निरंजन परिहार
डेटलाइन इंडियामुंबई, 26 नवंबर- भारत सरकार सहारा समूह के पीछे हाथ धो कर पड़ गई है और इसका एक बड़ा कारण यह माना जा रहा है कि सुब्रत राय के बहाने मनमोहन सिंह सरकार मुलायम सिंह यादव को सीख देना चाहती है। दिक्कत सहारा समूह के सामने बड़ी है क्योंकि अगर उसे हजारो करोड़ रुपए निवेशकों को एक साथ वापस करने पड़े तो उसका दीवाला निकल जाएगा। सहारा समूह के पास अपार संपत्तियां हैं मगर लोगों की बचत को निवेश में बदलने का कारोबार करने वाले इस समूह में नकदी पास रखने का बहुत प्रावधान नहीं है। सरकार का आदेश मिला तो लिया गया निवेश नकद ही वापस करना पड़ेगा और ऐसे में सहारा को शायद अपनी संपत्तियां औने पौने दामों पर बेचनी पडे। हाल ही में कई बड़े निवेश कर के कई कंपनियों को अपने खाते में लाने वाले सहारा समूह को यह फैसला बहुत भारी पड़ेगा। बाजार नियामक सेबी ने नियमों की अनदेखी करते हुए हजारों करोड़ रुपये जुटाने के लिए सहारा ग्रुप की कड़ी आलोचना की है। भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड सेबी, ने इस बारे सहारा ग्रुप की दो कंपनियों तथा इसके प्रमुख सुब्रत राय के तर्कों को खारिज करते हुए उनके खिलाफ अगले आदेश तक जनता से पैसा जुटाने पर पाबंदी लगा दी है। राय और उनके समूह की इन कंपनियों ने दलील दी थी कि उनका डिबेंचर निर्गम ओएफसीडी, के जरिए धन जुटाना सेबी के अधिकार क्षेत्र में नहीं आता। इसके साथ ही सेबी ने अपना अंतरिम आदेश कंपनी मामलात मंत्रालय के पास भेज दिया है ताकि वह ग्रुप की दो कंपनियों द्वारा कंपनी कानून के कतिपय उल्लंघन पर उचित कदम उठा सके। वहीं सहारा ग्रुप के प्रवक्ता ने सेबी के कदम को गलत करार दिया है। उन्होंने सहारा इंडिया रियल इस्टेट कारपोरेशन तथा सहारा हाउसिंग इन्वेस्टमेंट कारपोरेशन द्वारा 40,000 करोड़ रुपये जुटाए जाने के प्रयासों पर सेबी के सवालों को अनुचित बताया है। सहारा ग्रुप के प्रवक्ता ने एक बयान में पूर्व मुख्य न्यायाधीश ए एम अहमदी तथा सी अच्युतन, प्रतिभूति अपीली प्राधिकार के पीठासीन अधिकारियों तथा अन्य विधिवेत्तााओं की सलाहों का हवाला देते हुए कहा कि इन सबकी राय के अनुसार यह मामला सेबी के अधिकार क्षेत्र में नहीं आता। यह आदेश अनुचित तथा मनमाना है। सेबी का कहना है कि दोनों कंपनियां पूरीतरह शेयरों में परिवर्तित किए जाने के विकल्प वाले ऋण पत्रों ओएफसीडीरू के माध्यम से ख्40,000, करोड़ रुपये जुटाने जा रही थीं जबकि 2009-10 को समाप्त दो साल के दौरान 60 कंपनियों ने ही कुल मिलाकर पूंजी बाजर से केवल 27,000 करोड़ रुपये जुटाए थे। इसमें कहा गया है कि यह निश्चित रूप से एक ऐसा मामला है जिसमें निवेशकों के हितों को ध्यान में रखते हुए कारपोरेट का घूंघट उठाना और धन का आग्रह कर रहे व्यक्तियों की पहचान करना जरूरी है। यह मामला तब सामने आया जब सेबी सहारा प्राइम सिटी के प्रस्तावित प्रथम सार्वजनिक निर्गम ख्आईपीओ, के प्रस्ताव के मसौदे को लेकर कुछ कुछ शिकायतों पर गौर कर रहा था। इन शिकायतों में कहा गया था कि मसौदे में समूह की इन इन दोनों कंपनियों द्वार जुटाए जा रहे धन का उल्लेख नहीं किया गया है।
