नैनीताल से प्रयाग पाण्डे
नैनीताल-उत्तराखण्ड के विधानसभा चुनाव में अबकी भारतीय जनता पार्टी का मुख्य चुनावी नारा था - खंडूरी हैं- जरूरी। पार्टी ने इसी नारे के बूते चुनाव लडा। अन्दरूनी और बाहरी वजहों के चलते बेशक खंडूरी कोटद्वार में खुद का चुनाव हार गये । पर उत्तराखण्ड में इस नारे ने भाजपा के लिए संजीवनी का काम किया है। खंडूरी हैं- जरूरी का ही करिश्मा है कि महज छह महीने पहले तक उत्तराखण्ड के भीतर हताश और निराश नजर आ रही भाजपा को अनेक व्यावहारिक चुनौतियो के बावजूद इस चुनाव में काग्रेस के बाजू में लाकर खडा कर दिया। प्रदेश के दूसरे नेताओ के मुकाबले खंडूरी की ईमानदार छवि और मेहनत का ही नतीजा है कि चुनाव नतीजे आने के बाद भाजपा की जीत का आंकडा काग्रेस के बराबर नजर आ रहा है। इसमे कोई दो राय नही कि अगर खण्डूडी नही होते तो इस चुनाव में उत्तराखण्ड के भीतर भाजपा पस्त नजर आती । जनरल खंडूरी ने एक बेहतरीन कमान्डर के तौर पर खुद की सीट की परवाह किये बिना भाजपा को जीत के मुंहाने तक ला खडा कर दिया है।
यह सच है कि सत्ता विरोधी रूझान के वावजूद अगर आज भाजपा महज एक सीट और एक फीसदी कम वोट पाकर काग्रेस के करीब खडी है, तो इसमे खंडूरी हैं- जरूरी नारे का बडा योगदान है। एकदम विपरित सियासी हालातो के बाद भी उत्तराखण्ड में भाजपा ने काग्रेस से एक कम 31 सीटों पर जीत हासिल की हैै। पार्टी की इस जीत के पीछे पार्टी का विस्तृत और मजबूत सांगठनिक आधार और कार्यकर्ताओ के समर्पित वर्ग की मेहनत के साथ खण्डूडी की छवि और समर्पण भी एक बडी वजह है।
राजनीति में बेशक खंडूरी आदर्श नही हैं। उनके रहते उत्तराखण्ड ने कोई काबिले तारीफ उपलब्धिया भी हासिल नही की है। मुख्यमंत्री रहतें खंडूरी के काम-काज से उत्तराखण्ड की दशा और दिशा में क्रंातिकारी बदलाव नही हुए। उत्तराखण्ड कल भी बदहाल था और आज भी है। इस सबके वावजूद उत्तराखण्ड की आवाम की नजर मे राज्य के दूसरे नेताओ के मुकाबले खंडूरी का चाल, चरित्र और चेहरा ज्यादा उजला और चमकदार है। खण्डूडी की इसी छवि ने उत्तराखण्ड में भाजपा को संभावित शर्मनाक हार से बचाया । राज्य के उधमसिंह नगर जिले कि तराई समेत कई इलाको में खंडूरी हैं- जरूरी नारा सिर चढकर बोला ।
खंडूरी ने अपनी दूसरी पारी के छोटे से कार्यकाल में एक साथ कई मोर्चो को फतह किया। इस दौरान उन्होने भाजपा के राज की कारगुजारियो से उपजे गुस्से को शान्त करने के लिये कई अच्छे फैसले लिए। राज्य के लोगो में नई उम्मीदें जगाई। वे भाजपा को बचाव की मुद्रा से बाहर निकाल कर लाए । पार्टी को आक्रमक तरीके से चुनाव मैदान में उतारा। पार्टी को जीत दिलाने के लिए प्रदेश भर में तूफानी दौरे किए। दुर्भाग्य से उन्हें खुद की कोटद्वार सीट में विरोधी दलो के साथ अपनों से भी छाया युद्ध करना पडा। पार्टी को वैतरणी पार कराते खुद जनरल भंवर में जा फंसे ।
इस मर्तबा उत्तराखण्ड की चुनावी फ़िज़ा भाजपा के खिलाफ थी । भाजपा के सात केबिनेट मंत्री चुनाव लडे। जिसमें से चार केबिनेट मंत्री. प्रकाश पन्त,मातवर सिह कंडारी, त्रिवेन्द्र सिंह रावत और बलवंत सिह भौर्याल चुनाव हार गए। भाजपा के दिग्गज पूर्व मुख्यमंत्री भगत सिह कोश्यारी के चुनाव क्षेत्र कपकोट से एकदम नए चेहरे ने भाजपा के केबिनेट मंत्री को मात दे दी। भाजपा के प्रदेश अघ्यक्ष बिशन सिंह चुफाल अपने घर पिथौरागढ जिले में बमुश्किल अपनी सीट बचा पाए। जिले की बाकी तीन सीटें काग्रेस की झोली में टपक गई। इन प्रतिकूल परिस्थितियो के बावजूद जनरल खंडूरी ने भाजपा को सम्मानजनक स्थिति में पहुंचाया। खण्डूडी ने 32 सीटें पा कर विधानसभा के भीतर सबसे बडी सियासी पार्टी बनी काग्रेस को दिल खोलकर जश्न मनाने तक का मैाका नही दिया ।
चुनावी हार-जीत से किसी शख्स की प्रासंगिकता कम नही हो जाती है। राजनीति की मौजूदा जमात मे, जहां सियासी शुचिता अर्थहीन हो चुकी हो ,भ्रष्ट नेताओ के मुकाबले अपेक्षाकृत ईमानदार छवि के नेताओ का सियासत में होना जरूरी है। आज भी और कल भी ।
