पुलिसिया कहर का शिकार हर चौथे पत्रकार का परिवार : जबसे मैंने अपने मां के साथ हुए बुरे बर्ताव का प्रकरण उठाया है, मेरे पास दर्जनों ऐसे पत्रकारों के फोन या मेल आ चुके हैं जिनके घरवाले इसी तरह की स्थितियों से दो चार हो चुके हैं. किसी की बहन के साथ पुलिस वाले माफियागिरी दिखा चुके हैं तो किसी के भतीजे के साथ ऐसा हो चुका है. इंदौर से एक वरिष्ठ पत्रकार साथी ने फेसबुक के जरिए भेजे अपने संदेश में लिखा है- ''यशवंत जी, मैं आप के साथ हूं. मेरे भतीजे के साथ भी ऐसा दो बार हो चुका है. मैं आप की पीड़ा समझ सकता हूँ. मैं एक लिंक भेज रहा हूँ, जहाँ मैने आप की ओर से शिकायत की है. सड़क पर मैं आप के साथ हूँ.'' इस मेल से इतना तो पता चलता ही है कि उनके भतीजे पुलिस उत्पीड़न के शिकार हो चुके हैं. अब एक मेल से आई लंबी स्टोरी पढ़ा रहा हूं जिसे लिखा है पंजाब के वरिष्ठ पत्रकार जगमोहन फुटेला ने. फुटेला ने अपने राइटअप का जो शीर्षक दिया है, '' ...तो वो मां, और अब ये बहन हाज़िर हैं...'', उसे ही प्रकाशित किया जा रहा है. जितने फोन संदेश व मेल संदेश आए, उसमें अगर मैं अनुपात निकालता हूं तो मोटामोटी कह सकता हूं कि हर चौथे पत्रकार का परिजन पुलिस उत्पीड़न का शिकार है. श्रवण शुक्ला वाले मामले से आप पहले से परिचित हैं. अपराधियों की गिरफ्तारी के वक्त श्रवण के भाई को उनके साथ बैठे होने के कारण उस पर इतने मुकदमें पुलिस ने लाद दिए हैं कि श्रवण उन्हें छुड़ाने के लिए जमानतदार तलाश नहीं पा रहे. रुपये पैसे की तंगी के कारण वह फर्जी जमानतदार भी नहीं खरीद पा रहे. क्या होगा इस लोकतंत्र का! ऐसे ही सब चलता रहा तो फिर हर चौथा मीडियाकर्मी परिवार के मान-सम्मान की रक्षा के लिए कानून हाथ में लेने की ओर चल पड़ेगा. -यशवंत, एडिटर, भड़ास4मीडिया
...तो वो मां, और अब ये बहन हाज़िर हैं
- जगमोहन फुटेला -
सरनेम के साथ सिर्फ शहर का नाम लिख देने से चिट्ठी जिसे पहुंच जाती है, पैतीस सालों से मुझे राखी बांध रही मेरी उस बहन के परिवार के साथ भुवनेश्वर पुलिस ने वो किया जिस पर (अगर वो इमानदारी से कह रहे हैं तो) वहां के एक सांसद को भी शर्म आती है. मेरी बहन को भी यशवंत की माँ की तरह सारी रात (अलबत्ता महिला पुलिस) थाने में बिठा के रखा गया. बिना किसी आरोप, घर के किसी सदस्य की मौजूदगी या परिवार को किसी लिखित सूचना के. देवरानी की एक शिकायत पर. शिकायत ये कि उसे दहेज़ के लिए प्रताड़ित किया गया.
