जिन में दम नहीं होता वो बहुत देर तक जिंदा नहीं रहते. वे मुद्दे हों, इमारत, इंसान या खबर. 16 जनवरी की रात दो सैनिक टुकड़ियों के दिल्ली कूच वाली खबर के साथ भी यही हुआ है. खबर आई, गई और खबर है कि वो 'मर' भी गई. उसका ज़िक्र भी अब नहीं हो सकेगा. इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने अब उस खबर के ज़िकर पर भी मनाही लगा दी है. अखबार और चैनल अब उस खबर के हवाले से भी कोई खबर नहीं चला सकेंगे.
न्यायमूर्ति उमानाथ सिंह और न्यायमूर्ति वीके दीक्षित के समक्ष प्रस्तुत एक जनहित याचिका के ज़रिये कहा गया था कि प्रधानमंत्री के स्तर पे ऐसे किसी कूच से इनकार किया गया है लेकिन ये काफी नहीं है. इस मामले की ज्यूडीशियल इन्क्वायरी होनी चाहिए. विद्वान न्यायाधीशों ने इस याचिका पर ये कह के कुछ आदेश करने से इनकार कर दिया कि इस से सम्बंधित एक मामला सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है इस लिए वे इस में दखल नहीं देंगे. लेकिन इतना उन्होंने ज़रूर कहा कि अब कोई भी अख़बार या चैनल उस या उस तरह की खबर का प्रकाशन, प्रसारण नहीं करेगा.
न्यायमूर्ति उमानाथ सिंह और न्यायमूर्ति वीके दीक्षित के समक्ष प्रस्तुत एक जनहित याचिका के ज़रिये कहा गया था कि प्रधानमंत्री के स्तर पे ऐसे किसी कूच से इनकार किया गया है लेकिन ये काफी नहीं है. इस मामले की ज्यूडीशियल इन्क्वायरी होनी चाहिए. विद्वान न्यायाधीशों ने इस याचिका पर ये कह के कुछ आदेश करने से इनकार कर दिया कि इस से सम्बंधित एक मामला सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है इस लिए वे इस में दखल नहीं देंगे. लेकिन इतना उन्होंने ज़रूर कहा कि अब कोई भी अख़बार या चैनल उस या उस तरह की खबर का प्रकाशन, प्रसारण नहीं करेगा.
याचिका नेशनल आरटीआई फोरम की तरफ से डा. नूतन ठाकुर ने दायर की थी.
Sabhar- Journalist community.com
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