भारतीय समय के मुताबिक, सुबह के पांच बजे जब मुझे लंदन के मेरे एक दोस्त ने मोबाइल की घंटी बजाकर जगाया.. सूचना दी कि ‘जैकी, देव साहब नहीं रहे!’ सच कहूं, मैं तब एकदम ब्लैंक हो गया। मुझे लगा कि आंखों के सामने अंधेरा छा गया है। उस व़क्त मुझे यही लगा, मानो मेरी पूरी दुनिया वहीं ख़त्म हो गई।
कुछ देर बाद वे तमाम किस्से-कहानियां और घटनाक्रम मेरी आंखों के सामने डूबने-उतराने लगे, जो देव साहब से जुड़े हुए थे। मेरी देव साहब से पहली मुलाकात उन्हीं के बेटे सुनील ने करवाई थी। दरअसल, हम दोनों एक ही साथ एक्टिंग की ट्रेनिंग लिया करते थे तो सुनील और मेरे बीच गहरी दोस्ती हो गई थी। सुनील ने जब मुझे देव साहब से मिलाने का वादा भर किया था, मेरी ख़ुशी का ठिकाना नहीं था।
मैं मन ही मन कल्पना करने लगा था कि मेरे बचपन का हीरो (देव आनंद) असल जिंदगी में ऐसे होंगे.. वैसे होंगे। लेकिन सुनील ने मिलाया तो मैं हैरान रह गया- बाप रे, इतना बड़ा हीरो और इतना ज़मीनी! देव साहब को देखते ही मेरी आंखें चौंधिया गई थीं, फिर भी मुझे सहज करने की गरज से उन्होंने कहा- ‘मैंने तुम्हारी तस्वीर देखी है.. तुम बिल्कुल मावरे मैन लगते हो-मार्वलस! मैं तुम्हें अपनी अगली फ़िल्म में ब्रेक दे रहा हूं।’
देव साहब के मुंह से अपनी तारीफ सुनकर मैं झेंप गया था। लेकिन हकीकत यह है कि उन्होंने ‘स्वामी दादा’ से मुझे हीरो बना दिया! कम शब्दों में कहूं तो मेरे दिल में उनके लिए हमेशा एक अलग जगह थी, है और रहेगी। वह मुझे जिस तरह की सीख देकर गए हैं, वह भी मेरी धरोहर है।
देव साहब मुझे आध्यात्मिक मित्र कहकर बुलाते थे। ऐसे ही कुछ यादगार पत्रों को मैंने संजो रखा है, जहां उन्होंने मुझे स्प्रिच्युअल फ्रेंड के तौर पर संबोधित किया है। मैं कहीं भी रहूं, ह़फ्ते के बीच में कम से कम एक बार उनसे बात ज़रूर कर लेता था।
वह भी मुझे बहुत प्यार करते थे। मुझे आवाज देते समय देव साहब मेरा नाम तीन बार लेते थे- जैकी, जैकी, जैकी। यह मैं हमेशा मिस करूंगा। देव साहब की सबसे बड़ी ख़ासियत यह थी कि वह सामने वाले को हमेशा नाम से पुकारते थे, ऐसा वह अपनापन जताने के लिए करते थे। यूं देव साहब का प्यार ही था, जो अपने माता-पिता के दुनिया छोड़ जाने के बाद मुझे उनके इतना क़रीब ला दिया था। वह मेरे दिल में ज़िंदा रहेंगे और मैं उनकी आत्मा के क़रीब ज़रूर होऊंगा।
Sabhar:- Bhaskar.com
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