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Nandita Mahtani hosts a birthday party for Tusshar Kapoor

http://www.sakshatkar.com/2017/11/nandita-mahtani-hosts-birthday-party.html

मीडिया का अराजक व्‍यवहार देश को तोड़ देगा


समय से संवाद : चर्चिल ने भविष्यवाणी की थी. आजादी की पीढ़ी के नेताओं को गुजर जाने दीजिए, आने वाले नेता शासक या राज्यों के सूबेदार भारत को छिन्न-भिन्न कर देंगे. तबाह कर देंगे. हम इसी रास्ते हैं. अब सेना जैसे संगठन की छवि ध्वस्त करने में हम जी-जान से लग गये हैं. मैं मीडिया का आदमी हूं. लगातार अपनी गलतियों के बावजूद खुद को जिम्मेदार मीडियाकर्मी मानता हूं. पर मेरा निष्कर्ष है कि मीडिया का मौजूदा अराजक व्यवहार देश को तोड़ देगा. पहले सेनाध्यक्ष द्वारा प्रधानमंत्री और रक्षामंत्री को लिखी चिट्ठी लीक होती है, फिर सेना के रूटीन अभ्यास को विद्रोह की शक्ल देकर पेश किया जाता है. पहले अखबारों में यह खबर छपती है, फिर दिन भर चैनलों पर इसकी व्याख्या-विश्लेषण होता है. क्या हम एक -एक कर संस्थाओं को तोड़ देने पर तुले हैं?
पहले राजनीतिज्ञों से भरोसा उठा, फिर नौकरशाही की लूट-भयानक कामों ने उसे अविश्वसनीय बनाया. विधायिका संशय के घेरे में है. छोटी-निचली अदालतों की साख पर भी सवाल उठते हैं. सरकारें भ्रष्टाचार की प्रतिमूर्ति लगती हैं. राजनीतिक दल निजी परिवारों की प्राइवेट लिमिटेड कंपनी बन गये हैं. अब कौन-सी संस्था बची है, जिसमें अखिल भारतीय बिंब (छवि) या सूरत झलकती हो? एक भारतीय सेना है, उसे भी गुटबाजी, कलह, आरोप-प्रत्यारोप के घेरे में लाकर हम कमजोर करने पर आमादा हैं.
हमारा शासक वर्ग, स्वभाव से अराजक और अनुशासनहीन है. भ्रष्ट और अक्षम ऊपर से. अब इसी संस्कृति या रास्ते हम सेना से डील करना चाहते हैं, तो ध्यान रखिए, जिस दिन भारतीय सेना से अनुशासन हटा, भारत सातवीं सदी में चला जायेगा. खंड-खंड होकर. हर कमी के बावजूद हमारी सेना ने गुजरे 60 वर्षो में दुनिया में भारत का मान-सम्मान बढ़ाया है. युद्ध में, आचरण व अनुशासन से भी. यह फख्र करने लायक संगठन है. भारत की एकता का सबसे सशक्त पाया.
दरअसल, जब ताकतवर केंद्र कमजोर पड़ता है, या कद्दावर नेता देश में नहीं रहते, तो व्यवस्थापिका, न्यायपालिका, कार्यपालिका पर असर दिखता है. मीडिया भी इसी कारण निरंकुश और स्वच्छंद हो गया है. कई बार लगता है कि मीडिया की कुछेक ताकतें किसी विदेशी इशारे पर काम कर रही हैं. भारत को कमजोर करने के लिए. फर्ज करिए, लोकतंत्र और प्रेस की आजादी के जन्मदाता देशों में भी प्रेस क्या अपनी सेना के बारे में ऐसे लिखता है? वहां भी राष्ट्रीय हित सबसे पहले है. अगर भारतीय सेना में कमी भी है, तो वह राष्ट्रीय बहस का विषय नहीं है. वैसे भी इंग्लैंड, अमेरिका वगैरह में प्रेस-मीडिया भारत की तरह स्वछंद और अराजक नहीं है. कुछ भी करने-कहने के लिए स्वतंत्र. क्या मौजूदा मीडिया के लोग इस असीमित आजादी के हकदार हैं? इनकी क्या जवाबदेही है, समाज, देश, शासन के प्रति? खुद मीडिया के अंदर जो सड़ांध है, उसका जिम्मेदार कौन है?
