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Nandita Mahtani hosts a birthday party for Tusshar Kapoor

http://www.sakshatkar.com/2017/11/nandita-mahtani-hosts-birthday-party.html

पी7 ने ऑफर लेटर दिया, लेकिन ज्‍वाइनिंग नहीं दी

पी7 में माना जा रहा है कि ज्योति नारायण मामले का पटाक्षेप हो गया है और हालात ठीक होते जा रहे हैं। लेकिन यह सिर्फ ऊपरी तौर पर ठीक दिख रहा है। कंपनी के मीडिया बिजनेस को अब समर प्रताप सिंह संभाल रहे हैं और उनके साथ दूसरे निदेशक केसर सिंह भूमिका निभा रहे हैं। पी7 के एचआर प्रमुख की भूमिका निभा रहे पी दत्ता के अधिकार भी कम कर दिये गये हैं। उनकी जगह पर्ल ग्रुप के ग्रुप एचआर प्रमुख विधुशेखर पूरी जिम्मेदारियां निभा रहे हैं।
प्रबंधन की आपसी लड़ाई का खामियाजा कुछ पत्रकार भी भुगत रहे हैं। इनकी कमी यह है कि उनका इंटरव्यू और सेलेक्शन ज्योति नारायण ने किया था। इसके बाद बाकायदा उन्हें ऑफर लेटर भी दिये गये। उनमें से तीन-चार को 17 मई को पी7 के दफ्तर बुलाया भी गया। उन्हें सम्मानपूर्वक चाय-पानी भी दिया गया। कंपनी की ओर से कर्मचारी को ज्वाइनिंग के वक्त भरवाया जाने वाला फॉर्म भी भरवाया गया। इसके बाद सिर्फ औपचारिकता ही रह गयी थी। इसी दौरान विधुशेखर और पी दत्ता ने ज्वाइन करने जा रहे पत्रकारों को एक-एक करके बुलाया और उनसे तीन-चार दिनों का वक्त मांगा और फिर उन्हें बाहर जाने को कह दिया गया। ये सभी पत्रकार अपने दफ्तरों से इस्तीफे देकर आये थे। उनमें से एक राजेश रंजन का नाम पता चला है। जो बीएजी फिल्म्स के चैनल न्यूज 24 में थे। दूसरे-तीसरे पत्रकार का नाम पता नहीं चल पाया है। तब से राजेश समेत सभी पत्रकार बेरोजगार हैं।
अंदरखाने की खबर यह है कि इन पत्रकारों का ऑफर लेटर होल्ड कर दिया गया है, लेकिन उन्हें न तो ज्वाइन कराया जा रहा है और न ही उनका ऑफर लेटर खारिज किया गया है। पता चला है कि ऑफर लेटर देकर ज्वाइन न कराना या फिर उसे कैंसिल नहीं करने को लेकर इनमें से एक पत्रकार ने तो बाकायदा वकीलों से सलाह-मशविरा करना शुरू कर दिया है। अगर इन पत्रकारों ने हिम्मत दिखायी तो हो पी7 को जवाब देना मुश्किल पड़ सकता है। इन पत्रकारों को पता भी नहीं है कि आखिर उन्हें किस गलती की सजा मिल रही है।
अंदरखाने से आ रही खबरों के मुताबिक पी7 में सत्ता संघर्ष थमा नहीं है। हालांकि प्रबंधन संभाल रहे नये लोगों ने वरिष्ठ पत्रकार राकेश शुक्ला को ज्वाइन कराया है। तकरीबन हर विभाग को पत्रकार चाहिए। लेकिन मूंछ की लड़ाई में हर विभाग अपेक्षा से कहीं कम संख्या के लोगों के साथ ही काम करने को मजबूर है।

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