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Nandita Mahtani hosts a birthday party for Tusshar Kapoor

http://www.sakshatkar.com/2017/11/nandita-mahtani-hosts-birthday-party.html

मीडिया जगत के लिए चुनौतियों भरा साल






मीडिया जगत के लिए वर्ष 2011 बेहद उथलपुथल भरा रहा। भारत में जहां पेड न्यूज के मुद्दे पर विचार के लिए एक मंत्री समूह गठित किया गया और मिडडे के संपादक (स्पेशल इन्वेस्टीगेशन) ज्योतिर्मय डे की हत्या की गई, वहीं ब्रिटेन का सबसे ज्यादा बिकने वाला 168 साल पुराना अखबार न्यूज ऑफ द वर्ल्ड फोन हैकिंग मामले में उलझ कर बंद हो गया। सरकार ने पेड न्यूज के मुद्दे पर संज्ञान लेते हुए इस मामले पर विस्तार से गौर करने के लिए जनवरी में वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी की अध्यक्षता में एक मंत्री समूह गठित किया।

भारतीय प्रेस परिषद के अध्यक्ष मार्कंडेय काटजू के इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के बारे में दिए गए बयान की बेहद चर्चा रही। उन्होंने कहा था कि इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को भी परिषद के दायरे में लाया जाना चाहिये और निकाय को अधिक शक्तियां दी जानी चाहिए। मुंबई में 11 जून को मिडडे में संपादक (स्पेशल इन्वेस्टीगेशन) डे की चार अज्ञात लोगों ने गोली मारकर हत्या कर दी। उन्होंने दो दशक तक अपराध और अंडरवर्ल्ड कवर किया था। डे की हत्या में अंडरवर्ल्ड का हाथ होने की आशंका प्रबल है।

जुलाई में त्रिपुरा सरकार ने अगरतला के एमबीबी कॉलेज क्षेत्र में सुरक्षा बलों और विपक्षी कार्यकर्ताओं के बीच हुए संघर्ष के दौरान 11 छायाकारों पर हुए हमला मामले में मजिस्ट्रेट से जांच के आदेश दे दिये। दुनिया भर में सरकारी एजेंसियों के लिए लोगों की जासूसी का तरजीही माध्यम बनकर उभरी है गूगल सर्च इंजिन साइट। इस कंपनी से लोगों के बारे में जानकारी चाहने वाले देशों में भारत को दूसरे स्थान पर रखा गया वर्ष 2010 में भारत सरकार ने गूगल से विभिन्न तरह के ब्यौरों के लिए 3,000 से अधिक आग्रह किए और गूगल से 100 मामलों में कंटेंट हटाने को भी कहा। हालांकि गूगल ने भारत सरकार के सभी आग्रहों पर काम नहीं किया।

पाकिस्तान में मई के आखिर में एक सप्ताह तक लापता रहे एशिया टाइम्स ऑनलाइन के पाकिस्तान ब्यूरो चीफ सैय्यद सलीम शहजाद का शव 31 मई को पंजाब प्रांत से बरामद किया गया। उनके शरीर पर घाव के निशान पाए गए। लापता होने से एक दिन पहले शहजाद ने कराची में नौसेना के ठिकाने पर हमले के बारे में एक लेख लिखा था। इसमें उन्होंने हमले को अलकायदा से जोड़ा था।

ब्रिटेन में सबसे ज्यादा बिकने वाला अखबार न्यूज ऑफ द वर्ल्ड फोन हैकिंग मामले के चलते इस साल जुलाई में बंद हो गया। दस जुलाई को इसने अपने अंतिम संपादकीय में कहा, सीधी बात है, हम अपनी राह से भटक गए।

न्यूज इंटरनेशनल कंपनी के अध्यक्ष जेम्स मर्डोक ने फोन हैकिंग प्रकरण में फंसने के बाद अपना यह 168 साल पुराना अखबार बंद करने का फैसला किया। अपने करीब 75 लाख पाठकों के लिए इस टैबलायड के अंतिम संस्करण के मुख्य पृष्ठ पर शीर्षक था, शुक्रिया और अलविदा।