चलिए, पहले देवरानी को निबटा लें. देवरानी पंजाब की हैं. पहले कम से कम एक पति से तलाकशुदा हैं. उसे 'छोड़ने' के लिए लाखों रूपये लेने का उसका किस्सा दिल्ली की एक अदालत के रिकार्ड में दर्ज है. रिपोर्ट दर्ज कराने से पहले माँ बाप के साथ वो भुवनेश्वर के एक आलीशान होटल में करीब एक हफ्ता रहीं. उनकी उसके ससुरालियों से बातचीत हुई. इस बातचीत में शामिल हुए लोगों के मुताबिक़ ससुरालियों से एक करोड़ तीस लाख रुपये की मांग की गयी. नहीं देने पर सबक सिखा देने की धमकी के साथ. शादी पे हुआ सवा लाख रूपये का खर्च वो बता रहे हैं, जो पंजाब में चमड़े का छोटा मोटा कारोबार करते हैं, एक छोटे से घर में रहते हैं और जिनकी सालाना आमदनी खुद उनके मुताबिक़ पांच लाख रूपये से ज्यादा नहीं है. बताया तो यहाँ तक गया कि लड़की मानसिक रूप से अस्वस्थ है. इस हद तक कि अपनी एक अपाहिज किशोर वय बेटी की नग्न तस्वीरें उसने खुद अपने लैपटॉप पे डाउनलोड कर रखी हैं और ये भी कि वो बात बात पे मर जाने या मार देने की धमकी देती है. हो सकता है वो निम्न रक्तचाप या उसकी वजह से किसी डिप्रेशन और फिर इस वजह से असुरक्षा की किसी भावना से ग्रस्त हो. पर सवाल है कि ऐसे माहौल में उसकी चिंता कौन करे.
और फिर धमकी पे अमल हो गया. अगर किसी मानवाधिकार संगठन या सीबीआई जैसी किसी संस्था ने जांच की तो पता चलेगा कि रपट दर्ज कराने से पहले प्रदेश के एक बड़े पुलिस अफसर की बीवी से फोनबाज़ी की गयी. या शायद पत्नी के फोन पे सीधे सीधे साहब के साथ. फरमान जारी हो गया. मेरी बहन को भुबनेश्वर की मशहूर मारूफ दूकान से पुलिस सूरज छुपने के बाद ये कह कर बुला ले गयी कि मामला है और सुलटाना है. थाने पहुँचते ही जुबानी कलामी बता दिया गया कि गिरफ्तारी हो चुकी है. ये भी कि पास फटकने वाले भी बख्शे नहीं जायेंगे. पुलिस ने ये कर भी दिखाया. खैर खबर लेने गए उसकी जेठानी के बेटे को भी पुलिस ने धर दबोचा. बेवकूफ पुलिस ने गिरफ्तारी अगली सुबह साढ़े पांच बजे की बताई. कहाँ से?.. नहीं मालूम. किसके सामने?.. ये भी नहीं पता. घर से की तो फर्द पर परिवार के किसी सदस्य के साइन नहीं हैं.
सुबह तक वकील को वकालतनामे पर साइन कराने तक को मिलने नहीं दिया गया. शाम साढ़े पांच पौने छः बजे पेश भी किया तो ऐसे जूनियर जज के घर पर जिसे कि ऐसे किसी मामले में ज़मानत देने का अधिकार ही नहीं था. ज़मानत अगले दिन मिल गयी. खिसियानी पुलिस खम्भे नोचने लगी. उसने संदेशा भिजवाया-परिवार का जो हाथ लगा, लपेटा जाएगा. ज़ाहिर है सब भाग लिए. दुर्गापूजा जैसी दुकानदारी के दौरान दुकान पे अफरातफरी और घरों पे वीरानी सी छा गयी. उधर, सौदेबाजी होने लगी. समझाया गया, वक्त है अभी भी ले दे कर सुलट लो. मुझे खबर हुई. मैं गया. उत्तर भारत के अपने एक सांसद मित्र के ज़रिये वहां के एक प्रभावशाली सांसद से मिला. सच पूछिए तो उनसे मिलने के बाद अपना दुःख जैसे जाता रहा. सांसद महोदय ने बातचीत माननीय सुप्रीम कोर्ट की उस चिंता से शुरू की कि कुछ ब्याहतायें अपने ससुरालियों को मज़ा चखाने के लिए दहेज़ प्रताड़ना क़ानून का गलत इस्तेमाल करने लगी हैं. उनने ये भी बताया कि संसद और सरकार इसे लेकर चिंतित है.
