सक्ती. आमतौर पर किसी ग्रामीण को गांव देहात में छोटे से दुकान लगाकर साइकिल मरम्मत का काम करते हुए देखा जाता है जो कि सामान्य बात कही जा सकती है किंतु यही काम जब कोई दृष्टिहीन व्यक्ति बड़ी कुशलता के साथ करें तो यह सामने वाले के लिए आश्चर्य वाली बात ही होगी। यह दृश्य रोजाना देखने को मिलती है ग्राम असौंदा के एक छोटे से दुकान में जहां 32 वर्षीय विजय कुमार निषाद जिसे गांव के लोग सूरदास कहकर संबोधित करते हैं साइकिल मरम्मत का काम करता है।
कोरबा रोड के ग्राम पंचायत असौंदा जहां एक छोटे से खपरैलनुमा मकान में दृष्टिहीन विजय निषाद अपने माता-पिता व दो बहनों के साथ रहता है। आंख नहीं होने के बावजूद विजय अपना हर काम बड़ी कुशलता के साथ बारीकी से करता है, बिजली फिटिंग का काम हो या साइकिल की मरम्मत वह अकेले ही बिना किसी के सहयोग से पूरा कर लेता है। लेकिन हालात का मारा विजय कुमार चाहकर भी आगे नहीं बढ़ पा रहा है।
विजय कुमार निषाद जिसकी दोनों आंखें बचपन में ही चेचक बीमारी की भेंट चढ़ गई। आंख गंवाने के बाद उसकी पढ़ने-लिखने की तमन्ना जो थोड़ी रह गई थी उसे स्कूल मास्टर के इन शब्दों ने खत्म कर दिया कि वह आंख नहीं होने के कारण पढ़ाई-लिखाई नहीं कर सकता।
स्वयं के पास इतनी जमीन भी नहीं कि उसमें पर्याप्त फसल ले सके, बावजूद इसके अपनी बदहाली पर आंसू बहाने के बजाय वह अपने परिवार के लिए आय का जरिया बना हुआ है। दैनिक भास्कर को एक मुलाकात के दौरान विजय निषाद ने बताया कि कुछ साल पहले उसके पिता महेत्तर राम निषाद लकवा बीमारी के शिकार हो गए तब से वह बिस्तर पर ही पड़े रहते हैं।
वहीं माता बैयन बाई भी अब वृद्ध हो चली है। कुल 5 बहनों में तीन की शादी हो चुकी है जबकि दो बहनें नर्मदा व त्रिवेणी पूरी तरह से शादी के लायक हो गई है। वह प्रतिदिन 4 से 6 साइकिल का मरम्मत कर लेता है जिससे वह परिवार के लिए रोटी की व्यवस्था करता है।
शासन की योजना का नहीं मिल रहा लाभ
गांव में सूरदास के नाम से जाना जाने वाले विजय कुमार निषाद के साथ दुर्भाग्य इस बात का है कि वह कभी स्कूल की दहलीज नहीं चढ़ पाया। जबकि शासन की नीति के तहत बेरोजगार वही व्यक्तिहै जो पढ़ा लिखा है और रोजगार के लिए सहायता राशि भी उन्हीं को मिलती है। ऐसे में विजय निषाद शासकीय योजनाओं से पूरी तरह वंचित है। शासन द्वारा उसे सहायता के रूप में केवल विकलांग पेंशन राशि जो कि प्रति माह 200 रुपए दी जाती है।
जो कि आज के दौर में ऊंट के मुंह में जीरा नहीं बल्कि ऊंट के मुंह में तिल ही कही जा सकती है। शासन को चाहिए कि विजय निषाद की पारिवारिक परिस्थिति व दृष्टिहीन होते हुए भी उसकी कार्यकुशलता व कुछ कर गुजरने की क्षमता को देखते हुए उसे रोजगार दिलाने पहल करें। वहीं सामाजिक संस्थाओं को भी इसके सहयोग के लिए आगे आने की जरूरत है
Sabhar- Bhaskar.com
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