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Nandita Mahtani hosts a birthday party for Tusshar Kapoor

http://www.sakshatkar.com/2017/11/nandita-mahtani-hosts-birthday-party.html

पत्रकारिता या दलालीकारिता

चौथा स्तंभ माने जाने वाले मीडिया का जो स्वरूप अब देखने को मिलता है उससे लगता है अब ये पेशा सिर्फ उन लोगों के लिये है जो कम पढ़े लिखे हैं और उनको कोई अन्य काम नहीं मिलता. ऐसे लोगों का सोचना ये है कि किसी तरह से पत्रकार बन जाओ, फिर जेब गर्म ही गर्म. दिल्ली और नोएडा से प्रसारित होने वाले ज्यादातर न्यूज चैनल्स में सेलरी पर कार्य करने वाले रिपोर्टर्स को छोड़ कर जिले स्तर पर काम वाले जितने भी स्ट्रिंगर रखे जाते हैं, ज्यादातर की न तो कोई शैक्षिक योग्यता होती है और ना ही उन्हें पत्रकारिता का कोई अनुभव होता है.
जिले स्तर पर कार्य करने वाले स्ट्रिंगरों द्वारा क्या-क्या होता है, ये किसी से छुपा हुआ नहीं है. जिस भी चैनल में जो स्ट्रिंगर होता है, वो अपने आप को चैनल हैड से कमतर नापने को तैयार नहीं है. वो कम से कम दो कैमरामैन अपने साथ रखता है. दलाली इनका मुख्य पेशा होता है. इसी से ये अपने कैमरामैन की सेलरी निकालते हैं. इसी से ही चलती है इनकी एशो-आराम की दुकान. खबर से इनका कोई लेना-देना नहीं हो़ता. खबर क्या होती है, इसकी इन्हें कोई जानकारी भी नहीं है. अखबार देख कर ये सभी खबर करते हैं. स्क्रिप्ट लिखना तो इनके लिये बहुत दूर की बात होती है.
बिना पढ़े-लिखे इन लोगों को जब कोई काम नहीं मिलता तो इन्हें टीवी की पत्रकारिता नजर आती है. ये कहीं ना कहीं से जोड़ तोड़ करके नए लांच होने वाले न्यूज चैनलों के पत्रकार बन जाते हैं. कायदे से देखा जाए तो इनके हाथ लगने वाली चैनल आईडी कोई तमाशा करने वाली छड़ी नहीं होती. ये होता है वो हथियार जो जनता की आवाज को बुलंद करता है, समाज में पनप रही गंदगी को उजागर करता है. परंतु दलाल पत्रकारों के लिए ये जरिया है उन लोगों तक पहुंचने का जहां से ये वसूली कर सकें ताकि इनकी दलाली की दुकान पनपती-फलती-फूलती रहे.
ये लोग खबर लेने के नाम पर नेताओं और आधिकारियों के दरवाजे पर रोजाना दस्तक देते देखे जा सकते हैं। अधिकारी-नेता अपनी बचाने और अपनी कमी उजागर होने से रोकने के लिए इन पत्रकारों का सेवा पानी कर दिया करते हैं. इन पत्रकारों को अगर कोई ऐसा मामला हाथ लग जाये जिससे सामने वाले को गर्दन फसती नजर आ रही हो फिर तो इनको मानो कुबेर का खजाना मिल गया हो. उससे सौदेबाजी बड़े स्तर की होती है. अगर किसी मामले में ये खुद भी फंसते नजर आने लगे तो ये खबर दूसरे एंगिल से पेश करने में भी माहिर होते हैं. पत्रकारिता के इस बिगड़ते स्वरूप से जनता का विश्वास मीडिया से उठता जा रहा है. कई बार लगता है कि कहा जाए कि ये पत्रकारिता नहीं, दलालीकारिता है.
साभार- भड़ास ४ मीडिया

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