वर्षों तक दुनिया के कई देशों में शासन करने वाले ब्रिटेन में न्यूज ऑफ द वर्ल्ड उन चुनिंदा प्रकाशनों में था, जिसने उपनिवेशवाद की लौ देखी तो इसके बुझने का भी गवाह बना। फोन हैकिंग मामले ने ब्रिटिश राजनीति से लेकर आम आदमी तक को झकझोर दिया था।

न्यूज ऑफ द वर्ल्ड जहां फोन हैकिंग मामले में विवादग्रस्त हुआ वहीं वालस्ट्रीट जर्नल पर प्रसार बढ़ाने के लिए गैर परंपरागत तरीके अपनाने का अरोप लगा। अक्टूबर में ब्रिटिश अखबार गार्जियन ने कहा कि उसने उन ईमेल और दस्तावेजों को देखा है जिनसे पता चलता है कि द वाल स्ट्रीट जर्नल यूरोप में अपना प्रसार बढ़ाने के लिए बिचौलिए के जरिये नीदरलैंड की कंपनी एग्जीक्यूटीव लर्निंग पाटर्नर्शीप (ईएलपी) को भुगतान कर रहा था।

यह कंपनी एक समय भारी छूट पर प्रतिदिन जर्नल के हजारों प्रतियां खरीद रही थी। बहरहाल, एपी को दिए बयान में जर्नल ने इस खबर को उत्तेजक और सत्य से परे तथा बदनाम करने वाली व्याख्या करार दिया है।

अमेरिकी और ऑस्ट्रेलियाई मीडिया भी विवादों से नहीं बच पाया। अमेरिका के प्रमुख अखबार द न्यूयार्क टाइम्स को फरवरी में दो पाकिस्तानी नागरिकों की हत्या के आरोपी रेमंड डेविस के तार अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए से जुड़े होने की सूचना को रोक कर रखे जाने पर सफाई पेश करनी पड़ी।
अखबार ने कहा कि ऐसा ओबामा प्रशासन के अनुरोध पर किया गया और इस बात के खुलासे से डेविस की मौत हो सकती थी। दिसंबर में ऑस्ट्रेलियाई पुलिस के ई अपराध अधिकारियों ने एक प्रमुख अखबार द एज के कार्यालय पर छापा मारा। इस अखबार पर सत्तारूढ़ लेबर पार्टी के डाटाबेस में अवैध रूप से सेंध लगाने का आरोप लगा।

चीन में अप्रैल में सीसीटीवी के नए प्रमुख बनाए गए हू झानफान ने मई में कहा कि पत्रकार अपनी पहचान को लेकर मौलिक रूप से गलत हैं क्योंकि वे पेशेवर होने की बजाय दुष्प्रचार फैलाने वाले कर्मचारी होते हैं। हू के इस बयान को लेकर इंटरनेट उपयोगकर्ताओं ने उनकी कड़ी आलोचना की।

रिपोर्टर्स विदआउट बॉडर्स (आरएसएफ) ने इस साल 66 पत्रकारों के मारे जाने और 1,000 से ज्यादा की गिरफ्तारी की बात कही है। आरएसएफ ने पहली बार मीडिया के लिए विश्व में 10 सबसे ज्यादा खतरनाक स्थानों की सूची भी तैयार की, जिसमें मिस्र की राजधानी काहिरा, लीबिया के मिसराता और पाकिस्तान के दक्षिण ब्लूचिस्तान इलाके के खुजदार जिले का नाम शामिल है। आरएसएफ ने कहा है कि उथल-पुथल भरे इस वर्ष में अरब क्रांति के बीच पिछले साल की तुलना में 16 प्रतिशत ज्यादा पत्रकारों को गिरफ्तार किया गया। (साभार: भाषा) 

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