पर उनने जो आगे बताया वो चौंकाने वाला था. उनने बताया कि ऐसा ही एक वाकया खुद उनके बेटे के साथ दक्षिण भारत के किसी सूबे में हो चुका है. उनने पुलिस के ज़ुल्म का वो सारा किस्सा अपनी पूरी पैतृक पीड़ा के साथ सुनाया. उस प्रांत में जहां उनके बेटे को कोई संभालने तो क्या पहचानने वाला भी नहीं था, उन्होंने कैसे हथकंडों से अपने बेटे को बचाया इसका ज़िक्र मैं (जानबूझकर) नहीं करूंगा. गनीमत है कि उनके बेटे के साथ भी वो सब हुआ था. इसका फायदा ये हुआ कि पुलिस का कहर बरपना बंद हो गया. इस बीच मुख्य आरोपी ने अदालत में समर्पण कर दिया. उसे ज़मानत भी मिल गयी.
अपना काम ज्ञान बांचना या न्याय को जांचना नहीं है. तब भी पत्रकारिता पल्ले बांधते समय परमात्मा ने ये तो गुरुओं से कहलवा ही दिया था कि कभी कहीं प्रताड़ना देखो तो उसे व्यवस्था के मद्देनजर ज़रूर कर देना. उसीलिए एक मूल प्रश्न मैं सबके सामने रख देना चाहता हूँ. वो ये कि (गलत या सही) मूल आरोपी के बदले घर के सदस्यों और उनमें भी असहाय महिलाओं को पकड़ के थाने में बिठाने और उन्हें प्रताड़ित करने का बेरोकटोक अख्तियार पुलिस को क्यूं है?.. ज़मानत हो जाने के बाद भी कौन भरपाई करता है उस ज़लालत की जो बेक़सूर रिश्तेदारों की समाज में हो गयी होती है?.. अरे कोई तो एक मिसाल ऐसी भी पेश कर दे कि कोई पुलिसिया किसी मजलूम औरत को पूछताछ की आड़ में नाहक परेशान न कर सके! अगर कोई सत्ता, शासन, संगठन, संस्था या व्यवस्था ये करना चाहे तो यशवंत की माँ और मेरी बहन हाज़िर हैं.
लेखक जगमोहन फुटेला पंजाब के वरिष्ठ पत्रकार हैं.
साभार - भड़ास ४ मीडिया.कॉम
पूरी पुलिस व्यवस्था ही सड़ चुकी है और इसे सड़ाने वाले भडुए किस्म के बदबूदार राजनेता हैं जो इस समय भी मुख्यमंत्री,मंत्री इत्यादि पदों पर विराजमान हैं ..कई इमानदार पुलिस अधिकारी भी इनसे इतना परेशान हैं की उनको अगर कानून भ्रष्टाचारियों का कहीं भी कभी भी एन्काउन्टर करने की इजाजत दे दे तो ये अधिकारी इन देश और समाज के गद्दारों का तुरंत एन्काउन्टर कर दे | पुलिस के व्यवहार को सुधारने के लिए पूरे देश को एकजुट होने की जरूरत है तथा भ्रष्ट पुलिस अधिकारी तथा भ्रष्ट नेताओं के गठजोड़ की हर वक्त पोल खोलने की जरूरत है ...इसके लिए पत्रकारों को भी अपनी जिम्मेवारी जान की परवाह किये वगैर निभानी होगी तथा आपसी मतभेद को जनहित के मुद्दे के सामने नहीं आने देना होगा ...साथ ही इमानदार पुलिस वालों को अपने समाचारों में जगह देकर समाज में सम्मानित करने का भी काम करना होगा ...
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