नैनीताल-उत्तराखण्ड के विधानसभा चुनाव में अबकी भारतीय जनता पार्टी का मुख्य चुनावी नारा था - खंडूरी हैं- जरूरी। पार्टी ने इसी नारे के बूते चुनाव लडा। अन्दरूनी और बाहरी वजहों के चलते बेशक खंडूरी कोटद्वार में खुद का चुनाव हार गये । पर उत्तराखण्ड में इस नारे ने भाजपा के लिए संजीवनी का काम किया है। खंडूरी हैं- जरूरी का ही करिश्मा है कि महज छह महीने पहले तक उत्तराखण्ड के भीतर हताश और निराश नजर आ रही भाजपा को अनेक व्यावहारिक चुनौतियो के बावजूद इस चुनाव में काग्रेस के बाजू में लाकर खडा कर दिया। प्रदेश के दूसरे नेताओ के मुकाबले खंडूरी की ईमानदार छवि और मेहनत का ही नतीजा है कि चुनाव नतीजे आने के बाद भाजपा की जीत का आंकडा काग्रेस के बराबर नजर आ रहा है। इसमे कोई दो राय नही कि अगर खण्डूडी नही होते तो इस चुनाव में उत्तराखण्ड के भीतर भाजपा पस्त नजर आती । जनरल खंडूरी ने एक बेहतरीन कमान्डर के तौर पर खुद की सीट की परवाह किये बिना भाजपा को जीत के मुंहाने तक ला खडा कर दिया है।
यह सच है कि सत्ता विरोधी रूझान के वावजूद अगर आज भाजपा महज एक सीट और एक फीसदी कम वोट पाकर काग्रेस के करीब खडी है, तो इसमे खंडूरी हैं- जरूरी नारे का बडा योगदान है। एकदम विपरित सियासी हालातो के बाद भी उत्तराखण्ड में भाजपा ने काग्रेस से एक कम 31 सीटों पर जीत हासिल की हैै। पार्टी की इस जीत के पीछे पार्टी का विस्तृत और मजबूत सांगठनिक आधार और कार्यकर्ताओ के समर्पित वर्ग की मेहनत के साथ खण्डूडी की छवि और समर्पण भी एक बडी वजह है।
राजनीति में बेशक खंडूरी आदर्श नही हैं। उनके रहते उत्तराखण्ड ने कोई काबिले तारीफ उपलब्धिया भी हासिल नही की है। मुख्यमंत्री रहतें खंडूरी के काम-काज से उत्तराखण्ड की दशा और दिशा में क्रंातिकारी बदलाव नही हुए। उत्तराखण्ड कल भी बदहाल था और आज भी है। इस सबके वावजूद उत्तराखण्ड की आवाम की नजर मे राज्य के दूसरे नेताओ के मुकाबले खंडूरी का चाल, चरित्र और चेहरा ज्यादा उजला और चमकदार है। खण्डूडी की इसी छवि ने उत्तराखण्ड में भाजपा को संभावित शर्मनाक हार से बचाया । राज्य के उधमसिंह नगर जिले कि तराई समेत कई इलाको में खंडूरी हैं- जरूरी नारा सिर चढकर बोला ।
खंडूरी ने अपनी दूसरी पारी के छोटे से कार्यकाल में एक साथ कई मोर्चो को फतह किया। इस दौरान उन्होने भाजपा के राज की कारगुजारियो से उपजे गुस्से को शान्त करने के लिये कई अच्छे फैसले लिए। राज्य के लोगो में नई उम्मीदें जगाई। वे भाजपा को बचाव की मुद्रा से बाहर निकाल कर लाए । पार्टी को आक्रमक तरीके से चुनाव मैदान में उतारा। पार्टी को जीत दिलाने के लिए प्रदेश भर में तूफानी दौरे किए। दुर्भाग्य से उन्हें खुद की कोटद्वार सीट में विरोधी दलो के साथ अपनों से भी छाया युद्ध करना पडा। पार्टी को वैतरणी पार कराते खुद जनरल भंवर में जा फंसे ।
इस मर्तबा उत्तराखण्ड की चुनावी फ़िज़ा भाजपा के खिलाफ थी । भाजपा के सात केबिनेट मंत्री चुनाव लडे। जिसमें से चार केबिनेट मंत्री. प्रकाश पन्त,मातवर सिह कंडारी, त्रिवेन्द्र सिंह रावत और बलवंत सिह भौर्याल चुनाव हार गए। भाजपा के दिग्गज पूर्व मुख्यमंत्री भगत सिह कोश्यारी के चुनाव क्षेत्र कपकोट से एकदम नए चेहरे ने भाजपा के केबिनेट मंत्री को मात दे दी। भाजपा के प्रदेश अघ्यक्ष बिशन सिंह चुफाल अपने घर पिथौरागढ जिले में बमुश्किल अपनी सीट बचा पाए। जिले की बाकी तीन सीटें काग्रेस की झोली में टपक गई। इन प्रतिकूल परिस्थितियो के बावजूद जनरल खंडूरी ने भाजपा को सम्मानजनक स्थिति में पहुंचाया। खण्डूडी ने 32 सीटें पा कर विधानसभा के भीतर सबसे बडी सियासी पार्टी बनी काग्रेस को दिल खोलकर जश्न मनाने तक का मैाका नही दिया ।
चुनावी हार-जीत से किसी शख्स की प्रासंगिकता कम नही हो जाती है। राजनीति की मौजूदा जमात मे, जहां सियासी शुचिता अर्थहीन हो चुकी हो ,भ्रष्ट नेताओ के मुकाबले अपेक्षाकृत ईमानदार छवि के नेताओ का सियासत में होना जरूरी है। आज भी और कल भी ।
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