चिट्ठी लीक- पिछले महीने थल सेनाध्यक्ष द्वारा प्रधानमंत्री को लिखा पत्र छपने से भूचाल-सा आ गया. थल सेनाध्यक्ष को बर्खास्त करने की मांग संसद में गूंजी. सरकार ने तुरंत आदेश दिया, पत्र लीक की जांच का. आइबी को जिम्मा सौंपा. अब खबर आ गयी है कि यह खबर-पत्र सेनाध्यक्ष के यहां से लीक नहीं हुआ. फिर बचे कौन? उसकी जांच क्यों नहीं हो रही है? अब संसद या राजनेता चुप क्यों हैं? यह जांच भारत की एकता-अखंडता से जुड़ी है. राजनीति (संसद), सरकार-नौकरशाही ने हर चीज को अगंभीर और मजाक बना दिया है. क्यों नहीं समय के तहत स्पष्ट जानकारी देश को मिलती है कि लीक का यह देशद्रोह किसने किया? इसकी जांच कर दोषी को सजा के अंतिम मुकाम तक हम नहीं पहुंचायेंगे, तो भारत एक कैसे रहेगा? चर्चा है कि ईमानदार सेनाध्यक्ष और ईमानदार रक्षा मंत्री के कार्यकाल में हथियार दलालों की लॉबी ने यह काम कर सेनाध्यक्ष को बदनाम करने की कोशिश की है. देश का ध्यान हथियार दलालों के भ्रष्टाचार से भटक जाये, इसलिए यह काम हुआ है. जहां दलाल, भ्रष्ट, देश के लुटेरे (हथियारों की सौदेबाजी से भारत को लूटनेवाले), यह ताकत रखते हों कि सेनाध्यक्ष द्वारा प्रधानमंत्री को लिखे अतिगोपनीय पत्र को लीक करा दे, तो फिर क्या बचा?
अब यह चिट्ठी लीक हो ही गयी है, तो उसमें उठे सवालों पर मौन क्यों? उस चिट्ठी में भारत की सेना के पास गोला-बारूद, हथियार न होने की स्थिति पर संसद या राजनीति मौन क्यों है? इस स्थिति के लिए जबावदेह कौन है? सत्ता गलियारों में यह चर्चा भी है कि हथियारों के दलालों ने अपने कारनामों के भंडाफोड़ के भय से चिट्ठी लीक करायी और अब इसी लॉबी के सौजन्य से एक और मामला उछला है कि सेना की दो डिवीजनें, जनवरी में दिल्ली की ओर कूच कर रही थीं, बिना सूचना या पूर्व अनुमति के. हालांकि यह रूटीन अभ्यास था. इस रूटीन अभ्यास को विद्रोह के रूप में पेश करने की कोशिश हो रही है.
भारत की राजनीति के लिए सबसे अहं सवाल क्या है? आज भारत हथियारों का सबसे बड़ा आयातक देश है. तीन-चार दशकों पहले चीन भी ऐसी ही स्थिति में था. आज चीन हथियार निर्माण में आत्मनिर्भर है और निर्यातक भी बन गया है. भारत क्यों नहीं हथियार आयातक से हथियार उत्पादक देश बना? चीन की तरह. इसे रोकने का काम किस लॉबी ने किया? क्या चीन के पैसे हथियार दलाली की कटौती के रूप में स्विस बैंक पहुंचते हैं? उन लोगों ने भारत को चीन की तरह हथियार उत्पादक -निर्यातक देश नहीं बनने दिया? मूल सवाल यह है, जिस पर संसद मौन है.
सूबेदारों से सवाल- ममता बनर्जी, जयललिता से लेकर नरेंद्र मोदी तक ने एनसीटीसी (आतंकवादियों को रोकने का केंद्र का नया संघीय कानून) के खिलाफ जेहाद कर दिया. अब मई में मुख्यमंत्रियों के साथ इस पर अलग बैठक -बातचीत होगी. याद रखिए, जब-जब आतंकी हमला (बाहरी हमले का नया रूप) होता है, तो सभी दल के नेता केंद्र को ही कोसते हैं. पर, भारत के नये छत्रप-सूबेदारों से एक सवाल, क्या कभी भारत को आतंकवादियों से बचाने के मुद्दे पर चर्चा के लिए भी केंद्र सरकार को विवश किया है? जनता की सुरक्षा के लिए क्या कदम उठे, इसके लिए केंद्र को घेरा है? क्या ऐसे सवालों के लिए मुख्यमंत्रियों का विशेष सम्मेलन हुआ है? 26/11 को भारत में आतंकवादी हमले में मारे गये निदरेष लोगों के गुनहगारों को दंडित करने के लिए अब तक क्या हुआ? इसके लिए सभी केंद्र सरकारों को इन मुख्यमंत्रियों ने विवश किया कि वह विशेष सम्मेलन बुलाये.
भारत को तबाह करने और 26/11 प्रकरण का संकल्प लेने वाला असली मुजरिम आतंकी हाफिज मुहम्मद सईद खुलेआम रावलपिंडी, कराची, लाहौर में भारत विरोधी रैली करता है. पाकिस्तान की संसद के सामने प्रदर्शन करता है? पर भारत क्या कर रहा है? क्या हमारे नये छत्रप-सूबेदार केंद्र से कभी यह सवाल भी करते हैं? क्या यह छत्रप इस देश की बेगुनाह जनता के प्रति भी प्रतिबद्ध हैं?