डेटलाइन इंडियामुंबई, 26 नवंबर- भारत सरकार सहारा समूह के पीछे हाथ धो कर पड़ गई है और इसका एक बड़ा कारण यह माना जा रहा है कि सुब्रत राय के बहाने मनमोहन सिंह सरकार मुलायम सिंह यादव को सीख देना चाहती है। दिक्कत सहारा समूह के सामने बड़ी है क्योंकि अगर उसे हजारो करोड़ रुपए निवेशकों को एक साथ वापस करने पड़े तो उसका दीवाला निकल जाएगा। सहारा समूह के पास अपार संपत्तियां हैं मगर लोगों की बचत को निवेश में बदलने का कारोबार करने वाले इस समूह में नकदी पास रखने का बहुत प्रावधान नहीं है। सरकार का आदेश मिला तो लिया गया निवेश नकद ही वापस करना पड़ेगा और ऐसे में सहारा को शायद अपनी संपत्तियां औने पौने दामों पर बेचनी पडे। हाल ही में कई बड़े निवेश कर के कई कंपनियों को अपने खाते में लाने वाले सहारा समूह को यह फैसला बहुत भारी पड़ेगा। बाजार नियामक सेबी ने नियमों की अनदेखी करते हुए हजारों करोड़ रुपये जुटाने के लिए सहारा ग्रुप की कड़ी आलोचना की है। भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड सेबी, ने इस बारे सहारा ग्रुप की दो कंपनियों तथा इसके प्रमुख सुब्रत राय के तर्कों को खारिज करते हुए उनके खिलाफ अगले आदेश तक जनता से पैसा जुटाने पर पाबंदी लगा दी है। राय और उनके समूह की इन कंपनियों ने दलील दी थी कि उनका डिबेंचर निर्गम ओएफसीडी, के जरिए धन जुटाना सेबी के अधिकार क्षेत्र में नहीं आता। इसके साथ ही सेबी ने अपना अंतरिम आदेश कंपनी मामलात मंत्रालय के पास भेज दिया है ताकि वह ग्रुप की दो कंपनियों द्वारा कंपनी कानून के कतिपय उल्लंघन पर उचित कदम उठा सके। वहीं सहारा ग्रुप के प्रवक्ता ने सेबी के कदम को गलत करार दिया है। उन्होंने सहारा इंडिया रियल इस्टेट कारपोरेशन तथा सहारा हाउसिंग इन्वेस्टमेंट कारपोरेशन द्वारा 40,000 करोड़ रुपये जुटाए जाने के प्रयासों पर सेबी के सवालों को अनुचित बताया है। सहारा ग्रुप के प्रवक्ता ने एक बयान में पूर्व मुख्य न्यायाधीश ए एम अहमदी तथा सी अच्युतन, प्रतिभूति अपीली प्राधिकार के पीठासीन अधिकारियों तथा अन्य विधिवेत्तााओं की सलाहों का हवाला देते हुए कहा कि इन सबकी राय के अनुसार यह मामला सेबी के अधिकार क्षेत्र में नहीं आता। यह आदेश अनुचित तथा मनमाना है। सेबी का कहना है कि दोनों कंपनियां पूरीतरह शेयरों में परिवर्तित किए जाने के विकल्प वाले ऋण पत्रों ओएफसीडीरू के माध्यम से ख्40,000, करोड़ रुपये जुटाने जा रही थीं जबकि 2009-10 को समाप्त दो साल के दौरान 60 कंपनियों ने ही कुल मिलाकर पूंजी बाजर से केवल 27,000 करोड़ रुपये जुटाए थे। इसमें कहा गया है कि यह निश्चित रूप से एक ऐसा मामला है जिसमें निवेशकों के हितों को ध्यान में रखते हुए कारपोरेट का घूंघट उठाना और धन का आग्रह कर रहे व्यक्तियों की पहचान करना जरूरी है। यह मामला तब सामने आया जब सेबी सहारा प्राइम सिटी के प्रस्तावित प्रथम सार्वजनिक निर्गम ख्आईपीओ, के प्रस्ताव के मसौदे को लेकर कुछ कुछ शिकायतों पर गौर कर रहा था। इन शिकायतों में कहा गया था कि मसौदे में समूह की इन इन दोनों कंपनियों द्वार जुटाए जा रहे धन का उल्लेख नहीं किया गया है।
Sabhaar : http://www.datelinedia.com/
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