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Nandita Mahtani hosts a birthday party for Tusshar Kapoor

http://www.sakshatkar.com/2017/11/nandita-mahtani-hosts-birthday-party.html

- मैं एमपी का आदमी, ट्रेन यूपी से गुजरी तो 'गैंग' ने आतंकित किया




मुझे फक्र है भूमिका राय के लिए यशवंतजी द्वारा निभाई एक पत्रकार की सच्ची भूमिका पर. दरअसल, ऐसा उत्तर प्रदेश से गुजरने वाली ट्रेनों में हर पांचवे यात्री के साथ होता है... ये बीते साल की बात है जब मैं अपने पूरे परिवार के साथ उज्जैन से देहरादून उज्जयिनी एक्सप्रेस से जा रहा था. मध्यप्रदेश का सफर आसानी से गुजरा, मगर न जाने क्यों यूपी आते—आते हमारे डिब्बे में जरा हलचल बढ गई.
मैंने सामने वाली सीट पर बैठे अंकल से पूछा तो बोले यहां बदमाश लोग चढ जाते हैं बेटा, चौड़े होकर बैठ जाओ, वरना जरा जगह देखी नहीं कि तुम्हारी ही सीट पर तुम्हें कोने में कर देंगे. मैं इस तरह के बर्ताव से वाकिफ नहीं था, लिहाजा लगा कि दद्दू बस यूं ही कह रहे हैं...ऐसा थोड़े ही हो सकता है...
मगर थोडी देर बाद जब ट्रेन मुजफ्फरनगर पहुंची तो वाकई वैसा ही हुआ...धड़ल्ले से कई सारे लोग हमारे कोच में घुसे और लगभग सबको ही इधर-उधर धकेलकर पसरने लगे... उन्हें बैठा लेना कोई गुनाह नहीं था और अगर वे सामान्य रूप से खडे भी रहते तो शायद हम ही बैठने के लिए कह देते...मगर वे तो गुंडई पर उतर आए...
सामने वाले अंकल पहले ही सिकुड—मुकुड कर बैठ गए और भीड में से दो दुबलों को अपनी सीट पर ठंसा लिया ताकि कोई मोटा उन्हें परेशान न करे... मेरी सीट पर भी दो आ ठंसे; मैं उनके बैठने पर आपत्ति जताना तो वैसे भी नहीं चाहता था लेकिन सब यात्रियों से किए जा रहे उनके व्यवहार पर नाराजगी जताई तो वे मुझसे भिड गए... कहने लगे, बचुआ टिकट ही तो लिया है, का ट्रेन को खरीद लिये हो...
मेरे प्रतिरोध ने उन सबका फोकस मेरी ओर कर दिया; शायद वे अपने अप—डाउन का समय काटने के लिए रोज ही किसी से उलझने का रुख लेकर डिब्बे में चढते होंगे, तभी तो भद्दे शब्दों में लगभग सभी बडबडाने लगे... मेरे साथ पूरा परिवार, बच्चे, भाभी...सब थे, लिहाजा मेरा चुप रहना ज्यादा श्रेयस्कर था...
...लेकिन चुप रहना मुझे भीतर ही भीतर सालता रहा...आखिरकार पंद्रह—बीस मिनट तक कायराना समझदारी दिखाकर चुप रहने और गलत के खिलाफ परिणाम की परवाह किए बिना विरोध करने का अंर्तद्वंद्व चलता रहा... ​फिर मैं उठा और दूसरे डिब्बों में रेलवे पुलिस या टीसी को खोजने लगा, पुलिसवाले मिले तो उन्हें शिकायत की...शुरुआती टालमटोल के बाद वे यह बताने पर कि मैं पत्रकार हूं, वे साथ चलने को राजी हुए...
संयोग से उनके साथ टीसी भी था... पुलिस और टीसी ने हमारे डिब्बे में आकर उन गुंडे टाइप के लोगों को हडकाने की बजाय टिकट जांचने की खानापूर्ति शुरू कर दी... खैर, मैं जो चाहता था वह काम तो उनकी इस कायराना ड्यूटी से भी हो गया...दरअसल उन गुंडे टाइप के लोगों अधिकांश बेटिकट थे, इसलिए कुछ तो टीसी को देखते ही अगले डिब्बे में पहुंच गए जबकि कुछ को टीसी और पुलिस वालों ने खुद निकाल दिया... आखिरकार हमने राहत की सांस ली, मगर ये वाकया यूपी से गुजरकर किए जाने वाले सफर के प्रति घृणा के घाव दे गया... लगा, यूपी में घुसते ही ट्रेन में मनुष्य नहीं, गैंग आपरेट करते हैं. इस गैंग के आतंक का शिकार मैं भी हुआ. सच है, इन गैंग्स का खात्मा किया जाना चाहिए.
ईश्वर शर्मा
न्यूज एडिटर
राज एक्सप्रेस
भोपाल
साभार:- भड़ास ४ मीडिया.कॉम 

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