यहां वीडियो से ली गईं वो तस्वीरें प्रकाशित की गई हैं जिसमें दरवाजे के बाहर घंटी बजने के ठीक पहले की कुछ मुद्राएं हैं. घंटी बजते ही टीवी जर्नलिस्ट और लड़की, दोनों अचानक झटके से उठ जाते हैं. लड़की कपड़े ठीक करने लगती है, दुपट्टा डालने लगती है, टीवी जर्नलिस्ट चश्मा उठाते - लगाते हैं और पैंट की बेल्ट कसते हुए गेट की तरफ बढ़ते हैं. लड़की बहुत जल्द खुद को दुरुस्त कर सोफे पर एक कोने में चुपके से बैठ जाती है, जैसे कुछ हुआ ही न हो वाली मुद्रा में. जिस कमरे में टीवी जर्नलिस्ट यह सब करता दिख रहा है, वहां कोने में पति-पत्नी की तस्वीर है, दीवार पर देवता लोग टंगे हैं.
इस पूरे प्रकरण के बारे में टीवी जर्नलिस्ट महोदय, जो खुद को इन तस्वीरों के जरिए अच्छी तरह पहचान रहे होंगे, अपना कोई पक्ष, अपना बयान, अपनी सफाई पेश करना चाहते हैं तो उनका दिल से स्वागत रहेगा. हर व्यक्ति को सफाई देने का मौका मिलना चाहिए. गंभीर से गंभीर आरोपों में फंसे व्यक्ति को भी पूरी बात कहने-रखने का मौका जरूर मिलना चाहिए. यह लोकतंत्र की आत्मा है. यही अभिव्यक्ति की आजादी का दूसरा समानांतर पहिया, दूसरा समानांतर पक्ष है. सो, आरोपी टीवी जर्नलिस्ट महोदय से अनुरोध है कि वे अपना पक्ष भेजें. उनकी इच्चा अगर होगी तो उनके पक्ष को उनके बिना नाम के, उनकी पहचान छुपाकर भी हम लोग प्रकाशित कर सकते हैं.
वैसे भी कहा जाता है कि एक पक्ष को ही कभी सत्य नहीं मानना चाहिए, सत्य के कई पक्ष होते हैं, कई बार सत्य छोटे-छोटे रूपों में महापाप के आरोपों से घिरे लोगों के दिलों में भी बसते दिखते हैं. लड़की के बयान और उसके द्वारा भेजे गए वीडियो के आधार पर ही किसी को फांसी पर नहीं चढ़ाया जा सकता. वह भी तब जब लड़की की तरफ से मेल आना बाकी है, उस जवाबी मेल पर जिसमें भड़ास4मीडिया की ओर से उसकी पहचान पर सवाल खड़े किए गए हैं. कौन सही और कौन गलत, कौन अच्छा और कौन बुरा, यह सब तय करने-कराने का ठेका लोकतंत्र में पुलिस और कोर्ट के पास है. भड़ास4मीडिया ने यहां इस प्रकरण को उठाकर केवल यह बताया है कि पत्रकारिता के नाम पर बह रहे गंदे पानी का प्रवाह कितना तेज हो चुका है. -यशवंत, एडिटर, भड़ास4मीडिया
इस पूरे प्रकरण के बारे में टीवी जर्नलिस्ट महोदय, जो खुद को इन तस्वीरों के जरिए अच्छी तरह पहचान रहे होंगे, अपना कोई पक्ष, अपना बयान, अपनी सफाई पेश करना चाहते हैं तो उनका दिल से स्वागत रहेगा. हर व्यक्ति को सफाई देने का मौका मिलना चाहिए. गंभीर से गंभीर आरोपों में फंसे व्यक्ति को भी पूरी बात कहने-रखने का मौका जरूर मिलना चाहिए. यह लोकतंत्र की आत्मा है. यही अभिव्यक्ति की आजादी का दूसरा समानांतर पहिया, दूसरा समानांतर पक्ष है. सो, आरोपी टीवी जर्नलिस्ट महोदय से अनुरोध है कि वे अपना पक्ष भेजें. उनकी इच्चा अगर होगी तो उनके पक्ष को उनके बिना नाम के, उनकी पहचान छुपाकर भी हम लोग प्रकाशित कर सकते हैं.
वैसे भी कहा जाता है कि एक पक्ष को ही कभी सत्य नहीं मानना चाहिए, सत्य के कई पक्ष होते हैं, कई बार सत्य छोटे-छोटे रूपों में महापाप के आरोपों से घिरे लोगों के दिलों में भी बसते दिखते हैं. लड़की के बयान और उसके द्वारा भेजे गए वीडियो के आधार पर ही किसी को फांसी पर नहीं चढ़ाया जा सकता. वह भी तब जब लड़की की तरफ से मेल आना बाकी है, उस जवाबी मेल पर जिसमें भड़ास4मीडिया की ओर से उसकी पहचान पर सवाल खड़े किए गए हैं. कौन सही और कौन गलत, कौन अच्छा और कौन बुरा, यह सब तय करने-कराने का ठेका लोकतंत्र में पुलिस और कोर्ट के पास है. भड़ास4मीडिया ने यहां इस प्रकरण को उठाकर केवल यह बताया है कि पत्रकारिता के नाम पर बह रहे गंदे पानी का प्रवाह कितना तेज हो चुका है. -यशवंत, एडिटर, भड़ास4मीडिया
आभार - भड़ास ४ मीडिया .कॉम
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