आज एक मित्र बता रहे थे कि फेसबुक पर कभी अपनी भाषा और स्टेटस की वजह से चर्चा में रहे दिलीप मंडल जी 'इण्डिया टुडे' की नौकरी पाने के साथ पूरे तौर पर ईमानदार सम्पादक हो गए हैं. अब वे फेसबुक पर शाकाहारी बातें ही लिखते हैं. कहाँ गया दिलीप मंडल जी का आन्दोलन और कहाँ गए उनके सभी साथी?
यदि आप दिलीपजी के पुराने फेसबुक प्रोफाइल के डीलीट हो जाने के बाद, उनके नए फेसबुक अकाउंट 'दिलीप सी मंडल' की मित्रता सूची में शामिल हैं तो मेरी बात से सहमत भी होंगे... आज उनकी याद आने की एक वजह यह भी है कि उनके फेसबुक आह्वान की वजह से मैंने अब तक ''आरक्षण'' फिल्म देखी नहीं है, इस रविवार को एक टीवी चैनल पर यह फिल्म आने वाली है, अब देखूंगा!
दिलीप मंडल नहीं...डिलीट मंडल कहें आशु...दरअसल मुस्लिमों और दलितों का दुर्भाग्य ये ही रहा है...कि उन्होंने जिन पर विश्वास किया...वो उनके ही दलाल साबित हुए...दिलीप मंडल अपवाद नहीं हैं...उदित राज...इमाम बुखारी... और न जाने कौन कौन...वैसे कभी उनकी फेसबुक प्रोफाइल को ग़ौर से देखिएगा...उनकी रुचि अब इंडिया अगेन्स्ट करप्शन में भी है...जिसे पानी पी पी कर गरियाते थे...मैं जानता ता कि ये आदमी बड़ा नाटक कर रहा है...कई दोस्तों को समझाता था...हालांकि कई मामलों पर इस शख्स की बातें सही लगने पर साथ भी खड़ा हुआ...लेकिन वहीं हुआ जिसका शक था...इस बार तो नितीश पर कवर स्टोरी है साहब... दिलीप मंडल...आपने सही कहा था..शक करना युगधर्म है...और आपके सारे फौलोवर्स आपकी इस बात के गूढ़ निहितार्थ समझ नहीं पाए...और आप पर शक नहीं किया...
Sabhar:- Bhadas4media.com
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