अपनी सामर्थ्य, संकल्प, प्रतिबद्धता और ताकत आंक लीजिए. अमेरिका ने आतंकी हाफिज सईद पर 51 करोड़ का इनाम घोषित किया, तो हम इतरा रहे हैं. गृहमंत्री प्रेस कान्फ्रेंस कर रहे हैं कि अब भारत भी दबाव बनायेगा. यह देश के साथ मजाक लगता है. अपनी अकर्मण्यता, मजबूरी और कमजोरी का इजहार. अपनी लड़ाई खुद लड़नी पड़ती है, तब वजूद बचता है. अपने पुरुषार्थ, क्षमता और संकल्प को बोल कर बताना नहीं पड़ता. काम करके साबित करना होता है. 1993 में मुंबई विस्फोट का मुजरिम, भारत का घोषित शत्रु नंबर वन, दाउद इब्राहिम सुरक्षित और मौज में है. मसूद अजहर, सईद सलाउद्दीन, इलियास कश्मीरी, जकी-उर-रहमान लखवी, छोटा शकील वगैरह पिछले कई दशकों से भारत को तोड़ने-तबाह करने में लगे हैं. खुलेआम. ये भारत के अंदर आतंकी हमलों से तबाह करने में जुटे हैं. उनका खुला एलान है, भारत को तोड़ देना. इस पर भारत सरकार क्या कर रही है, यह चिंता भी किसी सूबेदार के दिल में है?
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री यूसुफ रजा गिलानी का नया बयान आया है. चार दिनों पहले. “चीन का दुश्मन, पाकिस्तान का दुश्मन ”. क्या भारत के नये छत्रप इसका अर्थ नहीं समझ रहे या समझ कर भी नासमझ बने हुए है. चीन पहले ही हर तरफ से भारत को घेर चुका है. अब चीन के सवाल पर भारत की संसद भी बहस नहीं करती. उधर, सेनाध्यक्ष के पत्र से भारतीय सेना के बंदूक, गोला, बारूद, वगैरह की असलियत भी खुल गयी है. भारत मुश्किल में है. क्या कभी आपने सुना है कि भारत के अस्तित्व से जुड़े ऐसे सवालों पर नये सूबेदार केंद्र को बाध्य-विवश करते हों कि इन सवालों पर भी देश को बताया जाये?
भ्रष्टाचार का नया तमगा- अन्ना हजारे, बाबा रामदेव या देश के कोने-कोने में भ्रष्टाचार के संगीन मामले उठानेवाले लोग झूठे-गलत हो सकते हैं. पर भारत के पुनर्निर्माण-विकास में सहयोग करनेवाले साझेदार विश्व बैंक ने भारत की शिकायत केंद्रीय वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी से की है? वल्र्ड बैंक की इंस्टीट्यूशनल इंटीग्रिटी रिपोर्ट संस्था ने अपनी रिपोर्ट 2012 में भारत की राष्ट्रीय राजमार्ग निर्माण परियोजनाओं में बड़े स्तर पर भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी की पुख्ता शिकायत की है. सप्रमाण. यह महज सामान्य या चलताऊ आरोप नहीं है. इसमें तीन परियोजनाओं का उल्लेख है. लखनऊ-मुजफ्फरपुर राष्ट्रीय राजमार्ग, द ग्रैंड ट्रंक रोड सुधार परियोजना और राष्ट्रीय राजमार्ग परियोजना. इन परियोजनाओं में विश्व बैंक ने पैसे लगाये हैं. केवल एक परियोजना में 26 करोड़ जालसाजी की बात सामने आयी है. इसने राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण के अफसरों को भी करोड़ों रुपये घूस देने का उल्लेख है. ठेकेदारों की लूट का अलग ब्योरा है. हथियारों की खरीद में लूट, सड़क बनाने में लूट, खेल में लूट, टेलीफोन (2जी) में लूट . . जहां हाथ डालिए, वहां यही हाल. कहां पहुंच गया है, देश?
एक तरफ विश्व बैंक सड़क लूट की जानकारी सरकार को दे रहा है, तो दूसरी तरफ ग्लोबल इंटीग्रिटी रिपोर्ट 2011 जारी हुई. रिपोर्ट का निष्कर्ष है कि भारतीय राजनीति में धन का खेल नहीं रुकनेवाला. रिपोर्ट के
अनुसार भारत के नेता नितांत गैर जिम्मेदार हैं. ये चार प्रसंग है. देश के हालात को जानने-समझने के लिए. राजनीति का असली चेहरा पहचानने के लिए.
लेखक हरिवंश देश के जाने-माने पत्रकार हैं. बिहार-झारखंड के प्रमुख हिंदी दैनिक प्रभात खबर के प्रधान संपादक हैं. यह खबर प्रभात खबर में छप चुका है वहीं से साभार लिया गया है.

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