषद के मंच से तो यह नेता मुसलमानों को देश से उखाड़ फेंकने की बात करते हैं जबकि भारतीय जनता पार्टी के प्लेटफार्म पर शाहनवाज़खां व मुख्तार अब्बास नकवी जैसे लोग पार्टी नेताओं की तीसरी पंक्ति में खड़े नज़र आते हैं। तोगडिय़ा जी देश से 21 करोड़ मुसलमानों को उखाड़ फेंकने से पहले भाजपा से मुस्लिम नेताओं को क्यों नहीं उखाड़ फेंकते? यह सांप्रदायिक ताकतें अन्य धर्मनिरपेक्ष दलों पर मुस्लिम मतों को लुभाने के आरोप लगाती हैं। परंतु निश्चित रूप से आज देश की राजनीति का ढांचा ही कुछ ऐसा बन चुका है कि सभी राजनैतिक दल किसी न किसी वर्ग, जाति अथवा समुदाय को आकर्षित करने के लिए कोई न कोई हथकंडे ज़रूर अपना रहे हैं। भाजपा में भी शाहनवाज़ व मुख्तार नकवी के चेहरे इसी मकसद से पार्टी ने आगे कर रखे हैं ताकि वह मुस्लिम मतों को भाजपा की ओर खींच सकें। दूसरा प्रश्र यह है कि तोगडिय़ा व विश्वहिंदू परिषद् समर्थित भाजपा प्राय: इस बात का श्रेय लेते दिखाई देती है कि डा० एपीजे अब्दुल कलाम को राष्ट्रपति के उम्मीदवार के रूप में भाजपा ने प्रस्तावित किया था। आखर गोधरा कांड के बाद हुए गुजरात दंगों की भयावहता के पश्चात भाजपा को डा० कलाम का नाम राष्ट्रपति के रूप में प्रस्तावित करने की ज़रूरत क्यों महसूस हुई? यही नहीं बल्कि भारतीय जनता पार्टी ने अपने संगठन में बाकायदा अल्पसंख्यक मार्चा बना रखा है तथा यह मोर्चा चुनावों के दौरान मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्रों में अपने आयोजन भी करता रहता है। यहां तक कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने भी पिछले दिनों लखनऊ सहित अन्य कई स्थानों पर ऐसे तमाम कार्यक्रम आयोजित किए जिन्हें मुस्लिम समुदाय को अपनी ओर आकर्षित किए जाने का प्रयास कहा जा सकता है।
सवाल यह है कि इस प्रकार की दोहरी राजनीति करने की वजह क्या है? देश का वह समाज जोकि आज बुरी तरह से मंहगाई, बेरोज़गारी,भ्रष्टाचार, मिलावटखोरी,अशिक्षा तथा स्वास्थय जैसी समस्याओं से जूझ रहा है उसे सांप्रदायिक आधार पर विभाजित करने तथा दो समुदायों के बीच न$फरत फैलाने का आखिऱ क्या औचित्य है? इन्हीं फरक़ापरस्त शक्तियों ने भाजपा के केंद्रीय सत्ता में आने के पश्चात यह दावा करना शुरु कर दिया था कि मात्र दो वर्षों में भारतवर्ष हिंदू राष्ट्र बन जाएगा। स्वयं तोगडिय़ा जी उन दिनों यह बयान दिया करते थे जबकि देश में भारतरत्न एपीजे अब्दुल कलाम राष्ट्रपति थे। परंतु देश का हिंदू राष्ट्र बनना तो दूर उल्टे इन सांप्रदायिक शक्तियों को ही देश की जनता ने सत्ता से उखाड़ फेंका। नफरत फैलाने के लिए मुसलमानों की बढ़ती आबादी को भी यह शक्तियां हथियार के तौर पर इस्तेमाल करती हैं। जबकि वास्तव में जनसंख्या वृद्धि के आंकड़ों का धर्म या संप्रदाय से उतना लेना-देना नहीं जितना कि इसका सीधा सबंध अशिक्षा व गरीबी से है।
आमतौर पर अधिक बच्चों की पैदावार गरीब या अशिक्षित परिवार में ही देखी जाती है चाहे वे किसी भी समुदाय के क्यों न हों। परंतु सांप्रदायिक आधार पर न$फरत फैलाने के लिए जनसंख्या वृद्धि के मुद्दे को मुस्लिम समाज से जोडऩे की कोशिश की जाती है। हिंदुत्व के नाम पर देश में नफरत फैलाने वाली शक्तियोंं को यह समझ लेना चाहिए कि इसी मुस्लिम समुदाय ने देश को जहां एपीजे अब्दुल कलाम जैसा महान वैज्ञानिक दिया है वहीं देश की शिक्षा की बेहतरी पर साढ़े नौ हज़ार करोड़ रुपये का दान देने वाले उद्योगपति अज़ीम प्रेमजी भी न केवल मुसलमान हैं बल्कि डा० तोगडिय़ा व नरेंद्र मोदी के गृह राज्य नगर गुजरात से संबद्ध हैं। लिहाज़ा इस देश की जनता ऐसे महान लोगों के महान कारनामों को कतई नज़रअंदाज़ नहीं कर सकती। जबकि यही जनता सांप्रदायिक शक्तियों व राजनीतिज्ञों की कथनी और करनी के अंतर को बखूबी समझती है। यह जनता इनकी रामराज्य की परिकल्पना तथा राममंदिर प्रेम के पाखंडपूर्ण प्रदर्शन से भी अच्छी तरह वाकिफ हो चुकी है। यही वजह है कि अब इन दक्षिणपंथी ताकतों को सत्ता का सुख दूर तक दिखाई नहीं दे रहा है
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